पितृ दिवस पर कविता : पापा जल्दी आ जाना, घंटों गप्पे लड़ाएंगे

राकेशधर द्विवेदी
पापा जल्दी आ जाना
चाहे वीडियो गेम ना लाना
घर में नहीं उजाला है
हर तरफ अंधियारा है
 
दीवारें भी अब रोती हैं
तुम्हारी राहें देखती हैं
मैं तो अब यह सोचता हूं
 
लोरी कौन सुनाएगा
घुम्मी कौन ले जाएगा
कंधे पर अपने कौन बैठा
मुझको कौन घुमाएगा
 
मैं तुमसे बातें करने
मोबाइल रोज मिलाता हूं
टन-टन घंटी रोज है बजती
बात नहीं कर पाता हूं
 
मम्मी ने प्ले स्टेशन को
अलमारी में बंद कर दिया है
पिट्टी रोज ही करती है
होमवर्क घंटों कराती है
 
मैं कहता हूं सीडी लाकर दो
तो लिखकर बाजार ले जाती है
फिर लौटकर घर आती है तो
एक भी सीडी नहीं लाती है
 
तुम जल्दी से घर आ जाओ
ढेरों सीडी ले आएंगे
मैकडोनल और पिज्जा हट में जा
धमा-चौकड़ी खूब मचाएंगे
ओरियो छुपकर खाएंगे
घंटों गप्पे लड़ाएंगे
 
पापा जल्दी आ जाना
चाहे वीडियो गेम ना लाना
ओरियो छुपकर खाएंगे
घंटों गप्पे लड़ाएंगे। 

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