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फनी बाल कविता: जलेबी

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

करना नहीं बहाना बापू।
आज जलेबी लाना बापू।।
  
रोज सुबह कह कर जाते हैं,
आज जलेबी ले आएंगे।
दादा दादी अम्मा के संग,
सभी बैठ मिलकर खाएंगे।
किंतु आपकी बातों में अब,
दिखता नहीं ठिकाना बापू।
आज जलेबी लाना बापू।।
 
इसी जलेबी में अम्मा की,
बीमारी का राज छुपा है।  
जब तक खाई गरम जलेबी,
जब तक अच्छा स्वास्थ्य र‌हा है।
एक तश्तरी गरम जलेबी,
मां को रोज खिलाना बापू।
आज जलेबी लाना बापू।।  
 
जब-जब खाती गरम जलेबी,
घुर्र-घुर्र सो जाती दादी।
वैसे तो कहती रहती है,
नींद न आती नींद न आती।
कितना अच्छा वृद्ध जनों को,
नीँद मजे की आना बापू।
आज जलेबी लाना बापू।।
 
जैसे पर्वत जंगल-जंगल,
हमको मिलती शुद्ध हवा है।
वैसे ही तो गरम जलेबी,
सौ दवाओं की एक दवा है।
गरम जलेबी में होता है,
मस्ती भरा खजाना बापू।
आज जलेबी लाना बापू।।
 
दादाजी को गरम जलेबी,
खाना बहुत-बहुत भाता है।
खाकर खुशियों का गुब्बारा,
आसमान में उड़ जाता है।
हर दिन गरम जलेबी लाकर,  
अपना धर्म निभाना बापू ।
आज जलेबी लाना बापू।।  

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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