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मजेदार बाल कविता : पेटराम ने खूब छकाया

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

इसको कहते लोग समोसा,
उसको कहते लोग कचौड़ी।
लेकिन जिसमें मजा बहुत है,
वह कहलाती गरम पकौड़ी।
 
गरम पकौड़ी के संग चटनी,
अहा! जीभ में पानी आया।
रखी प्लेट में लाल मिर्च थी,
तभी स्वर्ग-सा सुख मिल पाया।
 
इतना खाया, इतना खाया,
ख्याल जरा भी न रख पाया।
किन्तु बाद में पेट राम ने,
मुझको जी भर खूब छकाया।
 
एक तरफ तो टॉयलेट था,
एक तरफ मैं खड़ा बेचारा।
बार-बार कर स्वागत मेरा,
टॉयलेट भी थक कर हारा।

 
घर के सभी बड़े बूढ़ों ने,
आकर तब मुझको समझाया।
उतना ही खाना अच्छा है,
जितना पेट हजम कर पाता।
 
ठूंस-ठूंस कर पेट भरोगे,
कहां स्वस्थ तब रह पाओगे।
बीमारी को बिना दवा के,
ठीक नहीं फिर कर पाओगे।
 
इसीलिए तो कहा गया है,
खाना बस उतना ही खाओ।
गरम-गरम और बिलकुल सादा,
जितना पूर्ण हजम कर पाओ।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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