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बाल कविता : समय कभी न व्यर्थ गंवाओ

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

पूरब की खिड़की से झांका,
नन्हा बालक भोला भाला।
अरे-अरे यह तो सूरज है,
आया ओढ़े लाल दुशाला।
 
हवा चल पड़ी ठंडी-ठंडी,
डाली फूलों को दुलरातीं।
नदियों, झरनों, तालाबों के,
नीले जल पर चंवर ढुलाती।
 
किरणों के घोड़े पर बैठी,
धूप आ गई मस्ती करती।
अलसाए प्राणी पौधों में,
नई ताजगी ऊर्जा भरती।
 
उड़ने लगे परिंदे नभ में,
तितली भंवरे भी इठलाए।
किए बिना ही देर दौड़कर,
फूलों पर आकर मंडराए।
 
सूरज ने संदेश दिया है,
जल्दी उठो काम पर जाओ।
पाना है अपनी मंजिल तो,
समय कभी न व्यर्थ गंवाओ।     
 
(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)
 

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