सुर्रा सत्तू सुर्रा सत्तू,
सुर्रम सूडा ताल,
नहीं जमा इंदौर तो दद्दू,
पहुंच गए भोपाल।
लेकिन यह भोपाल शहर तो,
निकला घोचम घूंच।
दद्दू जैसे सिद्धूजी की,
कहां वहां पर पूंछ।
इससे अच्छा नदी किनारे,
हरा भरा सा गांव।
छोड़ दिया भोपाल बढ़ाये,
उसी गांव को पांव।
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