दीपावली पर कविता : आ जाओ...

सुशील कुमार शर्मा
मेरे मन का दीप जलाने आ जाओ,
जीवन की बगिया महकाने आ जाओ।
 

 
परिभाषाएं प्रेम की विस्तृत कर दो तुम,
जीवन को मधुमास बनाने आ जाओ।
 
साथ हमारा जिस पल छोड़ा था तुमने,
उस पल का विन्यास सजाने आ जाओ।
 
जीवन ठहरा ठहरा-सा अब लगता है,
सरिता-सी निर्मल बहने आ जाओ।
 
रीता-सा बीता है एक-एक पल मेरा,
मन को सतरंगी-सा रंगने आ जाओ।
 
आपाधापी में ही पूरा जीवन गुजर गया,
अब तो जीवन को ठहराने आ जाओ।
 
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