चुलबुली कविता : बिल्ली का संदेश

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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एक दिवस बिल्ली रानी ने
सब चूहों को बुलवाया
ढीले ढाले उन चूहों को
बड़े प्रेम से समझाया।

अपने संबोधन में बोली
मरे-मरे क्यों रहते हो
इंसानों के जुर्म इस तरह
क्यों सहते हो डरते हो।

गेहूं-चावल दाल सरीखे
टॉनिक घर में भरे पड़े
क्यों जूठन चाटा करते हो
खाते खाने गले सड़े।

प्रजातंत्र में नेता देखो
कैसे लप-लप खाते हैं
भरी तिजोरी मोटर बंगले
फिर भी नहीं अघाते हैं।

सत्य अहिंसा नैतिकता को
बेचा खुले बाजारों में
बनकर लीडर खड़े हुए हैं
दिखते अलग हजारों में।

तुम्हें पता है प्यारे चूहो
मैं तुमको ही खाती हूं
मोटे-ताजे तुमको खाकर
अपना स्वास्थ्य बनाती हूं।

तेरे भोजन से पा ताकत
उछल कूद कर पाती हूं
भाग दौड़ कर लेती हूं
और कुत्तों से बच जाती हूं।

इस कारण हे प्यारे चूहो
निश दिन खाओ अच्छा माल
तभी तुम्हारी बिल्ली मौसी
रह पाएगी नित खुश हाल॥
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