बाल कविता : बचपन

अंशुमन दुबे (बाल कवि)
जब कठिन ये रास्ता न था,
इस संसार से वास्ता न था।
तनावरहित जब यह मन था,
कितना अनमोल बचपन था।
 
वो पल कितने मासूम, वो जिंदगी कितनी हसीन थी,
वो सपनों का आसमां, वो ख्वाबों की जमीन थी।
सपनों की कल्पना के एहसासों में जीकर देखा हमने,
वो बचपन कितना नादान, वो दुनिया कितनी रंगीन थी।
 
वो बारिश के पानी में खेलता जीवन,
चंचल बहारों में झूमता कोमल तन।
तन्हा दिल है, सोचता मन ही मन,
कोई लौटा दे हमें वो प्यारा बचपन।
 
वो पेड़ों की छाया वो खिलौनों की माया,
आंगन में खेलती वह नन्हीं काया।
मां के प्यार पर पिता के दुलार पर,
दौड़ा चला आता वह दोस्तों की पुकार पर।
 
उत्सुकता प्रबल जब होती है,
वो बचपन बिलकुल दीवाना होता है।
हर चीज जानने को हठ करता है,
वह दुनिया के झूठ, फरेब से बेगाना होता है।
 
प्रभु का स्वरूप है, वह हृदय अनमोल,
उसके मुख से निकलते हैं प्रभु के अपने बोल।
अपनी नई दुनिया बसाने का सपना रहता सवार है,
उस दुनिया में जीने का आनंद अपार है।
 
अपनी सी लगती ये धरती अपना ही लगता ये गगन,
आसमां की बुलंदियों के एहसास में जीता मन।
जीवन की कहानी का नूर है, वह अतुल्य जीवन,
क्या कहें, कितना अनमोल है वह प्यारा बचपन।
साभार- छोटी-सी उमर (कविता संग्रह) 
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