बाल साहित्य : मैं चलता चला गया

अंशुमन दुबे (बाल कवि)
राह की दिक्कतों को सहता चला गया,
अपने सभी गम भुलाता चला गया।
हरदम प्रभु का नाम ही कहता चला गया,
मैं जिंदगी का गीत गाता चला गया।
 

 
आया जो ‍किस्मत उसी को समझकर,
कभी न अफसोस जताता चला गया।
दर्द का अंबार सीने में लिए,
हंसता और हंसाता चला गया।
 
दूसरों के लिए सदा खुद को,
हिम्मत बंधाता चला गया।
टूटा बहुत बार दिल मगर हमेशा,
दिलासा दिलाता चला गया।
 
दु:ख को अपने साथ लेकर,
उसे भी काम में लाता चला गया।
दर्द और तन्हाई में भी,
कष्टों का भार उठाता चला गया।
 
दिखा जो उसी निहारता चला गया,
प्रभु का नाम बस पुकारता चला गया।
खुद के पैर में कांटे थे मगर,
मैं तो रास्ते को संवारता चला गया।
 
हर एक दु:ख पर जश्न मनाता चला गया,
मैं जिंदगी का गीत गाता चला गया।
कभी न हाथ मलता चला गया,
जिंदगी की राह पर चलता चला गया।
 
साभार- छोटी-सी उमर (कविता संग्रह) 
 
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