चारों ओर शत्रु ही शत्रु थे। अफगान अब भी प्रबल थे, राजपूत स्वतंत्र थे। दूसरी ओर मुगलों में न तो एका था, न किसी का अंकुश। ऐसे में अकबर की शक्ति का मुख्य स्रोत बैराम खां था। वह अत्यंत दूरदर्शी, कूटनीतिज्ञ और योद्धा था।
हुमायूं के समय से वह अकबर का संरक्षक था। जब अकबर युवराज के रूप में पंजाब में मुगल शासन को ठीक कर रहा था, उस समय भी वह बैराम खां की देखरेख में था। इस काल से ही अकबर को युद्धों में सफलता मिलने लगी थी। वह राजनीति और रणनीति में बराबर प्रशिक्षित हो रहा था।
परंतु किशोर अकबर पर बैराम खां का ही अधिकार न था। अकबर को बचपन में कई धायों ने दूध पिलाया था, उनमें जीजी अंगा और माहम अंगा प्रमुख थीं। मुगलकाल में दूध का बड़ा महत्व था। ऐसा माना जाता कि बच्चे को मां या धाय के दूध के साथ अनेक अच्छे-बुरे संस्कार मिलते हैं।
अतः उच्च वंश और गुणवाली धायों को राजकुमारों को दूध पिलाने के लिए नियुक्त किया जाता था। मुगलों में ऐसी धायों के प्रति विशेष स्नेह होता। फिर अकबर जैसे व्यक्ति का तो स्नेह असाधारण ही रहा होगा।
इनमें जीजी अंगा के पति को हुमायूं ने ही अतगाखां (धाय-पति जो पितृवत् हो) की उपाधि दी थी और इनके एक पुत्र को मिर्जा अजीज कोका (धाय भाई) की।
इस स्नेह का लाभ उठाकर ऐसे धाय भाई मनमानी किया करते। अकबर भी जहां तक संभव होता, इन्हें महत्व दे जाता। कभी-कभी यह धायें अकबर से कह-सुनकर क्षमा दान प्राप्त कर लेतीं।
इस प्रकार इनका वर्ग भी अकबर पर नियंत्रण करता। परंतु बैराम खां में योग्यता थी और इन धाय भाइयों में निरंकुशता। हुमायूं-काल से इधर बीच में मुगल साम्राज्य का जो पुनः स्थापन हुआ उसका मुख्य श्रेय बैराम खां को ही था।
- डॉ. आनंद कृष्ण