हिन्दी बाल कहानियों का उदय भारतेंदु युग से माना जाता है। इस काल की अधिकांश कहानियां अनूदित हैं। इसके लिए वे संस्कृत की कहानियों के लिए आभारी हैं। सर्वप्रथम शिवप्रसाद सितारे हिन्द ने कुछ मौलिक कहानियां लिखीं। इनमें राजा भोज का सपना बच्चों का इनाम तथा लड़कों की कहानी का उल्लेख किया जा सकता है।
आगे चलकर रामायण-महाभारत आदि पर आधारित अनेक कहानियां द्विवेदी युग में लिखी गईं किंतु हिन्दी बाल कहानी अपने स्वर्णिम अभ्युदय के लिए प्रेमचंद की ऋणी है। उनकी अनेक कहानियों में बाल मन का प्रथम निवेश हुआ और उसकी ज्वलंत झांकी अनेक कहानियों में मिलती है। बाल मन के अनुरूप उनकी बहुत सी कहानियां, जो कि बड़ों के लिए ही थीं, बच्चों ने उल्लास के साथ हृदयंगम की।
इन कहानियों में 'ईदगाह' उनकी उच्च कोटि की बाल मन के चित्रण की कहानी है। प्रेमचंद की अन्य अनेक कहानियां हैं जिनमें किशोर मन की अनेक मनोभावनाओं का मनोवैज्ञानिक निरूपण है। इस प्रकार प्रेमचंद ने बाल कहानी का मौलिक स्वरूप प्रस्तुत किया वही परंपरा स्वतंत्र भारत में नाना रूपों में विकसित होती हुई आज अपने शिखर पर पहुंची हुई है।
उपर्युक्त हिन्दी बाल कहानियों के विकास और समृद्धि में स्वातंत्र्योत्तर काल में योगदान देने वाले कुछ महत्वपूर्ण नाम इस प्रकार हैं-
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, सावित्री देवी वर्मा, चौहान, मस्तराम, विष्णु प्रभाकर, मनोहर वर्मा, हरिकृष्ण देवसरे, व्यथित हृदय, मनहर चौहान, मस्तराम कपूर, कन्हैयालाल नंदन, श्यामसिंह शशि, जयप्रकाश भारती, कृष्णा नागर, दामोदर अग्रवाल, शकुंतला वर्मा, शकुंतला सिरोठिया, सावित्री परमार, अनंत कुशवाहा, यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र, रामेश्वरलाल दुबे तथा इस सदी के अंतिम दो दशकों में कई अन्य महत्वपूर्ण बाल कहानीकार क्षितिज पर उदित हुए।
इन कहानीकारों ने हिन्दी बाल कहानी को परिमाण और गुणवत्ता की दृष्टि से नई ऊंचाइयां प्रदान कीं और हिन्दी बाल कहानी को स्वर्ण युग में पहुंचा दिया है। इन कहानीकारों में- डॉ. उषा यादव, उषा महाजन, क्षमा शर्मा, कमला चमोला, जाकिर अली रजनीश, रमाशंकर, अखिलेश श्रीवास्तव, चमन, इंदरमन साहू, सुधीर, सक्सेना, कमलेश भट्ट कमल, भगवती प्रसाद द्विवेदी, भेरूलाल गर्ग, विमला रस्तोगी, स्नेह अग्रवाल, डॉ. हूंदराज बलवाणी, फकीरचन्द्र शुक्ला, घनश्याम रंजन, परशुराम शुक्ल, नागेश पांडेय, संजय देशबंधु, शाहजहां पुरी आदि।
हिन्दी बाल कहानी पर्याप्त समद्ध है। इसे पंचतंत्र, हितोपदेश कथासरित्सागर, जातक कथा पुरुष परीक्षा, बेताल पज्जविशतिका, सिंहासन द्वात्रिशिका भोज प्रबंध, शुकसप्तति जैसे संस्कृत के कथा साहित्य का ज्ञान प्राप्त है।
वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण आदि ग्रंथों के आख्यान, उपाख्यान, नैतिक मूल्यपरक असंख्य कथानक और अनेक महापुरुषों देवी-देवताओं के कथा-प्रसंगों की अक्षय गंगोत्री से हिन्दी बाल कहानियों की मंदाकिनी प्रवाहित हो रही है, जो मानव जीवन के नाना रूपों की व्याख्या करती है। इस समृद्ध पृष्ठभूमि वाली हिन्दी बाल कहानी का आयाम अत्यंत व्यापक है।
1. कथासरित्सागर
2. शुकसप्तति
3. तेनालीराम की कहानियां
4. सिंहासन बत्तीसी (संस्कृत नाम सिंहासन द्वात्रिंशिका, विक्रमचरित)
5. कथासरित्सागर
6. बेताल या वेताल पच्चीसी
7. उपनिषद की कथाएं
8. जातक कथाएं
9. हितोपदेश
10. पंचतंत्र
बच्चों का मानसिक विकास कहानियां, चित्रकथाएं पढ़ने और पहेलियां सुलझाने के साथ ही माता-पिता और शिक्षकों से बेझिझक बातचीत करने से बढ़ता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार बच्चे के प्रथम 7 वर्ष तक उसे हर तरफ से सहज रूप में जानकारी देना चाहिए। उसमें उत्सुकता और सीखने की लगन को बढ़ाना चाहिए। 7 वर्ष की उम्र तक उसे सभी ओर से भरपूर प्यार और दुलार मिलना चाहिए। यदि इस उम्र में उसको बुरे अनुभव होते हैं तो इसका असर उसके भाग्य और भविष्य पर पड़ता है। इसी उम्र में उसके भविष्य का निर्माण हो जाता है। 10 किताबें जिनको पढ़कर आपका बच्चा हर तरह की बातें सीख सकता है। उन किताबों की सभी कहानियां लगभग चित्रों के रूप में भी प्रस्तुत हैं और टेक्नोलॉजी के विकास के साथ ही अब वे एनिमेशन का भी रूप ले चुकी हैं।