भारत में प्रेरक कहानियों के मामले में जातक कथा, पंचतंत्र, तेनालीराम, बेताल पच्चीसी, बिक्रम वेताल, सिंहासन बत्तीसी आदि कई प्रेरक कहानी संग्रह मौजूद हैं। उन्हीं में से एक कहानी यहां प्रस्तुत है।
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा- गुरुजी, कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, कुछ कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव मानते हैं। आखिर इनमें से सही कौन है?
गुरुजी ने कहा, जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है; जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने लगते हैं, उनके लिए जीवन एक उत्सव हैं।
शिष्य को गुरुजी का यह साधारणसा उत्तर समझ में नहीं आया और वह इससे संतुष्ट नहीं हुआ तो गुरुजी ने एक कहानी सुनाई।
एक बार किसी गुरुकुल में तीन शिष्यों ने अपना अध्ययन सम्पूर्ण करने पर अपने गुरुजी से यह बताने के लिए विनती की कि उन्हें गुरुदाक्षिणा में, उनसे क्या चाहिए। गुरुजी पहले तो मन ही मन मुस्कराए और फिर बोले- मुझे तुमसे गुरुदक्षिणा में एक थैला भरके सूखी पत्तियां चाहिए, ला सकोगे?
यह सुनकर वह तीनों प्रसन्न हो गए, क्योंकि उन्हें लगा कि ये बड़ा ही आसान काम है। अब वे तीनों शिष्य पास के ही एक जंगल में पहुंच गए। परंतु यह देखकर उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि यहां तो सूखी पत्तियां केवल एक मुट्ठी भर ही हैं। वे सोच में पड़ गए कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठा कर ले गया होगा? सूखी पत्तियां का भला क्या उपयोग?
तभी उन्हें दूर से एक किसान आता दिखाई दिया। वे उसके पास पहुंचकर याचना करने लगे कि वह उन्हें केवल एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दें। उस किसान से क्षमा मांगते हुए कहा कि मैं आप लोगों की मदद नहीं कर सकता क्योंकि सूखी पत्तियों को ईंधन और खाद के रूप में पहले ही उपयोग कर लिया गया है।
यह सुनकर वे तीनों पास के एक गांव में चले गए। वहां पहुंचकर उन्होंने जब एक व्यापारी को देखा और उससे थैला भर सूखी पत्तियां देने के लिए प्रार्थना करने लगे परंतु व्यापारी ने उसके पास सूखी पत्तियां होने से इनकार कर दिया और कहा कि वो तो मैंने कभी की बेच दी। फिर भी उस व्यापारी ने कहा कि मैं जानता हूं उस बूढ़ी मां को जो जंगल से सूखी पत्तियां बीनकर लाती हैं। हो सकती है कि उसके पास हो। तीनों उस बूढ़ी मां के पास गए जो उन पत्तियों को अलग-अलग करके कई प्रकार की औषधियां बनाया करती थीं। उसने भी इनकार कर दिया और कहा कि यह तो औषधियां बनाने के लिए है।
वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। वे निराश होकर खाली हाथ गुरुकुल लौट आए। गुरुजी ने उन्हें देखते ही पूछा- 'ले आए गुरुदक्षिणा?' तीनों ने सिर झुका लिया। गुरुजी के फिर से पूछे जाने पर उनमें से एक शिष्य बोला- 'गुरुदेव! हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाए। हमने सोचा था कि सूखी पत्तियां तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही होंगी परंतु बड़े ही आश्चर्य की बात है कि लोग उनका भी कितनी तरह से उपयोग करते हैं।
गुरुजी फिर पहले ही की तरह मन ही मन मुस्कराए और बोले- निराश क्यों होते हो? प्रसन्न हो जाओ और यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं। मुझे गुरु दक्षिणा के रूप में दे दो। तीनों शिष्य गुरुजी को प्रणाम करके प्रसन्न होकर अपने-अपने घर चले गए।
वह शिष्य जो गुरुजी की कहानी सुन रहा था। बड़े उत्साह से बोला- गुरु जी, अब मुझे आपकी बात समझ में आई कि आप क्या कहना चाहते हैं। आपका संकेत, वस्तुतः इसी ओर है कि जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी निरर्थक या बेकार नहीं होती हैं तो फिर हम कैसे, किसी भी वस्तु या व्यक्ति को छोटा और महत्त्वहीन मानकर उसका तिरस्कार कर सकते हैं? जीवन में हमारे पास जो है हम उसका मजा ले सकते हैं जबकि कुछ लोग उनके पास जो नहीं है उसके बारे में सोचकर ही परेशान होते रहते हैं।
गुरुजी भी तपाक से बोले- हां, मेरे कहने का भी यही तात्पर्य है कि हम जब भी किसी से मिलें तो उसे यथायोग्य मान देने का भरसक प्रयास करें ताकि आपस में स्नेह, सद्भावना, सहानुभूति एवं सहिष्णुता का विस्तार होता रहे और हमारा जीवन संघर्ष के बजाय उत्सव बन सके।
सीख : जीवन में कुछ भी व्यर्थ नहीं है सभी में कुछ न कुछ अर्थ है। आपका व्यवहार ही आपको संघर्ष या उत्सव में धकेलता है। यदि जीवन को आप संघर्ष समझेंगे तो संघर्ष बन जाएगा और यदि इसे खेल भावना से लेंगे तो यह उत्सव बन जाएगा। दूसरा यह कि उनके लिए जीवन एक संघर्ष है जो उन वस्तुओं के बारे में सोचते रहते हैं जो उनके पास नहीं है जबकि उनके लिए उत्सव जो यह सोचते हैं कि मेरे पास जो है उसका कितना आनंद ऊठाऊं।