रोचक कहानी : फुटबॉल चला सैर करने...

Webdunia
- डॉ. मोहम्मद साजिद खान
 

काफी समय से अलमारी में रखा फुटबॉल एकदम बोर हो चुका था। बहुत दिनों से अंशुल उसे खेलने के लिए नहीं ले गया था इसलिए बगीचे में अपने नन्हे मि‍त्रों से भी नहीं मिल सका था।
 
अत: एक दिन सैर करने के लिए वह चुपचाप उछलकर नीचे आ गया। उसने इधर-उधर देखा, रास्ता साफ था। वह बरामदे से होता हुआ दरवाजे तक आया और छलांग लगाकर हो गया एक दो तीन।
 
बाहर का खुला वातावरण देख उसे अच्‍छा लगने लगा। उसके शरीर का दर्द भी कम हो गया।
 
वह बगीचे की ओर जाने लगा।
 
जब वह सड़क पार कर रहा था तो एक ट्रक ने जोर का ब्रेक लगाया। फुटबॉल उसके भारी-भरकम टायरों के नीचे आते-आते बचा। वह जान बचाकर वहां से भाग खड़ा हुआ। 
 
थोड़ी दूर पर एक गंदा नाला था। फुटबॉल उसे कैसे पार करता? उसने छलांग लगानी चाही, पर रुक गया, क्योंकि नाला चौड़ा था।
 
वह सोचने लगा- 'अगर इसमें गिर गया तो मेरा चमड़े का शरीर फूल जाएगा, सिलाई ढीली पड़ जाएगी, फिर मुझसे कौन खेलेगा।'
 
तभी उसे एक तरकीब सूझी। वह उछलकर सामने की दीवार से टकराया और प्रतिक्रियास्वरूप नाले के उस पास जा पहुंचा।
 
अब एक नई मुसीबत सामने थी। कॉलोनी में शर्माजी के घर पला कुत्ता मोती बहुत शैतान था। उसे फुटबॉल खेलने का अच्‍छा अभ्यास था। फुटबॉल फंस गया उसके चंगुल में। मोती की पकड़ मजबूत थी। वह नया फुटबॉल पाकर बहुत प्रसन्न था। वह उसे किक मारता तो फुटबॉल दीवार से टकराता और जैसे ही भागने के लिए अपना रुख मोड़ता, मोती झपट पड़ता।
 
मोती के नुकीले पंजों से फुटबॉल का बुरा हाल था।
 
तभी बाहर कोई आवारा कुत्ता भौंका। मोती को यह कहां पसंद? वह उसे भगाने के लिए दौड़ पड़ा।
 
इतना अवसर पाकर वह फुटबॉल वहां से हो लिया एक दो तीन। पर कहते हैं न कि मुसीबत आती है तो चारों ओर से।
 
इस बार फुटबॉल गहरे कुएं में जा गिरा। बेचारा जोर-जोर से रोने लगा। उसका शरीर फूलने लगा।
 
संयोगवश उधर एक बूढ़ी स्त्री आ गई। उसने पानी निकालने के लिए जैसे ही बाल्टी कुएं में डाली, फुटबॉल फौरन उसमें बैठकर बाहर आ गया।
 
स्त्री बोल उठी- 'हे राम! ये गेंद बाल्टी में? अब तो इसका पानी भी पीने योग्य नहीं रह गया।' कहते हुए उसने फुटबॉल धूप में रख दिया ताकि बच्चे उसे ले जा सकें।
 
थोड़ी ही देर में फुटबॉल चंगा हो गया। जान बची तो लाखों पाए। वह दौड़ता-उछलता बगीचे में जा पहुंचा। वहां के हरे-भरे वातावरण से उसकी सारी थकावट दूर हो गई।
 
तभी बगीचे में खेल रहे बच्चों में दीपक की दृष्टि उस पर जा पड़ी। वह दौड़कर उसे उठा लाया। चूंकि फुटबॉल दीपक का नहीं था इसलिए वह उस पर बेरहमी से किक मार रहा था।
 
फुटबॉल दुखी था। उसे नन्हे मित्रों से ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी। वह ईश्वर को याद करते हुए भागने का उपाय सोचने लगा।
 
तभी श्याम ने जोर की किक लगाई और फुटबॉल पेड़ों के पीछे चला गया। इतना अवसर पर्याप्त था। फुटबॉल भाग खड़ा हुआ। जैसे-तैसे घर पहुंचा। शाम ढल चुकी थी। वह जैसे ही बगिया में होकर अपने कमरे में जा रहा था, तो कोचिंग से लौट रहे अंशुल की दृष्टि उस पर जा पड़ी- 'अरे, मेरा प्यारा फुटबॉल यहां कैसे गिर गया? ये तो गंदा भी है।'
 
फिर सोचने लगा- मैं कितने दिनों से इससे नहीं खेल सका। शायद इसीलिए मेरा बदन भी दर्द करता है। कल से मैं इसे रोज लेकर खेलने जाया करूंगा। अंशुल ने उसे साफ किया और अलमारी में सजा दिया।
 
अंशुल के प्रेम को देखकर फुटबॉल की आंखों में आंसू आ गए।
 
आज की सैर रोचक तो थी, किंतु प्यारे अंशुल के बिना अधूरी।

साभार- देवपुत्र 
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