अब कोई भालू से पंगा लेता क्या भला? उसकी बड़ी कद-काठी और पंजे देखकर हर कोई कहता- बहुत सुंदर, बहुत सुंदर। भालू इस पर फूला नहीं समाता। कहने वाले यह भी कह देते कि भालू की पूंछ से सुंदर किसी की पूंछ नहीं। बस, भालू दिनभर अपनी पूंछ-प्रशंसा सुनता रहता।
एक बार ठंड के दिनों में कुछ ज्यादा ही ठंड पड़ी। इतनी कि झील और पोखर सब जम गए। शिकार ढूंढना भी मुश्किल हो गया। ऐसे में भालू अपनी सुंदर पूंछ लिए एक झील के पास से जा रहा था, तभी उसकी नजर वहां बैठी एक लोमड़ी पर पड़ी। लोमड़ी के पास मछलियों का ढेर लगा था। यह देखकर भालू के मुंह में पानी आ गया।
लोमड़ी चालाक थी। उसने भांप लिया कि भालू को भूख लगी और मछलियों को देखकर उसकी नजर खराब हो गई है। भालू ने कहा- लोमड़ी बहन कैसी हो? तुमने यह सारी मछलियां कहां से पाई?
लोमड़ी ने चालाकी दिखाते हुए इस झील से, लोमड़ी ने जमी हुई झील में एक जगह गड्ढा दिखाते हुए कहा। भालू भी कम नहीं था। उसने कहा, पर तुम्हारे पास मछली पकड़ने का कांटा तो है ही नहीं? लोमड़ी बोली, मैंने अपनी पूंछ की मदद से यह सारी मछलियां पकड़ी हैं।