बीरू और अमन की गहरी मित्रता थी, लेकिन दोनों के विद्यालय अलग-अलग थे। शाम को दोनों मित्र घूमने के लिए गांव के आसपास वाले खेत-खलिहानों में चले जाते और बातें करते-करते फिर घरों को लौट आते। पिछले महीने बीरू की मित्रता गुड्डू नामक एक ऐसे लड़के से हो गई जिसे नशे की लत थी। जब बीरू के विद्यालय में छुट्टी का समय होता, वह उसके विद्यालय के पास आ जाता, जहां उन्हें कोई देखता न हो।
एक दिन अमन बीरू के घर आया और उससे बोला- बीरू, आजकल तुम्हारे दर्शन दुर्लभ हो गए हैं? दिखाई ही नहीं देते? पहले तो हर शाम को मेरे घर आ जाते थे। कहीं कोई ट्यूशन वगैरह रख ली है क्या?
बीरू अमन की यह बात सुनकर झेंप-सा गया। उसे लगा, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो। वह बोला- नहीं-नहीं अमन। ऐसी तो कोई बात नहीं। बस दादाजी की तबीयत कुछ ठीक नहीं है इसलिए...।
अमन ने उसकी बात पर विश्वास कर लिया।
दोनों मित्र बाहर खलिहानों की तरफ घूमने के लिए निकल पड़े। जब दोनों मित्र एक तालाब में नहाने के लिए कपड़े उतारने लगे तो अचानक ही बीरू की पेंट की जेब से बीड़ियों का एक बंडल निकलकर नीचे गिर पड़ा। बीरू ने अमन से आंख बचाकर बंडल पर एकदम पांव रख दिया।
चलो अमन, पहले तुम तालाब में कूदो नहाने के लिए...। बीरू ने उसे कहा। वह सोच रहा था कि जब भी अमन का मुंह थोड़ा-सा दूसरी तरह हुआ, तो वह अपने पांव के नीचे दबे हुए बंडल को एकदम छुपा लेगा। लेकिन अमन ने यह सब कुछ देख लिया था।
नहीं बीरू पहले तुम नहाओ। मैं बाद में नहाऊंगा। अमन ने बीरू की आंखों में झांककर कहा।
अब बीरू को काटो तो खून नहीं। एक बार तो बीरू को लगा, जैसे वह पत्थर हो गया हो। उसने अमन की आंखों से अंदाजा लगा लिया था कि उसकी चोरी पकड़ी गई है।