पंचतंत्र की कहानी : चतुर खरगोश

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एक वन में हाथियों का एक झुंड रहता था। झुंड के सरदार को गजराज कहते थे। वो विशालकाय, लम्बी सूंड तथा लम्बे मोटे दांतों वाला था। खंभे के समान उसके मोटे-मोटे पैर थे। जब वो चिंघाड़ता था तो सारा वन गूंज उठता था।

गजराज अपने झुंड के हाथियों से बड़ा प्यार करता था। स्वयं कष्ट उठा लेता था, पर झुंड के किसी भी हाथी को कष्ट में नहीं पड़ने देता था और सारे के सारे हाथी भी गजराज के प्रति बड़ी श्रद्घा रखते थे ।

एक बार जलवृष्टि न होने के कारण वन में जोरों का अकाल पड़ा। नदियां, सरोवर सूख गए, वृक्ष और लताएं भी सूख गईं। पानी और भोजन के अभाव में पशु-पक्षी वन को छोड़कर भाग खड़े हुए। वन में चीख-पुकार होने लगी, हाय-हाय होने लगी। गजराज के झुंड के हाथी भी अकाल के शिकार होने लगे। वे भी भोजन और पानी न मिलने से तड़प-तड़पकर मरने लगे। झुंड के हाथियों का बुरा हाल देखकर गजराज बड़ा दुखी हुआ। वह सोचने लगा, कौन सा उपाय किया जाए, जिससे हाथियों के प्राण बचें।

एक दिन गजराज ने तमाम हाथियों को बुलाकर उनसे कहा, 'इस वन में न तो भोजन है, न पानी है! तुम सब भिन्न-भिन्न दिशाओं में जाओ, भोजन और पानी की खोज करो।'

हाथियों ने गजराज की आज्ञा का पालन किया। हाथी भिन्न-भिन्न दिशाओं में छिटक गए। एक हाथी ने लौटकर गजराज को सूचना दी, 'यहां से कुछ दूर पर एक दूसरा वन है। वहां पानी की बहुत बड़ी झील है। वन के वृक्ष फूलों और फलों से लदे हुए हैं।' गजराज बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने हाथियों से कहा कि अब हमें देर न करके तुरंत उसी वन में पहुंच जाना चाहिए, क्योंकि वहां भोजन और पानी दोनों हैं। गजराज अन्य हाथियों के साथ दुसरे वन में चला गया। हाथी वहां भोजन और पानी पाकर बड़े प्रसन्न हुए।

उस वन में खरगोशों की एक बस्ती थी। बस्ती में बहुत से खरगोश रहते थे। हाथी खरगोशों की बस्ती से ही होकर झील में पानी पीने के लिए जाया करते थे। हाथी जब खरगोशों की बस्ती से निकलने लगते थे, तो छोटे-छोटे खरगोश उनके पैरों के नीचे आ जाते थे। कुछ खरगोश मर जाते थे, कुछ घायल हो जाते थे।

रोज-रोज खरगोशों के मरते और घायल होते देखकर खरगोशों की बस्ती में हलचल मच गई। खरगोश सोचने लगे, यदि हाथियों के पैरों से वे इसी तरह कुचले जाते रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब उनका खात्मा हो जाएगा।

अपनी रक्षा का उपाय सोचने के लिए खरगोशों ने एक सभा बुलाई। सभा में बहुत से खरगोश इकट्ठे हुए। खरगोशों के सरदार ने हाथियों के अत्याचारों का वर्णन करते हुए कहा, 'क्या हममें से कोई ऐसा है, जो अपनी जान पर खेलकर हाथियों का अत्याचार बंद करा सके ?'

सरदार की बात सुनकर एक खरगोश बोल उठा, 'यदि मुझे खरगोशों का दूत बनाकर गजराज के पास भेजा जाए, तो मैं हाथियों के अत्याचार को बंद करा सकता हूं। 'सरदार ने खरगोश की बात मान ली और खरगोशों का दूत बनाकर गजराज के पास भेज दिया।

खरगोश गजराज के पास जा पहुंचा। वह हाथियों के बीच में खड़ा था। खरगोश ने सोचा, वह गजराज के पास पहुंचे तो किस तरह पहुंचे। अगर वह हाथियों के बीच में घुसता है, तो हो सकता है, हाथी उसे पैरों से कुचल दे। यह सोचकर वह पास ही की एक ऊंची चट्टान पर चढ़ गया। चट्टान पर खड़ा होकर उसने गजराज को पुकारकर कहा, 'गजराज, मैं चंद्रमा का दूत हूं। चंद्रमा के पास से तुम्हारे लिए एक संदेश लाया हूं।'

चद्रमा का नाम सुनकर, गजराज खरगोश की ओर आकर्षित हुआ। उसने खरगोश की ओर देखते हुए कहा, 'क्या कहा तुमने? तुम चद्रमा के दूत हो? तुम चंद्रमा के पास से मेरे लिए क्या संदेश लाए हो?'

खरगोश बोला, 'हां गजराज, मैं चंद्रमा का दूत हूं। चंद्रमा ने तुम्हारे लिए संदेश भेजा है। सुनो, तुमने चंद्रमा की झील का पानी गंदा कर दिया है। तुम्हारे झुंड के हाथी खरगोशों को पैरों से कुचल-कुचलकर मार डालते हैं। चंद्रमा खरगोशों को बहुत प्यार करते हैं, उन्हें अपनी गोद में रखते हैं। चंद्रमा तुमसे बहुत नाराज हैं। तुम सावधान हो जाओ। नहीं तो चंद्रमा तुम्हारे सारे हाथियों को मार डालेंगे।'

खरगोश की बात सुनकर गजराज भयभीत हो उठा। उसने खरगोश को सचमुच चंद्रमा का दूत और उसकी बात को सचमुच चंद्रमा का संदेश समझ लिया उसने डर कर कहा, 'यह तो बड़ा बुरा संदेश है। तुम मुझे तुरंत चंद्रमा के पास ले चलो। मैं उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करूंगा।'

खरगोश गजराज को चंद्रमा के पास ले जाने के लिए तैयार हो गया। उसने कहा, 'मैं तुम्हें चंद्रमा के पास ले चल सकता हूं, पर शर्त यह है कि तुम अकेले ही चलोगे।' गजराज ने खरगोश की बात मान ली।

पूर्णिमा की रात थी। आकाश में चंद्रमा हंस रहा था। खरगोश गजराज को लेकर झील के किनारे गया। उसने गजराज से कहा, 'गजराज, मिलो चंद्रमा से ' खरगोश ने झील के पानी की ओर संकेत किया। पानी में पूर्णिमा के चंद्रमा की परछाईं को ही चंद्रमा मान लिया।

गजराज ने चंद्रमा से क्षमा मांगने के लिए अपनी सूंड पानी में डाल दी। पानी में लहरें पैदा हो उठीं, परछाईं अदृश्य हो गई। गजराज बोल उठा, 'दूत, चंद्रमा कहां चले गए ?'

खरगोश ने उत्तर दिया, 'चंद्रमा तुमसे नाराज हैं। तुमने झील के पानी को अपवित्र कर दिया है । तुमने खरगोशों की जान लेकर पाप किया है इसलिए चंद्रमा तुमसे मिलना नहीं चाहते।'

गजराज ने खरगोश की बात सच मान ली । उसने डर कर कहा, 'क्या ऐसा कोई उपाय है, जिससे चंद्रमा मुझसे प्रसन्ना हो सकते हैं?'

खरगोश बोला 'हां, है। तुम्हें प्रायश्चित करना होगा। तुम कल सवेरे ही अपने झुंड के हाथियों को लेकर यहां से दूर चले जाओ। चंद्रमा तुम पर प्रसन्न हो जाएंगे।' गजराज प्रायश्चित करने के लिए तैयार हो गया। वह दूसरे दिन हाथियों के झुंड सहित वहां से चला गया।

इस तरह खरगोश की चालाकी ने बलवान गजराज को धोखे में डाल दिया और उसने अपनी बुद्घिमानी के बल से ही खरगोशों को मृत्यु के मुख में जाने से बचा लिया।

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