' मगर क्या गारंटी की दुकान चल ही जाएगी?' - मच्छर बोला।
हम लोग पान के साथ तंबाकू, गुटका किमाम इत्यादि सब सामान रखेंगे, इन वस्तुओं की बहुत डिमांड है, बिक्री तो होगी ही।' - मच्छरी बोली।'
' बात तो सही कह रही हो। कल से दुकान प्रारंभ कर देते हैं।' इतना कहकर वह बाजार से दुकान का सब सामान आवश्यकतानुसार ले आया। दुकान चालू कर दी गई। वह और उसकी पत्नी दुकान पर बैठते। बच्चे भी बैठने लगे। बढ़िया पान लगते, तंबाकू और गुटखों के पैकेट बनते और देखते ही देखते दुकान का सारा सामान बिक जाता। मजे से खर्च चलने लगा।
एक दिन मच्छर ने महसूस किया कि उसके बच्चे दिन भर खांसते रहते हैं और कमजोर होते जा रहे हैं। उसने कारण जानने कि कोशिश की तो मालूम पड़ा कि बच्चे जब भी दुकान पर बैठते हैं, लगातार तंबाकू और गुटखा खाते रहते हैं। मच्छर परेशान हो गया। बच्चों को समझाया कि बेटे यह तंबाकू बहुत हानिकारक होती है, अधिक खाने से जान भी जा सकती है। किंतु बच्चे नहीं माने।
ग्राहक आते खुद तो पान-तंबाकू खाते ही, मच्छर पुत्रों को भी प्रेरित करते। आखिरकार एक-एक कर मच्छर के दसों पुत्र स्वर्गवासी हो गए। मच्छर ने गुस्से के मारे दुकान बंद कर दी।
आखिर उसके बच्चों की मृत्यु के जबाबदार इंसान ही तो थे, क्योंकि उनकी प्रेरणा से ही भोले-भाले बच्चे तंबाकू खाना सीखे थे।
ऐसा सोचकर मच्छर ने खुले आम घोषणा कर दी कि आगे से मच्छर अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए कोई काम नहीं करेंगे सिर्फ आदमियों का खून चूसेंगे। तब से आज तक मच्छर इंसानों का खून चूस रहा है।
( समाप्त)