कैटरपिलर

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कैटरपिलर का मतलब इल्ली होता है। जितनी भी तितलियाँ या मोथ हैं सभी के अंडे से पहले इल्ली बनती है। धीरे-धीरे यह कैटरपिलर बड़ी होती है और बटरफ्लाय में चेंज हो जाती है। कैटरपिलर में स्पेशल ग्लैंड होती है जिसकी सिकरिशन से वे सिल्क बनाती हैं। कैटरपिलर के सिर पर 12 छोटी-छोटी आँखें होती हैं जिसे 'ओसिली' कहा जाता है। इसके सिर पर दो जोड़ी जबड़े भी जुड़े रहते हैं, जो मेंडीबल्स कहलाते हैं।

इसकी स्किन स्ट्रेचेबल नहीं होती है इसलिए जैसे ही इसका साइज बढ़ता है इसकी स्किन टूटती जाती है। कैटरपिलर के आगे के तीन जोड़ी पैर को थोरेसिक लेग कहा जाता है और ये चलने और पकड़ने का काम करते हैं। इसकी बॉडी 13 सेगमेंट में बँटी हुई होती है। सभी इंसेक्ट की तरह यह भी शरीर पर मौजूद छेदों से साँस लेते हैं। इन छेदों को स्पाइरेकल कहा जाता है। इसके पीछे के पैरों को प्रोलेग कहा जाता है। इन पैरों से वह पौधों की डालियों को पकड़ने का काम करता है।

ज्यादातर कैटरपिलर का कलर हरा होता है ताकि वे आसानी से पत्तियों में छुपे रहें। इनका मुख्य खाना ही पत्तियाँ होती हैं। लेकिन कुछ कैटरपिलर बहुत सुंदर होते हैं। जैसे कैबेज व व्हाइट कैटरपिलर पर बहुत ही सुंदर स्पाट होते हैं। टाइगर मोथ एकदम लाल रंग का होता है। पस मॉथ का शेप एकदम अलग ढंग का होता है। एम्प्ररर मॉथ हरे रंग का बहुत सुंदर कैटरपिलर हांेता है।

वैसे तो मॉथ के सभी कैटरपिलर सिल्क बनाते हैं, लेकिन जो सबसे अच्छी क्वालिटी का सिल्क देता है उसे सिल्क वर्म कहा जाता है।

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