यहाँ से नि‍कलते हैं आज के अर्जुन

छात्र सीख रहे हैं धनुर्विद्या

Webdunia
- सुनील कुमार गुप्ता

गढ़मुक्तेश्वर। महाभारत कालीन प्राचीन तीर्थ स्थली पुष्पावती के नाम से विख्यात गंगा किनारे पूठ स्थित गुरुकुल महाविद्यालय के संचालक स्वामी धर्मेश्वरानंद आचार्य छात्रों के चरित्र निर्माण एंव वेद पाठन से अर्जुन जैसे धनुर्धर एवं महाबली भीम जैसे ब्रह्मचारी तैयार कर रहे हैं। पूठ की इसी वीर भूमि पर गुरु द्रोणाचार्य ने धनुर्धर और धर्मराज, भीम एवं अर्जुन को तैयार किया था।

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महाभारत कालीन प्राचीन धर्म नगरी एवं तीर्थ स्थली पुष्पावती नाम से प्रसिद्ध गंगा किनारे गढ़मुक्तेश्वर के निकट गुरु द्रोणाचार्य की तपस्या स्थली, कौरव, पांडवों की परीक्षा स्थली, एकलव्य की साधना स्थली, इस समय परगना पूठ के नाम से जानी जाती है।

शहरी चकाचौंध एवं अशांत वातावरण से दूर मनोरम स्थान पर लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति और वर्तमान की खर्चीली शिक्षा को देखकर आचार्य ने संकल्प लिया था कि हम एक ऐसे समाज का निर्माण करेंगे जहां सच्ची भारतीय संस्कृति के दर्शन हो सकें। जहां प्राचीन भारत की झांकी दिखाई दे सके।

उस शिक्षा को जो ब्रह्मा से लेकर जैमिनी मुनि पर्यन्त ऋषि महात्मा, विद्वान कहते आए हैं कि जिसमें वेद शास्त्रों की परम्परा सुरक्षित है। उसी परंपरा को फिर से जीवित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि विश्व स्तर पर समाज सुधारक तैयार कर सकें और विद्धता के साथ-साथ अर्जुन जैसे धर्नुधर और महाबली भीम जैसे ब्रह्मचारी समाज को मिल सके।

पुनः कृष्ण सुदामा जैसा कोई बालसखा तैयार हो सके, सादा जीवन, उच्च विचारों से ओत-प्रोत भावनाओं हेतु सन्‌ 1989 संवत्‌ 2046 जन्माष्टमी के पावन पर्व पर गुरुकुल विद्यापीठ की स्थापना हुई थी।

भले ही आज समाज के लोग आधुनिकता के युग में खुद को रंगते जा रहे हों लेकिन आज के इस आधुनिकता के समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पाश्चात्य संस्कृति को फिर से जीवित करने के लिए भारतीय संस्कृति के अनुरूप शिक्षा ले रहे हैं। गुरुकुल में न जाने ऐसे कितने छात्र हैं जो अपनी बाल अवस्था में घर से कोसों दूर रहकर गुरु द्रोणाचार्य के स्थान पर स्वामी धर्मेश्वरानंद आचार्य से अर्जुन की तरह धर्नुविद्या सीख रहे हैं। गुरुकुल में छात्रों को धर्नुविद्या के साथ लाठी, भाला, शारीरिक विकास हेतु व्यायाम, कुश्ती, ब्रह्मचार्य की शिक्षा एवं आध्ययत्मिक वेद पाठ की शिक्षा प्रदान की जाती है।

संस्था सम्पूर्णानंद संस्कृति विश्वविद्यालय वाराणसी से शास्त्री कक्षा तक मान्यता प्राप्त है। संस्था को आशीर्वाद देने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, स्वामी ओमवेश, पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह, पूर्व उपप्रधान मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, स्वामी बाबा राम देव सहित अनेक महान हस्तियां पधार चुकी हैं।

गुरुकुल में शिक्षा ले रहे दीपक (12) निवासी फतेपुर नारायण बताता है कि उनके पिता अक्सर गुरुकुल में पूठ घूमने आया करते थे। दीपक कहता है कि बचपन से ही उसे गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा थी।


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गुरुकुल महाविद्यालय के संचालक स्वामी धर्मेश्वानन्द सहित आठ आचार्य राजीव, दिनेश, प्रमोद, राजेन्द्र, रामकुमार, कुलदीप व एक अन्य छात्रों को शिक्षा दे रहे हैं। कई राज्यों के छात्र शिक्षा भी ले रहे हैं। विश्वस्तरीय पहचान रखने वाले गुरुकुल पूठ में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पटना, राजस्थान, झारखंड सहित देश के कोने-कोने से छात्र पढ़ने आ रहे हैं।

बढ़ रही है छात्रों की संख्या
आधुनिक जीवन एवं आधुनिक शिक्षा को त्याग कर भारतीय संस्कृति की शिक्षा ग्रहण करने वाले लोगों की आज के युग में भी कमी नहीं दिख रही है। गुरुकुल में प्रत्येक वर्ष धनुर्विद्या, पाठ-वेद आदि की शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस समय गुरुकुल में कुल 125 विद्यार्थी हैं जिसमें 87 विद्यार्थी विद्यालय के छात्रावास में ही निवास करते हैं।

कौन-कौन सी शिक्षा ले रहे हैं छात्र
गुरुकुल में छात्रों को धनुष से बाण चलाना, तलवार चलाना, रस्से के आसन, योग, वेद पुराण की शिक्षा, भाला, मल्लखंब, कुश्ती एवं ब्रह्मचार्य की शिक्षा दी जा रही है। साथ ही साहित्य, समाज शास्त्र, हिन्दी, गणित, अंग्रेजी आदि सभी विषय हैं।

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गुरुकुल में छात्रों की दिनचर्या
छात्र सुबह चार बजे उठकर स्नान करते हैं। योग आदि समाप्त करने के बाद आहार के रूप में दलिया, चने, खिचड़ी, दूध आदि दिया जाता है। प्रतिदिन 8 बजे से 9 बजे तक यज्ञ होता है। तत्पश्चात्‌ कक्षा प्रारंभ होती है। छात्रों में बौधिक विकास एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम सिखाने के लिए हर सप्ताह बाल सभा का भी आयोजन होता है।

गुरुकुल के नियम
1. योग्यता न्यूनतम कक्षा 5 उत्तीर्ण होना अनिवार्य है

2. आयु कम से कम 10 वर्ष योग्यतानुसार

3. किसी भी छात्र को घड़ी, अंगूठी, मोबाइल, रेडियो, कैमरा, कड़ा, चमड़े की वस्तुएं, श्रृंगार का सामान रखने की अनुमति नहीं है।

4. अभिभावक सीधे अपने बच्चे से नहीं मिल सकते हैं

5. वेश-भूषा गुरुकुलीय परम्परानुसार सफेद कुर्ते, कटि वस्त्र, लाल लंगोट, खाकी निक्कर अनिवार्य है।

शिक्षा के साथ गौ सेवा भी

भारतीय ऋषियों, महर्षियों आदि द्वारा बताए गए गौमाता की सेवा के महत्व को जानकर गौशाला व गंगा किनारे शांत एवं एकांत स्थान पर वनप्रस्थ आश्रम की स्थापना की गयी है। जहां नित्य सभी ब्रह्मचारी मिलकर साथ ही अन्य वनप्रस्थी गौ सेवा करते हैं। साथ ही अपने नियमित कार्यों में गऊ सेवा का पुण्य प्राप्त कर रहे हैं। वर्तमान में गौशाला में 47 गाय हैं।

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