पिछले कुछ सालों से लगातार आ रही चेतावनियों के अनुसार विश्व पर छाया प्राकृतिक संसाधनों का संकट वित्तीय संकट से भी बड़ा है। वर्ल्ड वाइल्ड फंड ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि करते हुए कहा है कि अगर दुनियाभर में प्राकृतिक संसाधनों का मौजूदा गति से ही इस्तेमाल जारी रहा तो अगले तीन दशकों में मनुष्य जाति को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दोगुने से ज्यादा संसाधनों की जरूरत होगी।
' द लिविंग प्लेनेट' नामक इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि प्राकृतिक संसाधनों का यह संकट 2008 के वित्तीय संकट से कहीं ज्यादा बड़ा और गंभीर होगा। इस रिपोर्ट के मुताबिक अभी दुनिया का पूरा ध्यान आर्थिक मंदी पर लगा है मगर उससे भी बड़ी एक बुनियादी मुश्किल हमारे सामने आ रही है, वो है प्राकृतिक संसाधनों की भारी कमी की।
पिछले कुछ सालों के आँकड़ों के अध्ययन पर आधारित इस रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि पिछले साल की आर्थिक मंदी के दौर से शेयर बाजार में हुए अनुमानित 20 खरब डॉलर के नुकसान की तुलना अगर आप हर साल हो रहे 45 खरब डॉलर मूल्य के प्राकृतिक संसाधनों के नुकसान से करें तो यह आर्थिक संकट पर्यावरण हानि के आगे कहीं नहीं टिकता।
इस रिपोर्ट में सबसे ज्यादा चिंता इस बात की जताई गई है कि विश्व की 33 प्रतिशत आबादी पानी, हवा और मिट्टी का निर्ममता से इस्तेमाल कर रही है। इसके अलावा जंगल की तेजी से होती कटाई होने से पेड़ प्राकृतिक गति से बढ़ नहीं पा रहे हैं। पहले जरूरत की जो लकड़ियाँ एक ही पेड़ से मिल जाती थीं अब उसके लिए दो से तीन पेड़ काटे जा रहे हैं।
बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई जारी है और इसके मुकाबले पौधारोपण न के लगभग है, जिस वजह से भू-क्षरण की समस्या भी विकराल रूप लेने लगी है। वनों के कटने से वर्षा का अनुपात भी गड़बड़ा गया है, जिसके चलते कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ लगातार संसाधनों को कम कर रही हैं।
इसी तर्ज पर समुद्र में भी मछलियाँ भारी तादाद में पकड़ी जा रही हैं क्योंकि जिस गति से इनका शिकार हो रहा है उतनी तेजी से तो वे बढ़ भी नहीं पातीं। इस वजह से इनके प्रजनन पर सीधा-सीधा असर हो रहा है, नतीजतन पहले के मुकाबले अब छोटी तथा कम वजन वाली मछलियाँ मिल रही हैं।
इस रिपोर्ट में सबसे ज्यादा चिंता इस बात की जताई गई है कि विश्व की 33 प्रतिशत आबादी पानी, हवा और मिट्टी का निर्ममता से इस्तेमाल कर रही है।
ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ग्लेशियरों और ध्रुवों से बर्फ पिघलनी तेज हो गई है, जिस वजह से भी महासागरों के पानी का तापमान बदला है। इसके दूरगामी परिणामों में मछलियों की कई प्रजातियों के खत्म हो जाने का खतरा बना हुआ है। इसके तत्काल प्रभाव का नतीजा हाल ही में सिडनी के पास समुद्र में एकाएक उमड़ आई करोड़ों जैली फिशों के रूप में देखा गया, जिससे पार पाने में ऑस्ट्रेलियाई सरकार को करोड़ों डॉलर खर्च करने पड़े।