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क्या 2030 तक टेक्नोलॉजी से अमर हो जाएगा इंसान, क्या है Google के पूर्व वैज्ञानिक की चौंकाने वाली भविष्यवाणी!

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WD Feature Desk

, सोमवार, 26 मई 2025 (17:42 IST)
Ray Kurzweil Human Immortality prediction: इंसानों का 'अमर' होने का सपना सदियों पुराना है। पौराणिक कथाओं से लेकर साइंस फिक्शन फिल्मों तक, यह विचार हमेशा हमारी कल्पना का हिस्सा रहा है कि किसी दिन हम मौत को मात दे सकते हैं। अब तक सिर्फ कोरी कल्पना लगने वाला यह सिद्धांत जल्द ही हकीकत बन सकता है, ऐसा दावा कर रहे हैं एक ऐसे भविष्यवक्ता, जिनके अधिकांश दावे अब तक सच साबित हुए हैं।

कौन हैं रे कुर्जवील और क्यों मानी जाती है उनकी बात?
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आज हम बात कर रहे हैं रे कुर्जवील की, जो एक अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक, आविष्कारक और भविष्यवादी हैं। उन्हें अक्सर 'भविष्य वैज्ञानिक' कहा जाता है क्योंकि वे टेक्नोलॉजी से जुड़े ऐसे बड़े-बड़े दावे करते हैं, जो हैरान करने वाले होते हैं, लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि उनके ज्यादातर दावे सटीक साबित हुए हैं। यही वजह है कि जब कुर्जवील जैसी शख्सियत कोई भविष्यवाणी करती है, तो दुनिया उसे गंभीरता से लेती है। उन्होंने इंटरनेट के विकास, कंप्यूटर द्वारा शतरंज में मानव को हराने और वायरलेस टेक्नोलॉजी के उदय जैसी कई भविष्यवाणियां दशकों पहले ही कर दी थीं।

2030 तक अमरता की भविष्यवाणी और नैनोबॉट्स का कमाल
रे कुर्जवील का सबसे हालिया और सबसे बड़ा दावा यह है कि साल 2030 तक इंसान अमर हो सकते हैं। यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी के अभूतपूर्व विकास पर आधारित उनकी भविष्यवाणी है। उनके अनुसार, भविष्य की चिकित्सा प्रणाली में नन्हें रोबोट्स यानी नैनोबॉट्स की अहम भूमिका होगी।
कल्पना कीजिए, ये अति-सूक्ष्म नैनोबॉट्स रोबोट हमारे शरीर की नसों में घूम कर अंदरूनी रूप से हमारे स्वास्थ्य की निगरानी करें। इनका मुख्य काम होगा - क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत करना और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को उलटना। अगर यह तकनीक सफल होती है, तो न केवल बीमारियों को उनके शुरुआती चरण में ही ठीक किया जा सकेगा, बल्कि बुढ़ापे को भी रोका जा सकेगा। इसका अर्थ है कि हमारा शरीर हमेशा स्वस्थ और युवा बना रहेगा, जिससे अमरता की अवधारणा हकीकत बन सकती है।

मशीनी बुद्धिमत्ता और 'सिंग्युलैरिटी' का भविष्य
नैनोबॉट्स के अलावा, कुर्जवील आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के भविष्य को लेकर भी कई अहम भविष्यवाणियां कर चुके हैं:
2029 तक AI में मानवीय बुद्धि: कुर्जवील के मुताबिक, साल 2029 तक मशीनें इंसानों जैसी बुद्धि हासिल कर लेंगी और वे 'ट्यूरिंग टेस्ट' (Turing Test) पास कर सकेंगी। ट्यूरिंग टेस्ट का मतलब है कि मशीनें इतनी समझदार हो जाएंगी कि इंसान उनके व्यवहार और प्रतिक्रियाओं में मशीन और इंसान का फर्क नहीं कर पाएगा।
2045: सिंग्युलैरिटी का क्षण: उनका सबसे बड़ा और दूरगामी दावा "सिंग्युलैरिटी" के सिद्धांत पर आधारित है, जिसे वह साल 2045 तक आता हुआ देख रहे हैं। सिंग्युलैरिटी उस समय को कहा जाता है जब तकनीकी विकास इतनी तेजी से होगा कि वह पूरी मानव सभ्यता को ही बदल देगा। कुर्जवील का मानना है कि ऐसा समय आएगा जब  इंसान और AI एक ही हो जाएंगे। इसका सबसे आश्चर्यजनक नतीजा ये होगा कि तब इंसानी चेतना मनुष्य के शरीर के दायरे से आगे जाकर डिजिटल रूप में अपलोड की जा सकेगी और इस तरह इसे अमर बनाया जा सकेगा। इस दौर में इंसानी बुद्धि अरबों गुना बढ़ जाएगी, क्योंकि हम अपनी बनाई तकनीकों के साथ पूरी तरह से जुड़ जाएंगे।

आज की दुनिया में टेक्नोलॉजी की भूमिका
कुर्जवील की इन भविष्यवाणियों को आज की दुनिया में हो रहे तकनीकी विकास से जोड़कर देखना ज़रूरी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। साल 2023 में गूगल के 'जेमिनी' और माइक्रोसॉफ्ट के 'कॉपायलट' जैसे एडवांस AI चैटबॉट्स ने दुनिया को न केवल हैरान किया, बल्कि भविष्य की झलक भी दिखाई। ये चैटबॉट्स जटिल सवालों के जवाब देने, कविताएं लिखने, कोड बनाने और यहां तक कि इंसानों जैसी बातचीत करने में सक्षम हैं।
AI आज हमारे स्मार्टफोन, ऑनलाइन शॉपिंग, मनोरंजन प्लेटफॉर्म्स और यहां तक कि चिकित्सा निदान में भी अहम भूमिका निभा रहा है। यह सब कुर्जवील की भविष्यवाणियों की दिशा में उठाए गए कदम ही लगते हैं।

क्या सच होगी यह भविष्यवाणी?
रे कुर्जवील की ये भविष्यवाणियां जहां कुछ लोगों को उत्साहित करती हैं, वहीं कुछ इसे डरावना भी मानते हैं। टेक्नोलॉजी हमें कितनी दूर ले जाएगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन एक बात तय है कि विज्ञान और टेक्नोलॉजी की रफ्तार लगातार बढ़ रही है। क्या हम सचमुच अमर हो जाएंगे? क्या हमारी चेतना डिजिटल रूप ले लेगी? ये सवाल आज भी बहस का विषय हैं, लेकिन रे कुर्जवील जैसे दूरदर्शी वैज्ञानिकों की भविष्यवाणियां हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि शायद इंसान का सबसे पुराना सपना, यानी 'कभी न मरना', अब कल्पना नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक संभावना बन चुका है।

 

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