उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक का मेगापिक्सल मेला

राम यादव
मंगलवार, 10 सितम्बर 2013 (17:20 IST)
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जर्मनी की राजधानी बर्लिन में उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक के विश्व के सबसे प्रमुख वार्षिक महामेले में दर्शक और प्रदर्शक एक बार फिर भविष्य को बूझने में उलझे हुए हैं। 6 से 11 सितंबर तक चल रहे इस मेले में, जिसे अब भी पिछली सदी के आरंभ में उसके जन्म के नाम 'अंतरराष्ट्रीय रेडियो प्रसारण प्रदर्शनी' के जर्मन प्रथमाक्षर संक्षेप "ईफा" के नाम से ही पुकारा जाता है, नवीनताओं की इतनी भरमार है कि दर्शक को आज तक जो चीजें बिल्कुल आधुनिक लग रहीं थीं, अब प्राचीन लगने लगती हैं।

जिस HD TV ( हाई डेफिनिशन टेलीविजन) की कल तक धूम थी और जो अभी घर-घर पहुंच भी नहीं पाया है, "ईफा" को देख कर लगता है कि उसे अब कूड़े के ढेर पर फेंक देना चाहिए। UHD ( अल्ट्रा हाई डेफिनिशन) टेलीविजन के सामने, जिसे 4 K HD TV भी कहा जाता है, अब तक के HD TV की चमक-दमक और खूबियां पानी भरती नजर आती हैं।

अल्ट्रा हाई डेफिनिशन टीवी UHD/4K : संसार का पहला UHD टेलीविज़न अभी पिछले ही वर्ष बर्लिन के इसी मेले में दिखाया गया था। लेकिन, इस बार तो निर्माता कंपनियों के बीच एक से बढ़ कर एक UHD मॉडल पेश करने की होड़-सी लग गई है। उन के आगे 3 D ( त्रि-आयामी) टेलीविजन को भी कोई घास नहीं डाल रहा। त्रि-आयामी टेलीविजन का जोश तीन-चार साल में हीं ठंडा पड़ गया है। लोग विशेष त्रि-आयामी चश्मा लगा कर सिनेमाघर में कोई फिल्म तो देख लेते हैं, लेकिन घरेलू टीवी के सामने यह चश्मा लगा कर बैठना उन्हें अटपटा लगता है।

UHD या 4 K TV की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उस के पर्दे पर जो तस्वीर बनती है, उसके चित्रबिंदुओं (पिक्सल) की संख्या फुल HD TV (1920 X 1080 = 2073600 पिक्सल) की

अपेक्षा चार गुना (4 K) अधिक, यानी 3840 X 2160 = 83 लाख पिक्सल होती है। इस से तस्वीरों में चार गुना अधिक बारीकियों भरा निखार और तीसरे आयाम का आभास देती एक ऐसी गहराई-सी आ जाती है, जिसके आगे वास्तविक तीसरे आयाम की विशेष जरूरत महसूस नहीं होती, हालांकि UHD टेलीविजन भी 3 D सुविधा से लैस हैं।
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दो मीटर बड़े टीवी पैनल : दूसरी विशेषता यह है कि HD की अपेक्षा चार गुना अधिक बारीकियों को यदि बारीकी से देखना है, तो या तो दर्शक को टीवी-स्क्रीन वाले पैनल के बहुत पास बैठना होगा, या स्क्रीन इतना बड़ा होना चाहिए कि उससे दूर बैठकर भी उन बारीकियों का आनन्द लिया जा सके।

दूसरे शब्दों में, अब ऐसे बड़े-बड़े पैनल और पर्दे सामान्य हो जाएंगे, जो डेढ़ मीटर से भी अधिक चौड़े हैं। ढाई-तीन मीटर दूर बैठ कर भी उन का भरपूर मजा लिया जा सकेगा। इस समय सामान्य HD TV के पर्दे के आकार की तुलना में उससे तीन गुना दूर बैठने की सलाह दी जाती है। UHD TV के प्रसंग में आदर्श दूरी डेढ़ गुना हुआ करेगी।

छोटे आकार के टीवी सेट के लिए UHD का कोई तुक नहीं है। इसलिए निर्माता एक से एक बड़े पर्दे वाले सेट बाज़ार में ला रहे हैं। उदाहरण के लिए, सैमसंग का सबसे बड़ा UHD TV दो मीटर चौड़ा और 1.60 मीटर ऊंचा है।

उसकी कीमत भी वैसी ही विशालकाय हैः 35 हजार यूरो (इस समय 1 यूरो = 86.5 रुपए की दर पर लगभग सवा 30 लाख रुपए)। दक्षिण कोरिया की ही एलजी कंपनी के दो मीटर विकर्ण (डायगनल) आकार के सेट की कीमत 20 हज़ार यूरो (लगभग सवा 17 लाख रुपए) बताई गई।

जहां तक कीमत का प्रश्न है, चीनी कंपनी हिसेन्से सभी नामी कंपनियों को कड़ी टक्कर देती लगती है। उसके 130 सेंटीमीटर विकर्ण वाले सेट की कीमत दो हजार और 151 सेंटीमीटर विकर्ण वाले सेट की कीमत तीन हज़ार यूरो होगी।

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UHD/4K में न फिल्में हैं, न कोई डिस्क : हो सकता है कि समय के साथ UHD TV की कीमतें भी उस ऊंचाई पर न रहें, जिस ऊंचाई पर आज हैं। लेकिन, यह भी हो सकता है कि केवल कीमतों के कारण ही नहीं, इस कारण भी बाजार में दौड़ने से पहले ही वे थक कर चूर हो जाएं कि UHD/4K फॉर्मैट में न तो कहीं कोई टेलीविजन प्रसारण होता है और न ही कोई फिल्म, DVD या ब्लूरे-डिस्क उपलब्ध है।

इसे ध्यान में रखते हुए सभी निर्माता अपने UHD मॉडल इस तरह बना रहे हैं कि वे इस समय उपलब्ध HD TV प्रसारणों तथा DVD या ब्लूरे-डिस्क के डिजिटल सिग्नलों में छिपी बारीकियों को चार गुना बढ़ाकर (अपस्केल द्वारा) पर्दे पर उतारेंगे। स्पष्ट है कि पर्दे पर दिखाई पड़ रही तस्वीरों की गुणवत्ता इस पर निर्भर करेगी कि टेलीविजन प्रसारण या डिस्क की अपनी क्वालिटी कितनी अच्छी है। वैसे, सोनी और पैनासॉनिक जैसी बड़ी कंपनियां बर्लिन में अपने प्रथम UHD/4K वीडियो कैमरे भी लेकर आई हैं।

सही HDMI केबल और इंटरफेस भी चाहिए : जो कोई UHD/4K टीवी सेट खरीदना चाहता है, उसे यह भी याद रखना होगा कि DVD या ब्लूरे-डिस्क प्लेयर को टीवी सेट से जोड़ने के लिए HDMI कहलाने वाले जो हाई डेफिनिशन मल्टीमीडिया केबल अथवा सॉकेट (इंटरफेस) इस समय उपलब्ध हैं, वे प्रतिसेकंड अधिकतम केवल 30 HD तस्वीरों को संभालने की क्षमता रखते हैं।

UHD/4K फॉर्मैट के लिए जरूरत होगी HDMI 2.0 केबल, सॉकेट और सॉफ्टवेयर की। इन सब कारणों से कुछ जानकारों का कहना है कि UHD/4K को, बाजारी प्रतियोगिता में बने रहने के दबाव में, बहुत आपाधापी में बाजार में उतार दिया गाया है। ऐसे में उसका भी वही हाल हो सकता है, जो 3 D TV वाले ढिंढोरे का हुआ।

जो भी हो, यह तो मानना ही पड़ेगा कि बर्लिन के मेले में जिसने UHD/4K TV पर की तस्वीरों का स्वाद चखा है, उस के लिए इस के बाद HD TV के सामने बैठना कुछ ऐसा ही है, मानो वह डिजिटल टीवी से पहले वाले एनालॉग टीवी के जमाने में लौट गया हो।

ओलेड टीवी : कांच के बने भारी-भरकम पिक्चर ट्यूब वाले टीवी सेट पहले ही अपनी अंतिम सांसें गिन रहे थे। उन की जगह आए कहीं हल्के और बड़े पर्दे वाले एलसीडी (लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले LCD) टीवी सेट, जिन में पार्श्व-प्रकाश (बैक लाइट) के लिए बिजली बचाने वाले LED ( लाइट एमिटिंग डायोड/प्रकाश उत्सर्जी डायोड) लगे होते हैं।
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और अब आ रहे हैं प्रकाश उत्सर्जी ऐसे कार्बनिक (प्लास्टिक) डायोड वाले टेलीविजन सेट, जिन्हें 'ओलेड' (ऑर्गेनिक लाइट एमिटिंग डायोड OLED) कहा जाता है। मोबाइल या स्मार्ट फोन का डिस्प्ले-पर्दा उन्हीं का बना होता है। उन्हें टेलीविजन के लिए आवश्यक बड़ा आकार देने की अड़चनें इस बीच इस हद तक दूर हो चुकी हैं कि अब टेलीविजन बनाने वाली सभी प्रमुख कंपनियां अपने-अपने ओलेड मॉडल भी बाजार में उतार रही हैं।

ओलेड तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उसके डायोड क्योंकि स्वयं प्रकाश उत्सर्जित करते हैं, इसलिए ओलेड-स्क्रीन को उस तरह के किसी अलग से पार्श्व-प्रकाश (बैक लाइट) की जरूरत नहीं पड़ती, जैसी एलईडी पर्दे को पड़ती है। इससे वह रंगों की विविधता को एलईडी पर्दे की अपेक्षा कहीं बेहतर ढंग से दर्शा सकता है। साथ ही वह प्लाज्मा डिस्प्ले से भी अधिक चमकीला होता है, बिजली भी कम खपाता है और इतना पतला होता है कि उसे मोड़ा, झुकाया या घुमावदार भी बनाया जा सकता है। टेलीविजन का पर्दा सपाट के बदले घुमावदार (कर्व्ड) होने पर दर्शक को आभास होता है, मानो वह सिनेमा हॉल में बैठा है।

दक्षिण कोरिया की सैमसंग और एलजी कंपनियां फुल एचडी वाले अपने प्रथम ओलेड मॉडल बर्लिन में दिखा रही हैं। एलजी का 55 इंच (143 सेंटीमीटर) घुमावदार पर्दे वाला टीवी पैनल जर्मनी में 9 हजार यूरो (लगभग 7 लाख 78 हजार रुपए) कीमत पर बेचा जाएगा। सैमसंग का मॉडल इससे एक हजार यूरो सस्ता होगा। ओलेड तकनीक के साथ अब तक की यह कमी भी, कि वह चित्रबिंदुओं की संख्या वाली हाई डेफिनिशन सीमा को पार नहीं कर पा रही थी, इस बीच दूर हो गई है।

जापान की पैनासॉनिक कंपनी इस वर्ष के आरंभ में इस लक्ष्मण रेखा को पार करने में सफल हो गई। समझा जाता है कि निकट भविष्य में ओलेड पैनेल वाले ऐसे टेलीविजन भी बर्लिन में देखने में आएंगे, जो UHD/4K की भी बराबरी कर सकें। जहां तक कीमत का प्रश्न है, अनुमान है कि अगले 10 वर्षों में वह साधारण आदमी की क्रयशक्ति के भीतर आ जाएगी। हो सकता है, तब तक ऐसे ओलेड टेलीविजन भी बन जाएं, जिन्हें कमरे में मनचाहे ढंग से कहीं भी चिपकाया अथवा लटकाया भी जा सकेगा।

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स्मार्ट टीवी : पहले कोई उन्हें वेब-टीवी कहता था, कोई इंटरनेट टीवी, कोई हाइब्रिड टीवी तो कोई आईपी-टीवी। लेकिन इस बीच मान लिया गया है कि उन्हे स्मार्ट टीवी कहा जाए। तात्पर्य है टेलीविजन के उस जुड़वां स्वरूप से, जो टेलीविजन के साथ-साथ कंप्यूटर भी है और दोनों का संगम भी।

नई पीढ़ी के स्मार्ट टीवी ऐसे तेजगति प्रॉसेसरों से लैस हैं, जो वीडियो स्ट्रीमिंग को बहुत तेजी से लोड करते हैं, एचडी फिल्मों को भी उनकी पूरी गुणवत्ता के साथ दिखा सकते हैं और लगभग वे सारे काम कर सकते हैं, जिन के लिए कंप्यूटर या स्मार्ट फोन की जरूरत पड़ती है। उन्हें रिमोट कंट्रोल के अलावा बोल कर, हाथ के इशारे से ओर यहां तक कि आंख के इशारे से भी चलाया जा सकता है। भविष्य में स्मार्ट टीवी अपने पर्दे पर सीधे इंटरनेट सेवाओं को दिखाते हुए चालू हुआ करेंगे और यदि उपयोक्ता उन में से किसी का चुनाव नहीं करता, तभी वे सामान्य टेलीविजन वाली अवस्था (मॉड) में चले जाएंगे।

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स्मार्ट फोन और डिजिटल कैमरे का संगम : वैसे तो आजकल के हर मोबाइल या स्मार्ट फोन के भीतर एक नन्हा-सा कैमरा भी होता ही है। लेकिन, ऐसे किसी कैमरे के फोटो उन चित्रों की बराबरी नहीं कर सकते, जो किसी अच्छे डिजिटल कैमरे से लिए गए हों।

सोनी ने दोनों को आपस में जोडने की एक युक्ति निकाली है, नाम दिया है साइबरशॉट। मोबाइल फोन को पूरी तरह कैमरे में बदलने की इस युक्ति के उसने बर्लिन में दो मॉडल पेश किए हैं- साइबरशॉट XQ 10 और XQ100 । इस युक्ति में कैमरे को जब चाहा तब मोबाइल फोन के साथ इस तरह जोड़ दिया जाता है कि मोबाइल फोन का डिस्प्ले कैमरे के व्यूफाइंडर और डिस्प्ले का भी काम करता है। कैमरे द्वारा ली गई तस्वीरों को तुरंत या किसी भी समय मोबाइल फोन के द्वारा कहीं भी भेजा जा सकता है।

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स्मार्ट फोन और कलाई घड़ी का संगम : कलाई घड़ी, जो साथ ही स्मार्ट फोन का भी काम करती है और जिसे स्मार्टवॉच नाम दिया गया है, इस बार वह सबसे नया शगूफा है, जिस की बर्लिन के उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक मेले में काफी चर्चा है।

सैमसंग और सोनी सहित कई दूसरी कंपनियां भी घड़ी को मोइबाल फोन बनाने की इस होड़ में शामिल हैं। इस दोगले (हाइब्रिड) संस्करण की पहली पीढ़ी का घड़ी वाला पक्ष तो अपने आप में सबसे सहज और पूरा है, पर मोबाइल या स्मार्ट फोन वाला पक्ष अभी काफ़ी कुछ अधूरा है।

एक तो इन घड़ियों का डिस्प्ले बहुत छोटा होने के कारण मोइबाइल फोन के तौर पर उनका इस्तेमाल करते समय सही नंबर डायल करना या पहले से संरक्षित नाम अथवा नंबर को ढूंढना, ईमेल या एसएमएस लिखते समय अक्षरों को अंगुली से सटीक दबा सकना आसान नहीं है, दूसरे, उनके लायक बहुत से प्रयोजन (एप्स) या तो अभी उपलब्ध नहीं हैं या वे हमेशा काम नहीं करते। कीमतें भी अभी बहुत अधिक हैं, हालांकि वे जल्द ही गिर भी सकती हैं। ये घड़ियां देखने-दिखाने और अपने आप को कुछ लगने-लगाने के लिए तो ठीक हैं, पर स्मार्ट फ़ोन की बहुविध खूबियों से अभी दूर हैं।

( चित्रः सोनी का साइबरशॉट स्मार्टफोन कैमरा)

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