उल्लेखनीय है कि 5 मई 2012 को नेपाल के खूबसूरत पर्यटन स्थल पोखरा के पास स्थित हिमनद से बनी प्राकृतिक झील में दरार पड़ गई और करोड़ों गैलन बर्फीले पानी और मिट्टी के सैलाब ने देखते ही देखते इस खूबसूरत पर्यटक स्थल पर बने रिसॉर्ट सहित कई घर, खेत-खलिहानों को तबाह कर दिया था।
क्या होती है फ्लैश फ्लड, आगे ं....
क्या होती है आकस्मिक बाढ़ : बिना किसी बरसात के तटबंध टूटने या मीलों दूर पहाड़ों में हुई बरसात से अचानक आई ऐसी बाढ़ को फ्लैश फ्लड या आकस्मिक बाढ़ कहा जाता है। इसका एक और कारण होता है कि गर्मी के चलते ग्लेशियरों का पानी पहाड़ की ढ़लानों पर बनी झीलों में भरने लगता है और पानी के बढ़ते दबाव से तटबंध टूट जाता है और बाढ़ आ जाती है।
विशेषज्ञों के अनुसार इसका एक बड़ा संभावित कारण है ग्लेशियर का तेजी से पिघलना या पहाड़ों में भारी बारिश से बाढ़ आना। हिमालय पर्वत श्रृंखला में ऐसी कई झीलें हैं जो ग्लेशियर से बनी हैं। पिछले साल ग्लोबल वॉर्मिंग से सिकुड़ते हिमक्षेत्र की खबरों के बीच हिमालय के हिमनदों के बढ़ते फैलाव की खबरें भी सामने आई थीं।
लेकिन वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि ग्रीन हाउस के प्रभाव से लगातार गर्म होती जलवायु से हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं। मौसम चक्र के बदलने से पानी से भरे बादल पहाड़ों से टकरा कर अचानक से मानों लाखों गैलन पानी उड़ेल देते हैं नतीजतन पहाड़ों की ढ़लान पर स्थित क्षेत्रों पर फ्लैश फ्लड आने का खतरा बना रहता है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले कुछ वर्षों में हिमालय क्षेत्र में स्थित इन झीलों पर ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते खतरा मंडरा रहा है। चीन के हिमालयी क्षेत्रों में पिछले कई सालों में ऐसी आकस्मिक बाढ़ आने से जान-माल का भारी नुकसान हुआ है।
भयानक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं मौसमी बदलाव स े, आगे...
इतना ही नहीं, ग्लोबल वॉर्मिंग से हिमनदों के पिघलने और मौसम के बदलाव से चीन, भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को भयानक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। घनी आबादी वाले इन एशियाई देशों के लगभग 100 करोड़ से अधिक लोगों का गुजर-बसर गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी ग्लेशियर से निकलने वाली प्रमुख नदियों से होता है। भारी बारिश या तेजी से पिघलते हिमनदों से यह जीवनदायिनी नदियां अपने किनारों को तोड़ मैदानी इलाकों में बाढ़ का कहर बरपा सकती हैं, लेकिन यह तो समस्या की शुरुआत है।
हिमनदों का पिघलना सिर्फ एक मौसमी बदलाव मात्र नहीं रहेगा. इसकी वजह से अप्रत्याशित सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिणाम भी सामने आएंगे। बाढ़ के दूषित जल से फैली महामारी तथा पीने के पानी का संकट करोड़ों लोगों को प्रभावित क्षेत्र से पलायन पर मजबूर कर देगा। जमीन डूबने और अस्तित्व बचाने के लिए शरणार्थियों तथा विस्थापितों की फौज अन्य शहरों या दूसरे देशों की ओर भी रुख करेगी। यह समस्या दो देशों के बीच तनाव का कारण बन सकती है।
पानी के संकट को दूर करने के लिए सभी देश अपने-अपने क्षेत्रों में बहने वाली नदियों पर बांध बनाकर स्थिति को विस्फोटक बना देंगे. पानी को बांध लेने से दूसरे देशों को पर्याप्त पानी नहीं मिल सकेगा जिसके नतीजे में अंतरराष्ट्रीय संबंध कटु होते चले जाएंगे। भारत-बांग्ला देश के मध्य जारी तीस्ता नदी विवाद इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है।
बदलते मौसम और पानी के संकट से फसलों की गुणवत्ता पर असर होगा। कम होते अनाज उत्पादन से खाद्य पदार्थों की कीमतें भी ऊंची हो जाएंगी। कुदरत के कहर को झेल रहे गरीबों के सामने खाने-पीने का संकट उत्पन्न हो जाएगा। ग्लोबल वॉर्मिंग से पिघलते हिमनदों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी चिंता जताई जा रही है लेकिन किसी न किसी मामले पर विकसित तथा विकासशील देशों के बीच पैदा होने वाले गतिरोध इसका कोई ठोस उपाय निकालने में बाधा बन रहे हैं।