खाद्यान्नों का उपयोग केवल खाने के लिए हो : येमिली कैसिडी और उनके सहयोगी वैज्ञानिकों ने खेतिहर भूमि का विस्तार करने के बदले यह जानने का प्रयास किया कि कितने लोगों का पेट तब भरा जा सकता है, जब खाद्यान्नों वाली फसलों का उस तरह उपयोग न हो जिस तरह आज होता है। इसे जानने के लिए सबसे पहले उन्होंने हिसाब लगाया कि भोजन के काम आने वाली 41 सबसे प्रमुख फसलों की इस समय विश्वव्यापी पैदावार कितनी है और उनका किस-किस काम के लिए उपयोग होता है। इस गणना के लिए उन्होंने 1997 से 2003 के बीच के आँकड़े जुटाए।
विज्ञान पत्रिका एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स में अपना अध्ययन प्रकाशित करते हुए उन्होंने लिखा है * खाद्यान्नों वाली फसलों का केवल 67 प्रतिशत मानवीय खाद्य पदार्थों के रूप में काम लाया जाता है। इसे यदि कैलोरी में यानी भोजन से मिलने वाली ऊर्जा में बदलकर देखा जाए तो यह अनुपात केवल 55 प्रतिशत रह जाता है।
* 24 प्रतिशत हिस्से (36 प्रतिशत कैलोरी) का पशुओं के चारे के रूप में उपयोग होता है।
9 प्रतिशत फसल (इतनी ही कैलोरी भी) बायोडीजल जैसे ईंधनों में बदल दी जाती है।
बायोडीजल भुखमरी बढ़ाता है : उल्लेखनीय है कि खाद्यान्नों वाली फसलों का जैविक ईंधन के रूप में उपयोग इस बीच इस तेजी से बढ़ रहा है कि खाद्यान्नों की कीमत दुनियाभर में चिंता का विषय बन गई है। कार का मोटर हमारे पेट का प्रतिद्वंद्वी बनता जा है। सन् 2000 में अमेरिका में मक्के की केवल जहाँ 6 प्रतिशत फसल जैविक ईंधन बनाने के काम आती थी, वहीं 2010 में यह अनुपात बढ़कर 38 प्रतिशत हो गया।
इन शोधकों ने प्रति व्यक्ति 2700 किलो कैलोरी के बराबर दैनिक भोजन को अपनी गणना का आधार बनाकर भारत, चीन, ब्राजील और अमेरिका जैसे संसार के चार सबसे बड़े अनाज उत्पादक देशों में अनाज के उत्पादन और उपभोग का अलग से विश्लेषण भी किया।
* चीन में 58 प्रतिशत फसल भोजन यानी सीधे कैलोरी के रूप में इस्तेमाल होती है और 33 प्रतिशत जानवरों के चारे के रूप में। वहाँ प्रति हेक्टर खेतिहर भूमि 8 लोगों को पोषित करती है। यदि अनाजों की सारी फसल का भोजन के रूप में उपयोग हो रहा होता तो प्रति हेक्टर भूमि 13 लोगों के पेट भर रही होती। ब्राजील में भी लगभग यही स्थिति है।
* अमेरिका में तो खाद्यान्नों वाली फसल का केवल 35 प्रतिशत भाग ही सीधे भोजन यानी कैलोरी के रूप में इस्तेमाल होता है, जबकि उससे मिलने वाली 67 प्रतिशत ऊर्जा (कैलोरी) पशुओं का चारा बन जाती है। वहाँ प्रति हेक्टर खेतिहर भूमि केवल 5 लोगों के पेट भरती है, जबकि उससे अघा सकते हैं 16 लोग।
* खाद्यान्नों का सीधे खाने के लिए ही सर्वोत्तम उपयोग केवल भारत में होता है। भारत में अनाज की फसल का 90 प्रतिशत सीधे भोजन के रूप में काम आता है, लेकिन भारत में प्रति हेक्टर उपज कहीं कम है इसलिए इस उपज से केवल 6 लोगों के ही पेट भर पाते हैं।
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