प्रतिपदार्थ के निर्माण में अपूर्व सफलता

वैज्ञानिकों ने पाई एक बड़ी सफलता

राम यादव
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010 (17:51 IST)
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स्विट्जरलैंड में जेनेवा स्थित यूरोपीय परमाणु भौतिकी प्रयोगशाला सेर्न के वैज्ञानिकों को एक अपूर्व सफलता मिली है। वे हमें ज्ञात पदार्थ के विलोम समझे जाने वाले प्रतिपदार्थ (एंटीमैटर) का निर्माण करने में सफल रहे हैं। यह प्रतिपदार्थ हमारे भौतिक जगत के किसी परमाणु की दर्पण में बनी प्रतिछवि के समान है। पदार्थ और प्रतिपदार्थ आपस में मिलते ही एक-दूसरे को तुरंत नष्ट कर देते हैं। इसीलि प्रतिपदार्थ का निर्माण कर सकना बहुत बड़ी चुनौती रहा है।

वैज्ञानिक जब पदार्थ की बात करते हैं, तो उनका तात्पर्य पदार्थ की परमाणु कहलाने वाली उन इकाइयों से होता है, जिनसे इस चराचर जगत की हर चीज बनी है। चाहे हवा हो या पानी, हमारा शरीर हो या लोहे-तांबे जैसी धातुएँ, या फिर ग्रह, नक्षत्र और तारे, सभी के मूल में किसी-न-किसी तत्व के परमाणु छिपे होते हैं।

परमाणु भी इल ेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटोन कहलाने वाले मूलकणों के बने होते हैं। हमारी दुनिया के इलेक्ट्रॉनों पर बिजली का ऋणात्मक (नेगेटिव) आवेश होता है। प्रोटोनों पर धनात्मक (पॉज़िटिव) आवेश होता है और न्यूट्रॉनों पर कोई आवेश (चार्ज) नहीं होता।

न्यूट्रॉन और प्रोटोन परमाणु के नाभिक (केंद्र) में रहते हैं और इलेक्ट्रॉन इस नाभिक की उसी तरह परिक्रमा करते हैं, जिस तरह पृथ्वी सहित सभी ग्रह सूर्य के फेरे लगाते हैं। किसी परमाणु में इन तीन मूल कणों की अलग- अलग संख्या ही उसे ठोस, तरल या गैसीय आकार वाले अलग-अलग तत्वों का रूप देती है।

प्रतिपदार्थ क्या है?
प्रतिपदार्थ का हर परमाणु भी मूल रूप में इन्हीं तीनों मूल कणों का बना होता है, पर उस के न्यूट्रॉनों को छोड़ कर बाकी दोनों कणों पर का विद्युत आवेश उलटा होता है। यानी उसके इलेक्ट्रॉनों पर ऋणात्मक नहीं, धनात्मक आवेश होता है, इसीलिए उन्हें पॉज‍िट्रॉन कहते हैं। इसी तरह प्रतिपदार्थ के प्रोटोनों पर धनात्मक नहीं, ऋणात्मक आवेश होता है और वे एन्टीप्रोटोन कहलाते हैं।

मजे की बात यह है कि पूरे ब्रह्मांड में ऐसी कोई जगह नहीं मिली है, जो प्रतिपदार्थ की बनी हो, हालाँकि परमाणुओं को बहुत तीव्र गति से आपस में टकराने पर जब वे टूट कर बिखरते हैं, तो एक अति अल्प क्षण के लिए प्रतिपदार्थ वाले मूल कण भी बनते हैं।

वैज्ञानिक लंबे समय से कहते रहे हैं कि हमें ज्ञात पदार्थ के हर मूल का एक प्रतिकण भी होना चाहिए। प्रयोगशालाओं में यह सिद्ध हो चुका है। लेकिन, ब्रह्मांड को देखने पर लगता यही है कि वह केवल हमें ज्ञात सामान्य पदार्थ (परमाणुओं) का ही बना हुआ है।

प्रतिपरमाणु का निर्माण
सेर्न प्रयोगशाला में प्रतिपरमाणु का निर्माण करने के प्रयोग में, जिसे अल्फा नाम दिया गया था, एन्टी-हाइड्रोजन के 38 परमाणु पैदा किए गए। उनका जीवनकाल एक सेकंड के केवल एक छोटे-से हिस्से जितना ही लंबा था, पर विज्ञान जगत इसे एक चमत्कारिक उपलब्धि मानता है।

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हाइड्रोजन के परमाणु की संरचना सबसे सरल मानी जाती है। उसके नाभिक (केंद्र) में केवल एक प्रोटोन होता है और केवल एक ही इलेक्ट्रॉन इस प्र ोटोन के चारो तरफ फेरे लगाया करता है। अतः एन्टी-हाइड्रोजन बनाने के लिए भी केवल एक एन्टीप्रोटोन और उसका चक्कर लगाने वाले एक पॉज‍िट्रान की जरूरत थी। पॉज‍िट्रॉन कुछेक रेडियोधर्मी पदार्थों के बिखरने से बनते हैं और एन्टीप्रोटोन सेर्न की महामशीन (लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर- LHC) जैसे त्वरकों में पैदा किए जा सकते हैं, प्रतिपदार्थ वाले प्रयोग अल्फा के प्रवक्ता जेफ्री हैंग्स्ट ने बताया।

उनका कहना है, 'सेर्न ही इस समय दुनिया में एकमात्र ऐसी जगह है, जहाँ हमें अपने प्रयोग लायक एन्टीप्रोटोन मिल सकते हैं। हम उन्हें त्वरक (एक्सिलरेटर) में तांबे की एक पट्टी पर सामान्य प्रोटोनों की अत्यंत तेज गति बौछार से पैदा करते हैं।'

चुंबकीय बल से अधर में बाँधा
तांबे की पट्टी पर इस तेज़गति बौछार से जो एन्टीप्रोटोन बनते हैं, वे स्वयं भी इतना अधिक गतिवान होते हैं कि पॉज‍िट्रॉनों के साथ मिल कर कोई गठबंधन नहीं बना सकते। इसलिए, गति घटाने वाले एक प्रमंदक की सहायता से लगभग प्रकाश जितनी तेज उनकी गति को किसी स्कूटर जितनी धीमी गति पर लाना पड़ता है। जेफ्री हैंग्स्ट बताते हैं कि 'उन्हें बाँधने के लिए हम बिजली के बड़े-बड़े चुंबकों द्वारा एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र पैदा करते हैं। इस चुंबकीय क्षेत्र के द्वारा हम एन्टीप्रोटोनों और पॉज़िट्रॉनों, दोनों को बाँधे रखते हैं।

दोनों विद्युत-आवेशधारी होने के नाते चुंबकीय क्षेत्र में फँस जाते हैं और यदि भाग्य साथ देता है, तो वे आपस में मिलकर एक प्रति-परमाणु का निर्माण करते हैं। इस प्रति-परमाणु पर कोई विद्युत-आवेश नहीं होता, यानी वह आवेशरहित (न्यूट्रल) होता है।'

आवेश रहित तटस्थता बनी सिरदर्द
प्रतिपरमाणु की यह आवेशरहित तटस्थता ही वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द साबित हो रही थी। विद्युत-आवेशरहित कणों को चुंबकीय क्षेत्रों में बाँधना टेढ़ी खीर होता है। वे बार-बार फिसल कर निकल भागते हैं। प्रतिपरमाणु कणों को चुंबकीय क्षेत्र में बाँधे रख कर अधर में लटकाए रखना इसलिए जरूरी था, ताकि वे अपने आस-पास की किसी सूक्ष्मतम चीज को भी छू न सकें, वर्ना पदार्थ-प्रतिपदार्थ का संपर्क होते ही दोनों एक-दूसरे का सफाया कर देते।

परम निर्वात और परमशून्य तापमान
जो एकमात्र तरकीब कारगर सिद्ध हुई, वह थी प्रतिपरमाणु कणों को 0.5 डिग्री केल्विन तक, यानी इतना ठंडा करना कि उनका तापमान परमशून्य वाले तापमान ऋण 273 डिग्री सेल्सियस से केवल आधा डिग्री अधिक रह जाए। इस परमशून्य तापमान पर भी उन्हें ऐसे परम निर्वात (वैक्यूम) में रखना पड़ा कि हवा का कोई परमाणु तक उनके संपर्क में न आ सके, वर्ना पदार्थ-प्रतिपदार्थ की जन्मजात दुश्मनी दोनों को मिटा देती। इस सबको संभव बनाने में वर्षों का समय लग गया।

सफलता मिली अब जाकर
गत 18 नवंबर को जेफ्री हैंग्स्ट ने घोषणा की, 'अपने प्रयोग में हम प्रतिहाइड्रोजन के 38 परमाणुओं को 0.2 सेकंड तक पकड़े रख सके। इस तरह हमने सिद्ध कर दिया कि हमारी युक्ति काम करती है। अब हम कोशिश करेंगे सैकड़ों की संख्या में प्रतिपदार्थ वाले प्रति-परमाणुओं को कई सेकंड तक पकड़े रखने की।'

जानना है प्रति-परमाणुओं के गुणधर्म
अगले प्रयोगों में सेर्न के वैज्ञानिक प्रतिपरमाणुओं के गुणधर्म जानने के लिए लेज़र किरण की सहायता से उन्हें जाँचने-परखने की चेष्टा करेंगे। 'हम जानने का प्रयास करेंगे कि हाइड्रोजन और एन्टी-हाइड्रोजन क्या एक ही जैसे भौतिक नियमों का पालन करते हैं? विज्ञान के सिद्धांत तो यही कहते हैं कि दोनों पर एक ही जैसे भौतिक नियम लागू होने चाहिए। हम नहीं जानते कि ऐसा है या नहीं, क्योंकि अभी तक तो कोई वैज्ञानिक प्रतिपरमाणु का अध्ययन नहीं कर पाया है,' कहना था जेफ्री हैंग्स्ट का।

पदार्थ का होना है पहेली
यदि वैज्ञानिकों को दोनों के गुणधर्म में कोई अंतर मिला, तो शायद उन्हें विज्ञान के सामने खड़ी इस चिर पहेली का भी उत्तर मिल जायेगा कि हमें दृष्टिमान ब्रह्मांड में पदार्थ के हमारी दुनिया वाले अणुओं-परमाणुओं का ही साम्राज्य क्यों है? सिद्धांततः तो ब्रह्मांड के जन्मदाता महाधमाके (बिग बैंग) के समय, यानी 13 अरब 70 करोड़ साल पहले, परमाणु और प्रतिपरमाणु बराबर-बराबर मात्रा में ही रहे होने चाहिए।

बाद में यह होना चाहिए था कि दोनों एक- दूसरे का इस तरह सफाया कर देते कि ब्रह्मांड में पदार्थ या प्रतिपदार्थ जैसा कुछ बचता ही नहीं। लेकिन हम तो यही देख रहे हैं कि ब्रह्मांड अरबों-खरबों तारों ही नहीं, एक से एक विशालकाय तारकमंडलों से भरा पड़ा है और वे हमारी दुनिया वाले अणुओं-परमाणुओं के ही बने लगते हैं।

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