अमेरिका का नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ अक्ल की जीन को लेकर दिन-रात काम कर रहा है। दिमाग माने भेजा तो सबके पास होता है, वैज्ञानिक इस बात की जांच-पड़ताल कर रहे हैं कि क्या अक्ल भी सबके पास होती है? कहते भी हैं कि टोपी तो उसने टॉलस्टाय जैसी पहन ली मगर वैसा दिमाग कहां से लाएगा।
वैज्ञानिक कहते हैं कि भले ही अक्ल सबके पास होती हो मगर सब के पास बराबर मात्रा में नहीं होती। वैज्ञानिक लंबे अरसे से इस बात की खोज-खबर कर रहे थे कि दिमाग में अक्ल किस जगह होती है। क्या पूरे दिमाग में थोड़ी-थोड़ी फैली हुई होती है या कोई ऐसा भी खुशनसीब कोना है जहां अक्ल अकड़ के साथ रहती है।
वैज्ञानिकों ने अंततः खोज लिया कि अक्ल दिमाग में एक जगह पाई जाती है जिसे लेटरल फ्रंटल कोरटेक्स कहते हैं। एक बार अक्ल की इस नायाब जीन का पता चल जाए तो फिर पगले भी सयाने हो जाएंगे। फिर कोई नकचढ़ा टीचर किसी ढीलूलाल छात्र को यह नहीं कहेगा कि इसके दिमाग में तो भूसा भरा हुआ है। बस जरा-सा ऑपरेशन और मिट्टी के माधो भी जाने-माने स्कॉलर व महान संगीतकार बन जाएंगे। दुखी रहने वाले सड़ियल थोबड़े वाले मुस्करा-मुस्कराकर दोहरे हो जाएंगे।
शोधकर्ता हर बात पर शोध करते रहते हैं। सेक्स-व्यवहार पर दुनिया भर में कई शोध व अध्ययन चल रहे हैं। अब तक सात पर्दों में छुपाकर लुक्का-छिपी से समझे जाने वाले इस विषय पर वर्तमान में सबसे ज्यादा शोधकार्य चल रहा है। हंसना-हंसाना यानी सेंस ऑफ ह्यूमर जो दुनिया में हमेशा आउट ऑफ फैशन तथा बड़ा अनकॉमन रहा है, उस पर बहुत कम शोध हुए हैं।
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अखबार की ताजा खबर है कि इन दिनों लोग हंसने-हंसाने को बहुत सीरियसली ले रहे हैं। इस नई सदी में जवान होने वाली पीढ़ी अपने कॅरियर और सामाजिक प्रतिष्ठा को लेकर बहुत गंभीर हो गई है। मानवीय त्रासदी है कि हम अति के शिकार हो गए हैं।
ताजा रिपोर्ट कहती है कि जर्मनी में बीस से अधिक ऐसे प्रोफेशनल क्लीनिक खुल गए हैं जो मरीजों को लॉफ्टर यानी ठहाका थेरेपी से ठीक करते हैं। इन मरीजों को दिल खोलकर हंसा-गुदगुदाकर स्वस्थ मानसिकता में लाया जाता है। साइड इफेक्ट वाली महंगी व कड़वी दवा के स्थान पर उन्हें लतीफे, चुटकले व हास्य पैरोडियां सुनाई जाती हैं। इसका असर बहुत जल्द व प्रभावी देखा गया है। कई देश जो स्वस्थ रहने के इन हसोंड़ तरीकों पर कभी हंसा करते थे, अब इस थेरेपी को आजमाने लगे हैं।
अनेक देशों में मानसिक रोगियों पर ठहाका थेरेपी का सफल प्रयोग हो रहा है। इस थेरेपी से मरीजों के चेहरे पर मुस्कराहट व हंसी लाने के लिए अटपटा संगीत, हास्य कथाएं तथा शारीरिक हरकतों का प्रयोग हो रहा है। पहले के राजा अपने आसपास एक मसखरा यानी विदूषक अथवा क्लाउन रखते थे जो भारी दरबारी कार्य के बाद राजा की थकान अपनी हंसी की फुहारों से मिटाता था।
वैज्ञानिक बहुत गंभीरता से शोध करते हैं। वे मजाक नहीं करते। वे कहते हैं कि सेहत ठीक रहे इसके लिए रोजाना ताली बजाइए। कुछ ऐसा ही दावा करते हैं खुद को योगी बतानेवाले दिल्ली निवासी कृष्ण बजाज। वह कहते हैं कि ताली बजाने से खून में गर्मी बनी रहती है और शरीर तंदुरुस्त रहता है। ताली योगासन से तनाव, रक्त-दबाव, मधुमेह व अस्थमा जैसी जानलेवा बीमारियों से बचा जा सकता है। वैसे तो भारतीय जनता कितनी भोली है जो बीसियों पार्टियों के नेताओं के लुभावने भाषणों और सब्जबाग दिखाने वाले वादों पर ताली पीटती रहती है।
सयाने लोग सही कहते हैं कि चिंता चिता समान होती है जो घुन की तरह धीरे-धीरे आदमी के स्वास्थ्य को चाट जाती है। सबकी राय यही है कि अगर स्वस्थ रहना है तो सब चिंताएं भुलाकर खुलकर हंसो और दूसरों को हंसाओ। सच बात तो यह है कि खाली पेट आदमी की चिंता का इलाज तो रोटी ही है फिर भी किसी के उदास चेहरे पर मुस्कराहट लाना बहुत ही पुण्य का काम है।
निदा फाजली कहते हैं, 'घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।' सही कहा गया है, 'या तो दीवाना हंसे या तू जिसे तौफीक दे, वर्ना दुनिया में हंसे किसकी मजाल है।' अकबर इलाहाबादी कहते हैं, 'कर क्लर्की, खा डबल रोटी खुशी से फूल जा।'
सदा गंभीर रहने वालों को सीरियस और भयानक किस्म की बीमारियां घेर लेती हैं, चेहरा झुर्रियों से भर जाता है, हमेशा कब्ज रहती है, पड़ोसियों के साथ लंबे-लंबे मुकदमे चलते हैं, बॉस तरक्की नहीं देता और बीवी से हर वक्त खटपट रहती है। नेता लोग क्यूं लंबी उम्र तक स्वस्थ व जिंदा रहते हैं? एक ही राज है-वे किसी भी समस्या को कभी गंभीरता से नहीं लेते।