इस समय न्यूनतम सौर सक्रियता : इस बीच अमेरिका में कैलीफ़ोर्निया की विलकॉक्स सौर वेधशाला के वैज्ञानिक भी सूर्य पर नज़र गड़ाए हुए हैं। उनका कहना है कि सूर्य इस समय न्यूनतम कलंकों वाले दौर से गुज़र रहा है। इन कलंकों का संबंध हमेशा सूर्य की उन चुंबकीय गतिविधियों से होता है, जो काफी गहराई पर उसके भीतर चल रही होती हैं। यानी, सौर कलंक सूर्य के गर्भ में हो रही गतिविधियों की अभिव्यक्ति हैं। वे सुराग देते हैं कि सूर्य के भीतर कब और कहाँ शक्तिशाली या दुर्बल चुंबकीय बलक्षेत्र बन रहे हैं।
ये बलक्षेत्र सूर्य के गर्भ में छिपे ऐसे डायनामो ( Dynamo) की हरकतों से बनते हैं, जिन के बारे में अभी कुछ ठीक से पता नहीं है। अनुमान यही है कि चुंबकीय बलक्षेत्र के रूप में यह डायनमो-प्रभाव बेहद संपीड़ित एवं तप्त गैसों की गाढ़ी परतों के बीच आपसी रगड़ से पैदा होता है।
कोई बलक्षेत्र जब एक निश्चित मात्रा तक शक्ति जुटा लेता है, तो वह किसी विशाल बुलबुले की तरह उठ कर ऊपर आ जाता है और अपने साथ लाई सामग्री के साथ आस-पास का तापमान इस तरह प्रभावित करता है कि वह जगह, पड़ोसी क्षेत्रों की तुलना में कम चमकीली होने से, हमें किसी धब्बे या कलंक जैसी नज़र आती है। डायनमो-प्रभाव से बना चुंबकीय बलक्षेत्र किसी एक ही जगह टिका नहीं रहता, इसलिए धब्बे भी चलते-फिरते नज़र आते हैं।
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चलते-फिरते सौर कलंक : यदि पृथ्वी पर की भूमध्यरेखा और उसके समानांतर उत्तर और दक्षिण में चलने वाली अक्षांश रेखाओं जैसी काल्पनिक रेखाएँ सूर्य पर खींची जायें, तो देखने में यह भी आता है कि सौर कलंकों के रूप में अपने आप को अभिव्यक्त करने वाले चुंबकीय बलक्षेत्र मुख्य रूप से सूर्य की मध्यरेखा से निकटवर्ती अक्षांश रेखाओं के बीच बनते हैं। औसतन 11 वर्ष के हर सौर-सक्रियता चक्र के दौरान वे सौर-मध्यरेखा से चल कर ध्रुवों की तरफ बढ़ते हैं और रास्ते में पड़ने वाले पुराने कलंकों को -अर्थात उन्हें बनाने वाले चुंबकीय बलक्षेत्रों को- निगलते हुए अपना रास्ता बनाते हैं। सूर्य के दक्षिणी ध्रुव के पास इस समय यही देखने में आ रहा है।
सू्र्य का उत्तरी ध्रुव इस बीच ऋणात्मक (नेगेटिव) से धनात्मक (पॉज़िटिव) बन भी चुका है, जबकि दक्षिणी ध्रुव अभी भी धनात्मक ही बना हुआ है। इस तरह कह सकते हैं कि सूर्य ठीक इस समय एक ऐसा विराट चुंबक है, जो केवल एकध्रुवीय (मोनोपोलर) है, क्योंकि उसके दोनों ध्रुव इस समय धनात्मक हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि दक्षिणी ध्रुव भी अगले तीन से चार महीनों में धनात्मक से ऋणात्मक बन जएगा।
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कैसे होती है मंगल पर सौर कणों की मूसलाधार बौछार... पढ़ें अगले पेज पर...
मंगल पर सौर कणों की मूसलाधार बौछार : पर, मंगल जैसे जिन ग्रहों के पास अपना चुंबकीय बलक्षेत्र नहीं है, वहाँ इन घातक कणों की निर्बाध मूसलाधार बौछार हो सकती है। मंगलग्रह के भावी यात्रियों के लिए इससे एक बहुत ही ख़तरनाक स्थिति पैदा हो सकती है। स्वयं पृथ्वी पर भी रोडियो और टेलीविज़न प्रसारण तथा उपग्रह आधारित संचार प्रणालियाँ कुछ समय के लिए छिन्न-भिन्न हो सकती हैं। इस तरह की समस्याएँ सौरमंडल की उस सबसे बाहरी सीमा तक पैदा हो सकती हैं, जिसे होलियोस्फ़ियर (सौर प्रभावमंडल) कहा जाता है और जिस के बाद हामारी आकाशगंगा के चुंबकीय प्रभावों और ब्रह्मांडीय किरणों का दबदबा शुरू होता है।
चुंबकीय ध्रुवों की प्रकृति में अदलाबदली पृथ्वी पर भी होती है। लेकिन, पृथ्वी पर के उत्तरी और दक्षिणी चुंबकीय ध्रुव सूर्य के चुंबकीय ध्रुवों की अपेक्षा कहीं अधिक टिकाऊ हैं। उनके बीच पिछली अदलाबदली 7 लाख 80 हज़ार वर्ष पूर्व हुई थी। उसे पूरा होने में 5 हज़ार साल लगे थे। इससे पृथ्वी पर की प्रकृति या जीवन पर कोई उल्लेखनीय प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा।