सौरमंडल के नौवें ग्रह की तलाश

राम यादव
गुरुवार, 9 दिसंबर 2010 (14:41 IST)
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खगोल वैज्ञानिक एक बार फिर सौरमंडल के नौवें ग्रह की तलाश में लग गए हैं। अंतरराष्ट्रीय खगोलविज्ञान संघ ने 2004 में चेक गणराज्य की राजधानी प्राग में हुए अपने सम्मेलन में ग्रहों की परिभाषा में कुछ संशोधन किए थे। इन संशोधनों के कारण बेचारे प्लूटो से, जो दशकों से नौवें ग्रह के पद पर विराजमान था, उसका पद छीन लिया गया और उसे एक लघुग्रह घोषित कर दिया गया। तभी से नौवें ग्रह का पद खाली है।

प्लूटो का दोष यह था कि वह सौरमंडल के अन्य ग्रहों की अपेक्षा सचमुच बहुत छोटा है। उसने कुइपर रिंग कहलाने वली उस पट्टी के अपने आस-पास के ढेर सारे अन्य छोटे-मोटे पिंडों का सफाया भी नहीं किया है, जो नई परिभाषा के अनुसार परिपक्व ग्रह कहलाने की शर्त है। इस रिंग में उसके अन्य लघुग्रह साथी हैं एरिस और सेदना। यह रिंग नेप्चून के पार 70 हजार से अधिक ऐसे आकाशीय पिंडों का जमावड़ा बताई जाती है, जो 100 किलोमीटर से बड़े हैं और सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

अमेरिका में लुइजियाना विश्वविद्यालय के खगोलविदों का कहना है कि सौरमंडल के बिल्कुल बाहरी किनारे पर, जहाँ से हमारी आकाशगंगा शुरू होती कही जा सकती है, एक ऐसा विशाल पिंड होना चाहिए, जिसकी द्रव्यराशि हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह गुरु (ज्यूपिटर) से भी डेढ़ गुना ज्यादा है। उसे अभी देखा नहीं गया है, लेकिन कंप्यूटर से की गई गणनाएँ यही इशारा करती हैं।

इन वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारे सौरमंडल की बाहरी सीमा से परे ऊर्ट नाम के बादल से हो कर गुजर रहे धूमकेतु (कॉमेट) जिस तरह सौरमंडल की सीमा के भीतर खिंच जाते हैं, उससे यही आभास मिलता है कि वहाँ गुरु ग्रह से भी शक्तिशाली कोई विशाल पिंड होना चाहिए। वही अपने गुरुत्वाकर्षण बल से इन धूमकेतुओं को अपने रास्ते से विचलित कर सकता है।

एक डच वैज्ञानिक यान हेंड्रिक ऊर्ट ने 1950 में इस बादल के होने की संभावना जताई थी। हिसाब लगाया गया है कि यह बादल सौरमंडल की बाहरी सीमा से परे 1.6 प्रकाशवर्ष की दूरी तक फैला हुआ है। तुलना के लिए, सौरमंडल का सबसे नजदीकी तारा प्रॉक्सीमा सेंटाउरी सूर्य से 4 प्रकाश वर्ष दूर है।

कंप्यूटर गणनाओं से यह भी आभास मिलता है कि अब तक अदृश्य और अनजान यह महाग्रह हमारे सूर्य की परिक्रमा करते हुए हर तीन करोड़ वर्षों पर धूमकेतुओं वाले ऊर्ट बादल में उथल-पुथल मचा देता है। तब वह अपने गुरुत्वाकर्षण बल से उसके कुछ पिंडों को खींच कर उन्हें पृथ्वी की दिशा में मोड़ देता है। विचित्र बात यह है कि इतना विशाल और शक्तिशाली होते हुए भी कोई दूरदर्शी उसे अभी तक देख नहीं पाया है।

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