लाल किताब का ये इतिहास जानकर आप भी चौंक जाएंगे

अनिरुद्ध जोशी
लाल किताब का इतिहास बहुत कम ही लोग जानते होंगे। लाल किताब न तो अरुण संहिता है और न ही रावण संहिता। लाल किताब प्राचीन अरब की ज्यो‍तिष विद्या भी नहीं है।
 
 
दरअसल, भारत के बंटवारे के पूर्व लाहौर में रूपचंद जोशी नाम के एक सैन्य अधिकारी रहते थे। ब्रिटिश सेना में वे असिस्टेंट अकाउंट ऑफिसर थे। वे पंजाबी के साथ ही अंग्रेजी, उर्दू व फारसी के भी जानकार थे। रूपचंद जोशी का जन्म 18 जनवरी 1898 को पंजाब के फरवाला गांव में हुआ था, जहां उनका पुश्तैनी मकान है। यह गांव नूरमहल तहसील जिला जालंधर में आता है। उनका एक बेटा है जिसका नाम पं. सोमदत्त जोशी है। बंटवारे के बाद जोशीजी लाहौर से चंडीगढ़ में शिफ्ट हो गए थे और 1954 में वे रिटायर्ड हो गए।
 
 
एक बार लाहौर में खुदाई का काम चल रहा था, जहां से तांबे की पट्टिकाएं मिलीं। उन पट्टिकाओं पर अरबी या फारसी में कुछ लिखा हुआ था। इन पट्टिकाओं को लेकर लोग पं. रूपचंद जोशी के पास गए। उन्होंने अरबी, फारसी में लिखी उस पांडुलिपि को पढ़ा तो पता चला कि उसमें ज्योतिष संबंधी बहुत ही गहन-गंभीर बातें लिखी हुई हैं। उन्होंने उन दस्तावेजों को पढ़ने और समझने के लिए अपने पास रख लिया।
 
 
उन्होंने उन पट्टिकाओं को पढ़ने के बाद उसे अपनी लाल कवर वाली कॉपी में लाल पेन से उर्दू में लिखा। चूंकि वे आर्मी अफसर थे इसलिए उन्होंने ये किताब अपने नाम से न निकालते हुए 'गिरधारीलाल' के नाम से निकाली। चूंकि वे मिलिट्री ऑफिसर थे और गवर्नमेंट सर्वेंट ऐसे काम नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने 'गिरधारीलाल' के नाम से यह किताब छपवाई। ये 'गिरधारीलाल' संभवत: उनके सौतेले भाई थे।
 
 
लाल किताब के अब तक मूलत: 5 खंड या कहें कि संस्करण प्रकाशित हुए हैं।
 
*1939 में हस्तरेखा और सामुद्रिक विज्ञान पर आधारित पहली पुस्तक 'लाल किताब के फरमान' के नाम से प्रकाशित हुई। यह किताब 383 पेजों की है।
*दूसरी 1940 में ज्योतिष विज्ञान पर आधारित 'लाल किताब के अरमान' नाम से प्रकाशित हुई। यह किताब 280 पेजों की है।
* 1941 में लाल किताब का तीसरा ग्रंथ प्रस्तुत किया गया जिसे प्यार से 'गुटका' नाम दिया गया। 
*1942 में लाल किताब का तीसरा ग्रंथ 'लाल किताब तरमीमशुदा' नाम से प्रकाशित हुआ, जो कि 428 पेजों का है।
*अंत में चौथी और आखिरी किताब इल्म-ए-सामुद्रिक की दुनिया पर लाल किताब 1952 में प्रकाशित हुई। यह किताब 1173 पेजों की है।
*कहते हैं कि उनके पुत्र पं. सोमदत्त जोशी ने 'रेहन्नुमा-ए-लाल किताब' नाम से एक किताब निकाली थी।
 
 
तो यह था लाल किताब के इतिहास का संक्षिप्त परिचय। 
 
उल्लेखनीय है कि उस काल में पंजाब में सरकारी कामकाज और लेखन में ऊर्दू और फारसी का ही ज्यादा प्रचलन था। इसीलिए वे पट्टिकाएं भी उसी भाषा में खुदवाई गई थीं। कहते हैं कि यह पट्टिकाएं मुगलकाल में एक व्यक्ति ने बनवाकर जमीन में दफन करवा दी थी। मुगलकाल में ज्योतिष विद्या को बचाने के लिए ऐसा कार्य किया गया था। उन पट्टिकाओं में ज्योतिष की दक्षिण भारत में प्रचलित सामुद्रिक शास्त्र और हस्तरेखा विद्या के साथ ही पंजाब और हिमाचल में प्रचलित उपायों के बारे में उल्लेख मिलता है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

ज़रूर पढ़ें

Family Life rashifal 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों की गृहस्थी का हाल, जानिए उपाय के साथ

Malmas : दिसंबर में कर लें विवाह नहीं तो लगने वाला है मलमास, जानें क्या करें और क्या नहीं

वायरल हो रही है 3 राशियों की भविष्यवाणी, बाबा वेंगा ने बताया 2025 में अमीर बन जाएंगी ये राशियां

2025 predictions: बाबा वेंगा की 3 डराने वाली भविष्यवाणी हो रही है वायरल

परीक्षा में सफलता के लिए स्टडी का चयन करते समय इन टिप्स का रखें ध्यान

सभी देखें

नवीनतम

30 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

30 नवंबर 2024, शनिवार के शुभ मुहूर्त

मेष राशि पर 2025 में लगेगी साढ़ेसाती, 30 साल के बाद होगा सबसे बड़ा बदलाव

property muhurat 2025: वर्ष 2025 में संपत्ति क्रय और विक्रय के शुभ मुहूर्त

Margshirsha Amavasya 2024: मार्गशीर्ष अमावस्या पर आजमाएं ये 5 उपाय, ग्रह दोष से मिलेगा छुटकारा और बढ़ेगी समृद्धि

अगला लेख