आयकर अधिनियम के हास्यास्पद प्रावधान

- प्रो. श्रीपाल सकलेचा

प्रो. श्रीपाल सकलेचा
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आयकर अधिनियम 1961 में बनाया गया। इसमें प्रतिवर्ष संशोधन भी होते हैं, लेकिन कई ऐसे प्रावधान हैं जो कई वर्षों पूर्व अप्रासंगिक हो चुके हैं, लेकिन अभी भी यथावत हैं। कई ऐसे अव्यावहारिक एवं अतर्कसंगत प्रावधानों की भरमार है, जिनके कारण आयकर विभाग एवं आयकरदाताओं के बीच विवाद की स्थिति निर्मित होती है। ऐसे कुछ प्रावधानों एवं नियमों के उदाहरण इस प्रकार हैं-

1. वेतन शीर्षक में 50 हजार रु. वार्षिक से अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारी को विशिष्ट माना जाता है। पचास हजार की यह सीमा तब निर्धारित की गई थी जबकि करमुक्त सीमा 20 हजार रुपए थी। वर्तमान में आयकर की सीमा बढ़कर दो लाख रुपए हो गई है जबकि अभी भी 50 हजार रुपए वार्षिक की विशि‍ष्ट कर्मचारी की सीमा में कोई संशोधन नहीं किया गया है। वर्तमान में सामान्य क्लर्क को भी डेढ़-दो लाख रुपए वेतन मिलता है। क्या वह विशिष्ट कर्मचारी की श्रेणी में आने योग्य है?

2. सरकारी कर्मचारी की दशा में मनोरंजन भत्ते की 5000 रुपए तक की कटौती धारा 16 (2) के अंतर्गत देने का प्रावधान लगभग 30 वर्षों पुराना है। प्रथम तो ऐसा कोई भत्ता सामान्यतया सरकारी कर्मचारियों को मिलता ही नहीं है और यदि अपवादस्वरूप किसी को मिलता भी हो तो उसे करमुक्त मानकर गणना से बाहर किया जा सकता है। अब इस प्रावधान का कोई औचित्य नहीं है, क्यों वेतन से आय की गणना को अनावश्यक रूप से क्लिष्ट किया जा रहा है।

3. कर्मचारियों को नियोक्ता द्वारा दी गई सुविधाओं के मूल्यां‍कन के नियमों का विरोधाभार देखिए -
1. मकान किराया भत्ता करमुक्त है तो किराया मुक्त मकान सुविधा करयोग्य है।
2. यातायात भत्ता करमुक्त है तो कार सुविधा करयोग्य है।
3. नियोक्ता के अस्पताल में मुफ्त चिकित्सा करमुक्त है तो चिकित्सा भत्ता पूरा करयोग्य है।
4. नाश्ता-जलपान करमुक्त है तो 50 रुपए से अधिक का भोजन करयोग्य है।
5. भारत में निजी अस्पतालों में चिकित्सा के बिलों की पूर्ति केवल 15000 रु. तक करमुक्त है तो विदेश में इलाज के व्यय पूर्णत: करमुक्त हैं।
6. निजी उपयोग के टेलीफोन के बिलों का नियोक्ता द्वारा भुगतान करमुक्त हैं तो नियोक्ता की फैक्टरी से दी गई नि:शुल्क बिजली-पानी की सुविधा करयोग्य है।

4. किराए से दी गई मकान संपत्तियों की आय की गणना करते समय वास्तविक किराए अनुमानित किराए दोनों की तुलना करने का प्रावधान है जबकि व्यवहार में वास्तविक किराए को ही आधार किया जाता है। यदि मकान मालिक को पुराने किराए दर से मात्र 1100 रुपए वार्षिक किराया मिल रहा हो और वर्तमान में ऐसी संपत्ति का उचित किराया 50000 रु. वार्षिक हो तो 50000 पर कर वसूलना न्यायसंगत होगा?

5. उत्तराधिकार या उपहरा में निजी संपत्ति को बेचने पर होने वाले पूंजी लाभ की गणना का आधार उपहार या उत्तराधिकार तिथि के सूचकांक होता है जबकि ऐसी संपत्ति के सुधार की सूचकांक लागत सुधार तिथि के आधार पर की जाती है चाहे ऐसी ‍तिथि उपहार तिथि से पूर्व की हो। इस विसंगति से न्यायालयों में कई प्रकरण वि‍चारा‍धीन हैं।

6. धारा 80 c में शिक्षण शुल्क की कटौती का प्रावधान है जिसके लिए ट्‍यूशन फीस शब्द किया गया है। व्यवहार में स्कूलों में ट्‍यूशन फीस तो नाममात्र की ली जाती है। दूसरी मदों के रूप में अधिकांश फीस वसूली जाती है।

7. राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्रों ( NSC) के अर्जित ब्याज को पहले तो आय में शामिल करना और बाद में धारा 80 c में उसकी कटौती स्वीकारना कहां का विवेकपूर्ण प्रावधान है?

8. बीस हजार रुपए तक के नगद लेन-देन की सीमा वर्षों पूर्व से लागू है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसे एक लाख रुपए तक बढ़ाया जाए तो क्या हर्ज है?

9. बचत खाने के ब्याज को पहले तो करयोग्य आय में शामिल करना और बाद में उसकी कटौती स्वीकारना प्रक्रिया के दोहरीकरण के सिवाय क्या है? ( लेखक गुजराती वाणिज्य महाविद्यालय में शिक्षक हैं तथा टैक्स मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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