GST Confusion : देशभर में 22 सितंबर से जीएसटी की नई दरें लागू हो चुकी है। इसके बावजूद, फार्मा, एफएमसीजी और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों के खुदरा व्यापारी अंतिम उत्पादों की संशोधित कीमतों का फायदा उपभोक्ताओं तक पहुंचाने में जूझ रहे हैं। कई व्यापारियों का कहना है कि कंपनियों से अंतिम उपभोक्ता मूल्य पर स्पष्ट निर्देश न मिलने से परेशानी हो रही है। ऐसा माना जा रहा है कि शेल्फ पर इसका असर दिखने में कम से कम एक हफ्ता लग सकता है।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, खुदरा विक्रेताओं के समक्ष सबसे बड़ी बाधा पुरानी टैक्स स्लैब के तहत खरीदा गया अनबिका स्टॉक है। कई व्यापारियों का कहना है कि जब तक यह पुराना माल खत्म नहीं होता, नई दरों का लाभ ग्राहकों को देना आसान नहीं होगा। कुछ दुकानदार पुराने और नए स्टॉक को मिलाकर कीमतों को एडजस्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।
मुंबई में महिलाओं के परिधानों की दुकान चलाने वाली प्रिया शर्मा ने कहा कि हमें अभी तक यह समझ नहीं आया कि नए दरों के हिसाब से उत्पादों का बिल कैसे तैयार करना है। अंतिम उत्पाद की कीमत में कोई फर्क अभी पड़ा ही नहीं है।
देशभर के कपड़ा और टेक्सटाइल क्षेत्र के खुदरा व्यापारियों में भी यही असमंजस का माहौल है। जहां कुछ ने कम टैक्स के अनुरूप कीमतें घटा ली हैं, वहीं ज्यादातर अभी भी स्पष्टता का इंतजार कर रहे हैं।
लखनऊ के एक हस्तशिल्प कारीगर राजेश कुमार ने बताया कि हम तैयार माल को नई दरों पर दुकानों या वितरकों को बेच ही नहीं पा रहे, क्योंकि उन्होंने कच्चे माल को 12 प्रतिशत की पुरानी दर पर लिया था। अब तैयार उत्पादों को कम जीएसटी पर बेचना व्यावहारिक नहीं लगता।" उन्होंने जोड़ा कि उद्योग संगठनों ने अभी तक अंतिम मूल्य निर्धारण पर कोई स्पष्ट गाइडलाइन जारी नहीं की है।
फार्मा क्षेत्र के खुदरा विक्रेताओं को भी इसी तरह की कठिनाइयों से जूझना पड़ रहा है। वे कहते हैं कि महीनों पहले खरीदा गया स्टॉक होने से तुरंत बदलाव संभव नहीं। चेन्नई में एक फार्मेसी के मालिक संजय पटेल ने कहा कि अगर कुछ महीनों बाद भी हमारे पास पुराने उत्पाद बचे रहते हैं, तो हमें उन्हें कंपनियों को रिटर्न करना पड़ सकता है। क्योंकि नई कम दरों पर दवाएं आने के बाद ग्राहक पुरानी ऊंची कीमतों पर कुछ नहीं खरीदेंगे।
edited by : Nrapendra Gupta