पेट्रोल डीजल की कीमतें 20वें दिन भी रहीं अपरिवर्तित, दिल्ली में पेट्रोल 91.17 और डीजल 81.47 रुपए प्रति लीटर

Webdunia
शुक्रवार, 19 मार्च 2021 (10:58 IST)
नई दिल्ली। विदेशों में कच्चे तेल में नरमी आने के बावजूद घरेलू स्तर पर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में शुक्रवार को लगातार 20वें दिन भी कोई बदलाव नहीं हुआ।
 
विदेशी बाजारों में कच्चे तेल में नरमी का रुख देखा जा रहा है। चीन द्वारा बीते सप्ताह खरीददारी कम किए जाने से गुरुवार को लंदन ब्रेंट 5 डॉलर से अधिक गिरकर 63 डॉलर प्रति बैरल पर से नीचे आ गया। राजधानी दिल्ली में अभी पेट्रोल 91.17 रुपए प्रति लीटर पर और डीजल 81.47 रुपए प्रति लीटर पर है। 27 फरवरी को इन दोनों की कीमतों में क्रमश: 24 पैसे और 15 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि हुई थी और इन दोनों की कीमतें पूरे देश में सार्वकालिक रिकॉर्ड स्तर पर है।

ALSO READ: धर्मेन्द्र प्रधान बोले, वर्ष 2025 तक 20 प्रतिशत एथेनॉल पेट्रोल में मिलाया जाने लगेगा
 
तेल विपणन करने वाली सरकारी कंपनी इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन के अनुसार शुक्रवार को इन दोनों ईंधनों की कीमतें स्थिर हैं। जानकारों का कहना है कि देश में 4 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव के कारण अभी पेट्रोल डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया जा रहा है। (वार्ता)

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

बैकों के सर्वर डाउन होने से UPI Payment में देरी से ग्राहक परेशान, सोशल मीडिया पर शिकायतों का अंबार

पुराने भोपाल से हिंदुओं के पलायन का RSS का दावा सियासत या फिर मजबूरी?

ATM, UPI, GST से लेकर बैंक जमा तक 1 अप्रैल से होंगे 10 बदलाव, आपकी जेब पर क्या होगा असर

राणा सांगा को गद्दार कहने वाले सपा सांसद रामजी लाल सुमन के घर पर हमला

RAW पर प्रतिबंध की मांग, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, अमेरिकी संस्थान ने उगला जहर तो भारत ने लगाई लताड़

सभी देखें

नवीनतम

धीरेंद्र शास्त्री बोले- सौरभ हत्याकांड के बाद नीला ड्रम डरा रहा, बच्चों को संस्कारवान बनाएं, रामचरित मानस से जोड़ें

बैकों के सर्वर डाउन होने से UPI Payment में देरी से ग्राहक परेशान, सोशल मीडिया पर शिकायतों का अंबार

इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्‍यायिक कार्य ठप, वकीलों की हड़ताल दूसरे दिन भी जारी

दुनिया में मंदी लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत, जानिए किसने किया यह दावा...

पुराने भोपाल से हिंदुओं के पलायन का RSS का दावा सियासत या फिर मजबूरी?

अगला लेख