करेंसी मार्केट में क्यों ऑल टाइम लो हो गया रुपया, पहली बार 86 पार, क्या होगा भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर?

करेंसी मार्केट में रुपया पहली बार 86 रुपए पार पहुंच गया। डॉलर के मुकाबला लगातार गिर रहे रुपए ने भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया। क्या होगा इसका असर?

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
शनिवार, 11 जनवरी 2025 (15:27 IST)
Rupee IN Currency Market : डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार गिर रहा है। शुक्रवार को यह 86.04 के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया। इसी के साथ ही पिछले सप्ताह भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 10 महीने के निचले स्तर 634.5 अरब डॉलर पर पहुंच गया। बताया जा रहा है कि रुपए में अस्थिरता को कम करने में मदद के लिए रिजर्व बैंक द्वारा पुनर्मूल्यांकन के साथ-साथ विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप की वजह से रुपए में गिरावट दिखाई दे रही है। सितंबर के अंत में विदेशी मुद्रा भंडार 704.885 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था।जानिए क्यों गिर रहा है रुपया? क्या होगा आम आदमी पर इसका असर? 
 
शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, 3 जनवरी को समाप्त सप्ताह के लिए, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां 6.441 अरब डॉलर घटकर 545.48 अरब डॉलर रह गईं। डॉलर के संदर्भ में व्यक्त की गई विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में विदेशी मुद्रा भंडार में रखी गई यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी इकाइयों के मूल्य में वृद्धि या कमी का प्रभाव शामिल है।
 
आरबीआई ने कहा कि सप्ताह के दौरान सोने का भंडार 824 मिलियन डॉलर बढ़कर 67.092 अरब डॉलर हो गया जबकि विशेष आहरण अधिकार (SDR) 58 मिलियन डॉलर घटकर 17.815 अरब डॉलर रह गया।
 
 
रुपया गिरने से क्या होगा : रुपए में लगातार हो रही गिरावट का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ ही आम लोगों पर भी पड़ता है। इससे आयात महंगा होता है जबकि निर्यात सस्ता। इसका मतलब है कि हमें विदेश से सामान खरीदने पर ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं जबकि वहां सामान बेचने पर कम पैसे मिलते हैं। पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ती है। इससे बाजार में महंगाई बढ़ जाती है।

डॉलर के मुकाबले कैसे गिरा रुपया : आजादी के समय एक डॉलर का मूल्य 4 रुपए था। 1991 तक धीरे धीरे बढ़कर यह 26 रुपए पर पहुंच गया। इसे 22 रुपए बढ़ने में 44 साल लग गए। 2008 में यह 51 रुपए पर पहुंच गया। इसके बाद रुपए का मूल्य में तेजी से गिरावट आई। 2020 में यह पहली बार 80 रुपए पार हुआ और 2024 में यह 86 रुपए पार पहुंच गया। 
 
भारतीय अर्थव्यवस्था कमजोर रहने की आशंकाः इस बीच अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलिना जॉर्जीवा ने कहा है कि स्थिर वैश्विक वृद्धि के बावजूद 2025 में भारतीय अर्थव्यवस्था के थोड़ा कमजोर रहने की आशंका है। उन्हें इस साल दुनिया में मुख्य रूप से अमेरिका की व्यापार नीति को लेकर काफी अनिश्चितता नजर आने की संभावना दिख रही है।
 
उन्होंने कहा कि अमेरिका हमारी अपेक्षा से काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है, यूरोपीय संघ कुछ हद तक रुका हुआ है, भारत थोड़ा कमजोर है जबकि ब्राजील कुछ हद तक उच्च मुद्रास्फीति का सामना कर रहा है।

कर्ज वसूली के लिए एजेंटों की भर्ती बढ़ी : असुरक्षित ऋणों में उछाल ने भारतीय बैंकों को ऋण के दलदल में धकेल दिया है। वित्तिय संस्थानों को एनपीए बढ़ने का डर सताने लगा है। इस वजह से बैंकों ने कर्ज वसूली के लिए रिकवरी एजेंटों का इस्तेमाल बढ़ा दिया है। दिसंबर 2024 तक, बैंकों, फाइनेंशियल संस्थानों के साथ ही बीमा क्षेत्र में भी आउटसोर्स किए गए वसूली एजेंटों की संख्या लगभग 50% बढ़कर 8,800 हो गई। यह क्रेडिट कार्ड बिलों का भुगतान नहीं करने वालों की संख्‍या के साथ ही पर्सनल लोन में खतरनाक वृद्धि को दर्शाती है।
edited by : Nrapendra Gupta 

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