भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाली दुनिया के बड़ी बैंकों में शुमार भारतीय स्टेट बैंक से आई डराने वाली खबर से शेयर मार्केट से लेकर आम आदमी भी हैरान है। वैसे तो पिछले कुछ समय से भारतीय बैंकिंग सेक्टर में बुरी खबरों का दौर जारी है लेकिन देश का सबसे बड़ा बैंक भारतीय स्टेट बैंक के तिमाही नतीजे घोषित होने पर पता चला कि यह स्टेट बैंक के अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा घाटा होगा।
स्टेट बैंक ने अपनी चौथी तिमाही यानी जनवरी-मार्च 2018 के नतीजे घोषित किए। बैंक ने बताया कि इन तीन महीनों के दौरान उसे 7,718 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। भारत के बैंकिंग इतिहास में ये दूसरा सबसे बड़ा घाटा है।
घाटे का इससे बड़ा आंकड़ा पंजाब नेशनल का रहा जिसे जिसे हीरा व्यापारी नीरव मोदी ने 13,000 करोड़ रुपए से अधिक की चपत लगाई थी। पंजाब नेशनल बैंक ने अपनी बैलेंस शीट दिखाते हुए कहा था कि जनवरी-मार्च तिमाही में उसे 13,417 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।
स्टेट बैंक के नतीजों के अनुसार अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में 2,416 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था यानी चौथी तिमाही में ये घाटा बढ़कर तीन गुना हो गया है।
आखिर क्या है घाटे की वजह : देश के दूसरे सरकारी बैंकों की तरह भारतीय स्टेट बैंक भी नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स यानी एनपीए से परेशान है। इसका अर्थ है कि बैंक ने अपने ग्राहकों को जो कर्ज़ दिए हैं उनमें से कई इसे लौटा नहीं रहे हैं।
लेकिन इस समय इतना भारी घाटे का आंकड़ा दिखने की वजह बैंक की ओर से बढ़ाई गई प्रोविजनिंग है। इसका मतलब है कि बैंक अप्रैल-मई-जून महीने में भी डूबे कर्ज़ बढ़ने की आशंका जता रहा है। तिमाही आधार पर चौथी तिमाही में बैंक ने प्रोविजनिंग 18,876 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 28,096 करोड़ रुपए की है।
बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार को उम्मीद है इन एनपीए में से बैंक आधे से अधिक की वसूली करने में कामयाब रहेगा. संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने कहा कि स्टेट बैंक 12 बड़े कर्ज़दारों का नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल में ले गया है और बैंक को उम्मीद है कि जब बैंकरप्सी की प्रक्रिया होगी तो बैंक का घाटा 50 से 52 फ़ीसदी से अधिक नहीं होगा।
रजनीश कुमार ने बताया कि बैंक के कुछ घरेलू कर्ज़ में रिटेल लोन का हिस्सा लगभग 57 फ़ीसदी है और बाकी का 43 फ़ीसदी कॉर्पोरेट लोन है।
आम आदमी पर क्या होगा असर : स्टेट बैंक के इस घाटे का सबसे बड़ा और बुरा असर होगा बैंकों की विश्वस्नीयता पर सवाल उठना। एक आम आदमी बैंक में रखी जमापूंजी को सुरक्षित मानता है लेकिन बैंकों की वर्तमान हालत देखते हुए लोगों का भरोसा बैंकों से घटेगा और जमपूंजी के प्रवाह में कमी आ सकती है।
दूसरा बड़ा नुकसान छोटे लोन लेने वालों को होगा क्योंकि एनपीए से डरे बैंक अब लोन लेने की प्रक्रिया को सख्त कर देंगे। जगरुकता की कमी और क्रेडिट कार्ड पेमेंट के चलते बहुत से लोगों का सिबिल स्कोर मान्य स्कोर से कम ही होता है, उन्हें अब लोन की पात्रता मिलने में और परेशानी आएगी।
शेयर मार्केट में इस घाटे के दूरगामी परिणाम होने से अनिश्चिंतता का माहौल बनेगा और छोटे निवेशकों के लिए यह अच्छा नहीं होगा। महंगाई दर के बढ़ने की आशंका बढ़ेगी।