सपनों के लिए सोना गिरवी रखती भारतीय महिलाओं की अनकही कहानी

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
बुधवार, 5 मार्च 2025 (14:46 IST)
2019 और 2024 के बीच महिला उधारकर्ताओं की संख्या में सालाना 22% की वृद्धि हुई है। 4 करोड़ नई महिला उधारकर्ता उभरी हैं, जिन्होंने अपने सोने के आभूषण के बदले में 4.7 ट्रिलियन रुपये का कर्ज लिया है। 60% महिला उधारकर्ता अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि भारत के बड़े तबके में माइक्रो-फायनेंस और वित्तीय साक्षरता से आखिरी पायदान पर खड़े लोगों को मिल रहा है फायदा।
 
उदाहरण के तौर पर सावित्री देवी, एक 32 साल की महिला, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव बस्ती की रहने वाली थी। उसकी दो बेटियाँ, रानी (10 साल) और गुड़िया (7 साल), और पति रामू, जो दिहाड़ी मजदूर थे, उसका पूरा परिवार था। सावित्री की जिंदगी कभी आसान नहीं रही।

गांव में बिजली कम आती थी, पानी का संकट रहता था, और पिछले 3 साल से सूखे ने खेती को चौपट कर दिया था। उसकी सास ने शादी में उसे सोने के दो कंगन और एक हार दिया था, जो अब तक संभाल कर रखे हुए थे। लेकिन हालात ऐसे बने कि एक दिन उसने सोचा, "क्या इस सोने को गिरवी रखकर अपने परिवार को बचा सकती हूं?"

यह कहानी सावित्री की है, और उन लाखों भारतीय महिलाओं की, जिन्होंने अपने सोने के आभूषणों को जरूरतों और सपनों की कुंजी बनाया।
 
संकट की शुरुआत, एक मां का फैसला; सावित्री का गांव पिछले कुछ सालों से मुश्किल दौर से गुजर रहा था। सूखे की मार से फसलें मर गईं, और रामू की मजदूरी भी अनियमित हो गई। कभी 200 रुपये दिन मिलते, तो कभी खाली हाथ लौटना पड़ता। रानी और गुड़िया की स्कूल फीस बाकी थी, मकान मालिक किराया मांग रहा था, और सावित्री की सास की दवाइयां खत्म हो गई थीं। एक शाम, जब बच्चियाँ भूखी सो गईं, सावित्री की आंखों में आंसू आ गए। तभी उसकी पड़ोसन राधा आई और बोली, "सावित्री, तू परेशान क्यों है? अपने सोने के कंगन बैंक में रख दे। आजकल बहुत सी औरतें ऐसा कर रही हैं। कर्ज मिलेगा, और धीरे-धीरे चुका देना।"
 
सावित्री को पहले झिझक हुई। सोना उसके लिए सिर्फ गहना नहीं, बल्कि उसकी मां की याद और परिवार की इज्जत था। लेकिन अगले दिन, जब गुड़िया ने भूख से रोते हुए कहा, "मां, आज खाना कब बनेगा?", तो सावित्री का मन टूट गया। उसने हिम्मत जुटाई, अपने कंगन लिए, और गांव के पास के सहकारी बैंक पहुंची। 
 
वहां बैंक मैनेजर ने उसे बताया कि सोने के बदले 50,000 रुपये का कर्ज मिल सकता है, जिसकी मासिक किश्त 2,000 रुपये होगी। सावित्री ने हामी भरी। उस दिन वह पैसे लेकर घर लौटी, और पहली बार कई दिनों बाद उसके घर में चूल्हा जला।
 
आंकड़ों की सच्चाई: सावित्री की यह कहानी अकेली नहीं है। 'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' की 3 मार्च 2025 की एक रिपोर्ट में ट्रांसयूनियन सिबिल और नीति आयोग की संयुक्त स्टडी का हवाला दिया गया। इसके मुताबिक, 2019 से 2024 के बीच सोना गिरवी रखकर कर्ज लेने वाली महिलाओं की संख्या में हर साल 22% की बढ़ोतरी हुई। इस दौरान 4 करोड़ नई महिला उधारकर्ताएं सामने आईं, जिन्होंने अपने सोने के आभूषणों के बदले 4.7 ट्रिलियन रुपये का कर्ज लिया। 2024 में सोने का कर्ज महिलाओं की कुल उधारी का 38% हिस्सा बन गया, जो 2019 की तुलना में पांच गुना वृद्धि को दिखाता है।
 
'द हिंदू' की 28 फरवरी 2025 की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इनमें से 60% महिलाएँ ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों से हैं। सावित्री जैसे लोग इस बदलाव का चेहरा हैं। सोना, जो कभी शादी-ब्याह और संस्कृति का प्रतीक था, अब महिलाओं के लिए आर्थिक आजादी और संकट से उबरने का जरिया बन गया है। 'इंडिया टुडे' की एक खबर (1 मार्च 2025) के अनुसार, सोने के कर्ज की मांग इसलिए बढ़ी क्योंकि यह जल्दी मिलता है, और इसके लिए ज्यादा कागजी कार्रवाई की जरूरत नहीं पड़ती।
 
क्रेडिट की नई समझ से बदलती सोच: कर्ज लेने के बाद सावित्री ने एक नया कदम उठाया। गाँव में एक एनजीओ की कार्यशाला में उसने क्रेडिट स्कोर के बारे में सुना। वहां एक महिला ट्रेनर ने बताया, "अगर तुम अपना कर्ज समय पर चुकाओ और क्रेडिट स्कोर अच्छा रखो, तो भविष्य में बड़ा कर्ज आसानी से मिल सकता है।"

सावित्री ने इसे गंभीरता से लिया। उसने अपने मोबाइल पर एक ऐप डाउनलोड किया और हर महीने अपने क्रेडिट स्कोर की जाँच करने लगी। सिबिल-नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि 2024 में युवा महिलाओं की क्रेडिट निगरानी में 56% की सालाना वृद्धि हुई, और ये अब महिला आत्म-निगरानी आबादी का 22% हिस्सा हैं। सावित्री ने सोचा, "शायद इससे एक दिन मैं अपनी सिलाई की दुकान खोल सकूं।"
 
कर्ज का बोझ और मेहनत भरी चुनौतियां: लेकिन यह रास्ता आसान नहीं था। कर्ज की किश्त चुकाने के लिए सावित्री को दिन-रात मेहनत करनी पड़ती थी। उसने गांव में सिलाई का काम शुरू किया और पास के बाजार में सब्जी बेचने वाली महिलाओं के कपड़े सिलने लगी। रामू की मजदूरी और उसकी कमाई से किसी तरह 2,000 रुपये की किश्त निकल जाती। लेकिन कई बार ऐसा हुआ कि किश्त के लिए पैसे कम पड़ गए।

'इकोनॉमिक टाइम्स' की 2 मार्च 2025 की रिपोर्ट में लिखा था कि सोने के कर्ज की ब्याज दरें 10-15% तक होती हैं, और समय पर न चुकाने पर सोना नीलाम होने का खतरा रहता है। सावित्री को डर था कि कहीं उसका सोना हमेशा के लिए न चला जाए। फिर भी, उसने हार नहीं मानी।
 
एक दिन, जब वह बैंक गई, तो मैनेजर ने कहा, "सावित्री, तुम्हारा क्रेडिट स्कोर बेहतर हो रहा है। अगली बार शायद तुम्हें सस्ता कर्ज मिल जाए।" यह सुनकर  उसका हौसला बढ़ा। उसने अपनी सहेली राधा को भी प्रेरित किया। राधा ने अपने झुमके गिरवी रखे और एक छोटी किराने की दुकान शुरू की। धीरे-धीरे गांव की और महिलाएं इस राह पर चल पड़ीं।
 
एक नई शुरुआत और मेहनत का फल: सावित्री ने दो साल तक कड़ी मेहनत की। 2024 के अंत में उसने अपनी आखिरी किश्त चुकाई और अपने कंगन वापस लिए। उस दिन उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन चेहरे पर मुस्कान।

उसने अपने सोने से एक नया हार बनवाया और अपनी बेटियों से कहा, "यह हमारी मेहनत की निशानी है। अब हम सपनों के लिए कर्ज नहीं लेंगे, बल्कि अपनी मेहनत से आगे बढ़ेंगे।" सिबिल-नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में जहां 20 लाख महिलाएं सालाना कर्ज ले रही थीं, वहीं 2024 में यह संख्या 2.7 करोड़ हो गई, जो 22% की वार्षिक वृद्धि को दर्शाती है।
 
सावित्री ने अपनी कमाई से एक पुरानी सिलाई मशीन खरीदी और गांव में सिलाई सिखाने का छोटा स्कूल शुरू किया। उसकी बेटियां भी अब नियमित स्कूल जा रही थीं। उसने सोचा, "सोना सिर्फ गहना नहीं, मेरे परिवार की ताकत बन गया।"
 
एक बदलता भारत: सावित्री की कहानी उन लाखों भारतीय महिलाओं की प्रेरणा है जो सोने को गिरवी रखकर अपने परिवार को संभाल रही हैं और सपनों को हकीकत में बदल रही हैं। 'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस', 'द हिंदू', 'इंडिया टुडे', और 'इकोनॉमिक टाइम्स' की रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह सिर्फ कर्ज की कहानी नहीं, 
 
बल्कि आत्मनिर्भरता, जागरूकता, और साहस की यात्रा है। नीति आयोग के महिला उद्यमिता प्लेटफॉर्म और माइक्रोसावे कंसल्टिंग की मदद से यह बदलाव सामने आया है। क्या यह नया भारत महिलाओं की मेहनत से और मजबूत होगा? सावित्री जैसे लोग इसका जवाब हैं।
(कहानी सावित्री नाम की एक काल्पनिक महिला के इर्द-गिर्द बुनी गई है, जो अपने सोने के आभूषणों को गिरवी रखकर परिवार की आर्थिक मुश्किलों से लड़ती है) 
 

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