शिफ्ट में काम आयु पर लगाम

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शिफ्ट में काम करने वाले लोगों की सेहत पर विपरीत असर पड़ता है, यह तो पहले से पता था लेकिन, अब एक शोध का निष्कर्ष है कि इनकी आयु भी औरों से कम हो जाती है।

शिफ्ट वर्क, यानी कभी दिन की ड्यूटी तो कभी देर रात को काम करना आज के औद्योगिक युग की मजबूरी है। विश्व की आबादी का पाँचवाँ भाग शिफ्टों में काम करता है।

विभिन्न अध्ययनों से यह साबित किया जा चुका है कि शिफ्टों में काम करने से न केवल सेहत पर बुरा असर पड़ता है, बल्कि कर्मचारी नींद संबंधी तकलीफों से भी ग्रस्त हो जाते हैं।

इससे व्यक्ति के कार्य-प्रदर्शन की क्षमता भी घटती है और बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं की एक प्रमुख वजह भी यही बनती है।

हाल ही में रविशंकर विश्वविद्यालय के अतनु कुमार पति व के. वेणु अचरी द्वारा किए गए एक अध्ययन में इस बात का परीक्षण किया गया कि शिफ्ट वर्क से मनुष्य की आयु पर क्या असर पड़ता है। यह अध्ययन दक्षिण-पूर्व-मध्य रेलवे (नागपुर) के कर्मचारियों पर किया गया।

इस अध्ययन में पिछले 25 वर्षों में विभिन्न कारणों से मृत्यु को प्राप्त रेलवे के 594 कर्मचारियों के आँकड़ों का विश्लेषण किया गया। इन 594 कर्मचारियों में से 282 दिन में काम करने वाले और 312 शिफ्टों में काम करने वाले कर्मचारी थे।

दिन में ऑफिस टाइम पर काम करने वालों का समय सुबह 9 से शाम 6 बजे तक था, जबकि शिफ्ट वर्क वाले तीन शिफ्टों में काम करते थे- सुबह 8 से अपराह्न 4 बजे, अपराह्न 4 से रात 12 बजे और रात 12 से सुबह 8 बजे। एक शिफ्ट में एक कर्मचारी सप्ताहभर तक काम करता था। एक दिन के अवकाश के बाद उसकी शिफ्ट बदल जाती थी। अध्ययन में शामिल अधिकांश मृत कर्मचारी पुरुष थे। महिलाएँ केवल 4 थीं।

इस अध्ययन में हर कर्मचारी की जन्मतिथि, सेवानिवृत्ति की आयु और मृत्युतिथि का विश्लेषण किया गया और औसत आयु का आकलन किया गया। पता चला कि शिफ्ट कर्मचारियों की औसत आयु ऑफिस टाइम में काम करने वाले कर्मचारियों की तुलना में करीब 4 साल कम थी।

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