Career in cinematography : भारत में फिल्म इंडस्ट्री एक बहुत बड़ा और तेजी से बढ़ता हुआ उद्योग है। यहां अनेकों भाषाओं में हर साल सैकड़ों फिल्में बनती हैं। इसके अलावा आजकल नए माध्यमों के लिए वेब सीरीज और शॉर्ट मूवीज भी खूब देखी और पसंद की जा रही हैं। ऐसे में फिल्म और सिनेमा की ग्लैमरस दुनिया में हर तरह के प्रोफेशनल्स की डिमांड भी बढ़ रही है। सिनेमा की दुनिया बहुत ही ग्लैमरस है। इसी चकाचौंध से प्रभावित होकर बहुत से लोग फिल्मों में अपना करियर बनाना चाहते हैं।
कुछ लोग अभिनय का काम चाहते हैं तो कुछ लोग निर्देशन के क्षेत्र आदि में रुचि रखते हैं। कुछ लोग सिनेमा में तकनीकी भूमिकाओं में खुद का करियर तलाशते हैं, लेकिन सिनेमा निर्माण में कला और तकनीक, दोनों ही पक्षों में अच्छी पकड़ रखने वाले लोगों के लिए भी बहुत संभावनाएं होती हैं। सिनेमैटोग्राफी भी एक ऐसा ही फील्ड है जिसमें आर्ट और टेक्नोलॉजी की बारीकियों से फिल्म को रूपहले पर्दे पर साकार किया जाता है। तो आइए जानते हैं इस फील्ड में करियर कैसे बनाया जाए :
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इंडियन सिनेमा की दुनियाभर में खासी डिमांड
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कोविड के बाद सिनेमा इंडस्ट्री अपनी फुल रफ्तार पर लौटी
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सिनेमा मेकिंग में प्रोफेशनल्स की खासी डिमांड
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आर्ट और टेक्नीक से जुड़ा हुआ काम है सिनेमैटोग्राफी
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भाषाई सिनेमा भी व्यवसाय और करियर के लिहाज से शानदार
दरअसल किसी भी फिल्म के निर्माण के लिए सिनेमैटोग्राफी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसे में अगर आप फिल्म इंडस्ट्री में काम करना चाहते हैं तो सिनेमैटोग्राफी का फील्ड बहुत संभावनाओं से भरा हुआ है। एक सिनेमैटोग्राफर को टेक्नोलॉजी की बुनियादी समझ होना जरूरी है। ग्लोबल लेवल पर जितने भी फिल्म फेस्टिवल आज आयोजित हो रहे हैं उनमें भारतीय फिल्में छाई रहती हैं।
बीते सालों में ऑस्कर सहित कई बड़े ग्लोबल अवॉर्ड्स हमारे देश की फिल्मों को मिल रहे हैं। फिल्म से जुड़े तमाम प्रोफेशनल्स को भी उनके काम के लिए खासे अवॉर्ड्स मिल रहे हैं। सिनेमैटोग्राफर भी ऐसे पेशेवर होते हें जो अपने विजन और काम से किसी फिल्म को और बेहतर बना देते हैं। एक सिनेमैटोग्राफर को विजुअल्स की बेहतरीन समझ होनी जरूरी है।
क्या है सिनेमैटोग्राफी
सिनेमैटोग्राफी फिल्म मेकिंग की पूरी प्रक्रिया का एक अहम काम है। यह तकनीक और कला का संगम है जिसके जरिए फिल्मों में विजुअल्स को अधिक प्रभावशाली बनाया जाता है। ध्यान देने की बात है कि यह वीडियोग्राफी या फोटोग्राफी के जैसा काम नहीं है। ये वीडियोग्राफी से अलग है।
आमतौर पर हम कई बार सिनेमैटोग्राफी और वीडियोग्राफी को एक ही काम समझ लेते हैं।सिनेमैटोग्राफी में मोशन कैमरा इस्तेमाल होता है। सिनेमैटोग्राफी में कला और तकनीक को मिलाकर किसी कहानी को पर्दे पर उतारा जाता है। सिनेमैटोग्राफी दरअसल थोड़ा जटिल काम है। सरल शब्दों में समझें तो यह टेक्नोक्रिएटिव फील्ड है।
सिनेमैटोग्राफर का कामकाज
किसी भी फिल्म के निर्माण में फिल्म की प्लानिंग से लेकर उसके पोस्ट प्रोडक्शन तक के हर फेज में सिनेमैटोग्राफर की भूमिका होती है। फिर चाहे फिल्म के प्री-प्रोडक्शन के दौरान प्रोजेक्ट डायरेक्टर्स से समन्वय करना, लोकेशन खोजना हो या फिर प्रोडक्शन के दौरान क्रिएटिव इनपुट देते हुए कैमरा टीम्स के साथ काम करना, लाइट और विजुअल्स का सही इस्तेमाल करना और पोस्ट प्रोडक्शन के फेज में एडिटिंग के दौरान कलर ग्रेडिंग और करेक्शंस के काम, हर फिल्म प्रोडक्शन की सभी स्टेज में सिनेमैटोग्राफर्स का कोई न कोई रोल है।
जबकि वीडियोग्राफर्स किसी वीडियो के लाइव मूवमेंट्स को कैमरे के जरिए कैप्चर करने का काम करते हैं। तो इस तरह आप समझ ही गए होंगे कि सिनेमैटोग्राफी का किसी फिल्म में क्या महत्व है और इस काम को करने वाले शख्स में क्या क्वालिटीज होनी चाहिए। कई बार सिनेमैटोग्राफर को डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी भी कहा जाता है।
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फिल्म प्रोडक्शन टीम का मुख्य किरदार है सिनेमैटोग्राफर
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फिल्म के प्रोजेक्ट की प्लानिंग से लेकर पोस्ट प्रोडक्शन तक में होती है इनकी अहम भूमिका
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विजुअल आर्ट और कैमरा टेक्नीक से फिल्म में कमाल लाती है सिनेमैटोग्राफी
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अक्सर सिनेमैटोग्राफर को डीओपी (डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी) भी कहते हैं
फिल्म निर्माण में विजुअल्स का बहुत बड़ा महत्व है। इसलिए कैमरे और लाइट्स के इस्तेमाल से एक सिनेमेटोग्राफर फिल्म में अपना जादू बिखेर देता है। आमतौर पर फिल्मों की शूटिंग में अलग-अलग कैमरे इस्तेमाल होते हैं। सिनेमेटोग्राफर इन सभी कैमरों को नियंत्रित करते हुए अपना काम करता है। सिनेमेटोग्राफर अपने मोशन पिक्चर कैमरे से फिल्म को डायरेक्टर के विजुअल इमेजिनेशन के अनुकूल बनाते हैं।
दरअसल सिनेमैटोग्राफर को निर्देशक की कल्पनाओं को कैमरे से साकार करने का काम करना होता है। इस तरह वह एक कॉर्डिनेटर यानी समन्वयक की भूमिका में भी होता है। फिल्म निर्माण के तकनीकी पहलुओं का ज्ञान सिनेमैटोग्राफर को होना जरूरी है। बहरहाल अगर सरल शब्दों में समझें तो एक अच्छा सिनेमैटोग्राफर वही हो सकता है जो कहानी कहने की समझ रखता हो और फिल्म के डायरेक्टर के विजुअलाइजेशन को समझते हुए कैमरे और प्रकाश के जरिए फिल्म निर्माण में अपना सहयोग करता है।
संबंधित कोर्सेस
फिल्म स्ट्डीज से जुड़े हुए अनेकों कोर्सेस प्रचलित हैं। कई राज्यों में पॉलिटेक्निक संस्थानों में भी फिल्म या वीडियो से संबंधित पाठ्यक्रम चलते हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में देखें तो यूनिवर्सिटी और कॉलेज लेवल पर भी देशभर के अनेकों संस्थानों में सिनेमैटोग्राफी से जुड़े कोर्स संचालित होते हैं।
एक बात ध्यान रखने की है कि अगर आप सिनेमैटोग्राफर बनना चाहते हैं तो फिल्मों में आपकी रूचि होना बहुत जरूरी है। सिनेमा का निर्माण सिर्फ कहानी कहने से नहीं हो सकता और न लाइट, कैमरे और टेक्नॉलाजी की समझ होने से ही यह संभव है। फिल्म बनाने के लिए तकनीक और कला की गहरी समझ होनी जरूरी है।
करियर-ट्रैक और सैलरी
सिनेमैटोग्राफी की दुनिया में असिस्टेंट के बतौर काम शुरू किया जा सकता है। इन दिनों शॉर्ट मूवीज, वेब सीरीज खूब बन रही हैं और दर्शक इन्हें पसंद भी करते हैं। ऐसे में इन प्रोजेक्टस से भी शुरूआत की जा सकती है। बेहतर होगा कि फिल्म मेकिंग या मीडिया का कोई कोर्स कर लें। डिग्री या डिप्लोमा करने से आपको इस फील्ड की बेसिक्स समझ आ जाएगी। इसके साथ ही इंटर्न आदि करने से फील्ड में काम करने वाले लोगों से संपर्क भी होता है।
लाइव प्रोजेक्टस में काम करने का एक्सपीरियंस होने पर इंडस्ट्री में एंट्री आसान हो जाती है। एक बार किसी प्रोजेक्टस में जुड़ने और काम करने के बाद फिर आपका काम देखकर लोग खुद ही आपको नए और बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए अप्रोच करने लगते हैं। आमतौर पर सभी फिल्में प्रोजेक्ट की तरह बनती हैं। इनके बजट होते हैं और जितनी बड़ी फिल्म होगी उसमें उतना ही बड़ा निवेश लगता है। फिल्मों के प्रोजेक्टस को पूरा होने यानी एक मूवी के बनने में लंबा वक्त लगता है।
हालांकि इन दिनों बहुत कम वक्त में भी फिल्में बन रही हैं। ऐसे में फिल्म मेकिंग टीम्स के प्रोफेशनल्स अलग-अलग प्रोजेक्टस पर काम करते रहते हैं। इंडस्ट्री में अच्छा काम करने वाले लोगों के पास हमेशा ही अच्छे और बड़े प्रोजेक्ट होते हैं। ऐसे में सिनेमैटोग्राफर भी फिल्मों में बहुत अच्छा खासा कमाते हैं।
जैसे-जैसे अनुभव होता रहता है तो लोग तो कई सालों तक बड़े प्रोजेक्टस में लगे रहते हैं। लेकिन इस फील्ड में आने वाले यंग प्रोफेशनल्स के धैर्य की भी खूब परीक्षा होती है। एक बार अगर आपका काम लोगों को पसंद आता है तो फिर समझिए कि आप इस फील्ड में लगातार आगे ही बढ़ते रहेंगे। इसके साथ आपका नाम और दाम दोनों ही बढ़ते रहेंगे।
विशेष
भारतीय फिल्म उद्योग अब कोविड के बाद से फिर से अपनी रफ्तार पकड़ चुका है। कोरोना के दौरान कई छोटे-बड़े शहरों और कस्बों में जो सिनेमाघर बंद हो गए थे उनमें से कई अब फिर से खुल रहे हैं। यह इंडस्ट्री के लिए एक सुखद बात है। इससे यह संकेत भी मिलते हैं कि लोग फिर से सिनेमा की स्क्रीन पर फिल्मों को देखने जाने लगे हैं।
जाहिर है कि दर्शकों और आम जनता के लिए और अधिक फिल्में बनेंगी। फिल्म से जुड़े हर प्रोफेशनल के लिए करियर के लिहाज से बेहतर माहौल बना रहेगा। इसलिए यदि आप भी सिनेमा की दुनिया में करियर बनाना चाहते हैं तो सिनेमैटोग्राफी का फील्ड आपके लिए शानदार संभावनाओं से भरा हो सकता है।