क्रिकेट की दुनिया ने अनंत वागेश कनमड़ीकर को भुला दिया

-सीमान्त सुवीर

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अनंत वागेश कनमड़ीकर को दुनिया से गुजरे पांच साल हो चुके हैं लेकिन आश्चर्य है कि क्रिकेट की रंगीन दुनिया ने उन्हें इतनी जल्दी भुला दिया है। क्रिकेट जगत के बड़े सूरमा यह भी भूल गए होंगे कि आज जिनकी बदौलत वे एसी रूम की ठंडी हवाओं के बीच फैसले ले रहे हैं और बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूम रहे हैं, उन सबके पीछे अनंत वागेश कनमड़ीकर का ही दिमाग था, जिन्हें उनके दोस्त 'जज साहब' के नाम से जानते थे। 'महाराज' के नाम से संबोधित किए जाने वाले माधवराव सिंधिया तक की जुबां उन्हें जज साहब ही पुकारती रही।

क्या आपको यह पढ़कर हैरत नहीं हो रही होगी कि अनंत वागेश कनमड़ीकर ने भारतीय क्रिकेट जगत में अहम किरदार निभाया और क्रिकेट को व्यावसायिकता का जामा पहनाने वाला भी यही शख्स था। एक वक्त वह भी था, जब विश्वकप की मेजबानी के लिए क्रिकेट बोर्डों से मिन्नतें करनी पड़ती थी। खिलाड़ियों को विदेशी टूर पर भेजने के लिए क्रिकेट बोर्डों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था लेकिन 1987 में भारत में आयोजित हुए 'रिलायंस विश्वकप' ने क्रिकेट के साथ-साथ खिलाड़ियों की तकदीर भी बदल दी। रिलायंस विश्वकप के आयोजन के मुखिया अनंत वागेश कनमड़ीकर ही थे।

' जज साहब' के दिमाग की ही ‍ये उपज थी कि क्रिकेट मैचों के प्रसारण अधिकार बेचें जाएं और आप देखिये कि 1987 के विश्वकप के बाद से ही क्रिकेट पर किस तरह से धन बरस रहा है। क्रिकेट को मालामाल बनाने में जज साहब की महत्वपूर्ण भूमिका रही है लेकिन अफसोस कि उन्हें बहुत जल्दी भुला दिया गया है।

कोफ्त तो उस वक्त हुई जब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट पर भी अनंत वागेश कनमड़ीकर नदारद थे। कनमड़ीकर भारतीय क्रिकेट बोर्ड के संयुक्त सचिव रहे, सचिव बने, उपाध्यक्ष रहे और 1983 की विश्व विजेता बनने वाली टीम के यादगार लम्हों के गवाह भी बने। यह सब तब की बात है जब श्रीमंत माधवराव सिंधिया की बोर्ड में तूती बोलती थी और उन्हें 'जज साहब' की काबिलियत पर काफी नाज था।

1926 को जन्मे अनंत वागेश कनमड़ीकर 61 साल पहले सिख मोहल्ला इंदौर (म.प्र.) से मराठी स्कूल पहुंचे, फिर महाराजा
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शिवाजीराव से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद वे पुणे चले गए लेकिन पिता के निधन होने के कारण उन्हें वापस इंदौर आना पड़ा। 1945 में उन्होंने होल्कर साइंस कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। मां की मृत्यु के बाद वे अकोला, अमरावती और नागपुर में भटकते रहे लेकिन इंदौर की अबोहवा उन्हें पुकार रही थी, लिहाजा वे पुन: अहिल्या की नगरी में लौटे।

विधि में स्नातक डिग्री लेने के बाद उन्होंने पांच वर्षों तक वकालत की और श्रम न्यायालय में जज बने। 1961-62 से उन पर क्रिकेट का रंग चढ़ना शुरू हुआ। महारानी उषादेवी, सतीश मल्होत्रा और विधिवेत्ता केए चितले के सहयोग से कनमड़ीकर ने महाराजा यशवंतराव क्रिकेट क्लब की स्थापना 1965 में की।

मध्यप्रदेश क्रिकेट संगठन की 10 साल की सदस्यता के बाद जज साब सचिव बने और चैयरमैन भी रहे। 1975 से 1980 तक उन्होंने भारतीय क्रिकेट बोर्ड में संयुक्त सचिव की कुर्सी संभाली तो 80 के बाद से 1985 तक वे बोर्ड के सचिव रहे। बोर्ड में बोर्ड सचिव के साथ-साथ उन्होंने एशियाई क्रिकेट परिषद के सचिव का कार्यभार भी संभाला। उन्हीं के कार्यकाल में कपिल देव की अगुआई वाली भारतीय टीम 1983 में विश्वकप जीतने में सफल रही।

लॉर्ड्‍स की बालकनी से जब भी कपिल देव के हाथों में विश्वकप की तस्वीर सामने आती है तो उसी बालकनी में जज साहब भी खड़े नजर आते हैं। तब वे बोर्ड सचिव की हैसियत से विश्वकप में मौजूद थे। 1990 से 1993 तक वे बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे। मेरिलबोर्न क्रिकेट क्लब (एमसीसी) ने उन्हें मानद सदस्यता भी प्रदान की। जज साहब के कारण ही इंदौर के नेहरू स्टेडियम में 1983 में पहला वनडे इंटरनेशनल मैच (भारत-वेस्टइंडीज) आयोजित हुआ था।

16 अगस्त 2006 को अनंत वागेश कनमड़ीकर इस दु‍निया में नहीं रहे। मेघदूत के सामने से गई सड़क के दो मोड़ पार करने के बाद जब उनके निवास पर पहुंचा तो आश्चर्य हो रहा था कि बहुत साधारण से मकान में (जिसकी पुताई हुए कई साल हो गए थे) क्रिकेट की दुनिया को बुलंदियों पर पहुंचाने वाला यह इंसान ‍चिरनिद्रा में सो चुका था।

इस वक्त श्राद्धपक्ष चल रहा है और लोग अपने पितरों को याद करते हुए 'तर्पण' और 'अर्पण' की रस्मअदायगी कर रहे हैं। सोलह दिनों के इस श्राद्ध पक्ष में मुझे नहीं लगता कि जज साहब के परिजनों के अलावा कोई और उन्हें स्मरण करता होगा। इंदौर ने देश को कई बड़ी हस्तियां दी। सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर, ख्या त पेंटर मकबूल फिदा हुसैन, नाराय ण श्रीध र बेन्द्र े, अमी र खा ं, जॉनी वाकर, राहुल द्रविड़, मीररंज न नेग ी, फिल्म लेखक सलीम (सलमान खान के पिता) और भी कई नाम है ं जिनक े साथ अनंत वागेश कनमड़ीकर क ा ना म भी शामिल किय ा जान ा चाहिए।

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