चेन्नई टेस्ट में धोनी ने एक समय में दबाव में लग रही भारतीय टीम को न केवल सहारा दिया बल्कि पुछल्ले बल्लेबाज़ों के साथ कीमती साझेदारियां करके अपने आलोचकों को भी बता दिया कि धोनी में कितना दम है।
इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के दौरों पर भारतीय टीम नाकाम रही थी तो इसकी वजह कप्तान धोनी कम और सीनियर खिलाड़ियों की असफलता अधिक थी। धोनी तो आज भी उसी मज़बूत मानसिकता से कप्तानी करते हैं, जिसकी बदौलत उन्होंने भारतीय टीम को कई सफलताएं दिलवाईं। फर्क सिर्फ वीरेंद्र सहवाग जैसे खिलाड़ियों के फेल होने से पड़ता है। अगर टीम के शीर्ष खिलाड़ी ही रन नहीं बनाएंगे तो अकेला कप्तान कर ही क्या सकता है?
धोनी में महान खिलाड़ी होने के सारे गुण मौजूद हैं, लेकिन उन्हें भी सहयोग चाहिए। चेन्नई टेस्ट में उन्हें टीम से सहयोग मिला तो उन्होंने सवा चार दिनों में ही ऑस्ट्रेलिया जैसी ताकतवर टीम को धूल चटा दी।
रवीचंद्र अश्विन ने मैच जिताने में अहम भूमिका निभाई। किसी भी गेंदबाज़ की जिंदगी में ऐसे कम ही मौके आते हैं, जब वह टेस्ट में 12 विकेट ले पाए। चेन्नई में अश्विन ने ऐसा ही किया टीम को जीत दिला दी। अश्विन के योगदान को पूरी तरह अहमियत देते हुए यह कहना भी गलत नहीं होगा कि भले ही उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ों को अपनी फिरकी पर नचाया हो, लेकिन मैच का रुख तो धोनी की पारी ने ही बदला।
कोई बल्लेबाज़ नंबर पर 7 आकर दोहरा शतक बना दे तो विरोधी टीम को बेहाल होना ही है। और धोनी की पारी तेज़ पारी थी। नाथन लियोन सहित ऑस्ट्रेलिया के हर गेंदबाज़ की चुनौती को धोनी ने आगे बढ़कर स्वीकारा और रन बनाए।
चेन्नई में धोनी की पारी एक महान पारी थी, जिसने न केवल मैच जिताया बल्कि धोनी का कद अब टेस्ट क्रिकेट में भी इतना बढ़ा दिया कि कोई भी (तथाकथित) क्रिकेट विशेषज्ञ धोनी की आलोचना करने से पहले हज़ार बार सोचेगा।