जहीर खान : फर्श से अर्श तक का सफर

Webdunia
शुक्रवार, 3 अगस्त 2007 (11:01 IST)
- सुशील दोषी (ख्यात कमेंटेटर)
अजीब है यह भारतीय क्रिकेट टीम! जब यह विश्व चैंपियन बनने का आभास देने लगती है, तो विश्व कप जैसे प्रमुख आयोजन में बांग्लादेश से हारकर बाहर बैठ जाती है। पर जब आप उसे रद्दी की टोकरी में डाल देने योग्य समझते हैं, तब यह इंग्लैंड में इंग्लैंड को पराजित करके आपको चौंका देती है।

जिस गेंदबाजी आक्रमण को भारत की कमजोर कड़ी समझा जाता था, उसी ने इंग्लैंड के विश्वविख्यात बल्लेबाजों की कमर तोड़कर रख दी। लॉर्ड्स के पहले टेस्ट मैच में इंद्रदेवता द्वारा टपकाई गई बारिश व स्टीव बकनर द्वारा शांताकुमारन श्रीसंथ को पगबाधा नहीं देने के कारण भारत बाल-बाल बच गया था। मर्द वही होते हैं, जो भाग्य को सराहना जानते हैं और उससे सबक सीखते हैं।

भारत ने अपना होमवर्क बिना किसी बाहरी प्रशिक्षक के पूरा कर लिया था। स्विंग होती परिस्थितियों में अतिरिक्त जोर लगाना बेमानी होता है, यह भारतीय गेंदबाजों ने समझ लिया था। इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट खेलकर जहीर खान ने नियंत्रित स्विंग गेंदबाजी के महत्व को जान लिया था।

मुझे यह भी लगता है कि पाकिस्तानी गेंदबाज वसीम अकरम से रिवर्स स्विंग कराने की कला भी भारतीयों ने सीख ली है। सभी भारतीय क्षेत्ररक्षक गेंद के एक तरफ तो थूक लगा-लगाकर चमक तो बरकरार रख रहे थे, थूक से भारी भी कर रहे थे और दूसरी तरफ गेंद को खुरदरा ही रहने दे रहे थे। इसलिए एक तरफ पुरानी भारी गेंद आश्चर्यजनक रूप से रिवर्स स्विंग हो रही थी।

इस तकनीक से परिपूर्ण होकर जहीर नामक मिसाइल सन्‌ 1978 व 1982 के इमरान खान व अकरम की याद ताजा कर रही थी। जिस तरह से गजब की रिवर्स स्विंग प्राप्त करके रुद्रप्रताप सिंह ने विश्वविख्यात केविन पीटरसन को दूसरी पारी में पगबाधा आउट किया, उसने पीटरसन के अलावा सभी जानकारों को भी चौंका दिया।

अगर जहीर मिसाइल ने इंग्लैंड के दिग्गजों को नष्ट कर दिया, तो दिनेश कार्तिक व वसीम जाफर ने इतनी बढ़िया शुरुआत भारत की पहली पारी को दी कि दूसरे दिन ही मैच के सारे सूत्र भारत के हाथों में आ गए। जिस तरह क्रिकेट में नाम नहीं खेलता, आपको खुद खेलना होता है, उसी तरह क्रिकेट अंपायरिंग में नाम नहीं, आपको खुद अंपायरिंग करनी होती है।

स्टीव बकनर व साइमन टफैल जैसे विश्वस्तरीय अंपायर घटिया अंपायरिंग करते पाए गए। अत्यधिक क्रिकेट से जिस तरह खिलाड़ियों में थकान आती है और ध्यान बँटता है, उसी तरह वर्षभर अलग-अलग परिस्थितियों व देशों में जाकर अंपायरिंग करने से इन शीर्ष अंपायरों का स्तर घट रहा है। मेरे ख्याल से 'एलीट पैनल' में कुछ और अंपायरों का समावेश होना चाहिए, तभी दबाव हट पाएगा।

नॉटिंघम की जीत को ओवल के आखिरी टेस्ट में भी दुहराने के लिए भारतीय टीम को अपनी भूख व ऊर्जा को बरकरार रखना होगा। इतिहास गवाह है कि एक जीत से अति उत्साहित होकर भारतीय टीम शेष मैचों में हार जाती है।

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