- सीमान्त सुवी र मोहाली में भले ही भारत ने दूसरे टेस्ट मैच को ड्रॉ पर समाप्त घोषित करवाकर आरबीएस कप पर अपना अधिकार जमा लिया हो, लेकिन स्थानीय दर्शकों के साथ ही क्रिकेट के जानकारों की नजर में महेन्द्रसिंह धोनी साहस दिखाने वाले कप्तान नहीं माने जाएँगे।
जिस मैच पर पहले ही मौसम की मार पड़ रही हो और बमुश्किल से 900 दर्शक स्टेडियम में जमा हों उनके सामने वे जल्दी पारी घोषित करके मैच को रोमांचक मोड़ प्रदान कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
PTI
धोनी पर भले ही 2008 के साल का क्रिकेट सीजन मेहरबान रहा हो, भले ही उनकी जुझारू क्षमता और कुशल नेतृत्व के बूते पर भारत पहले वनडे और फिर टेस्ट सिरीज जीतने में कामयाब रहा हो, भले ही उत्पाद वस्तुओं के विज्ञापन में उनका चेहरा पसंद किया जाता रहा हो या फिर भले ही इंडियन प्रीमियर लीग के वे सबसे महँगे खिलाड़ी (6 करोड़ रूपए) के रूप में नीलाम हुए हों, लेकिन इन तमाम खूबियों के बाद भी उनमें साहस की कुछ तो कमी है ही।
धोनी चाहते तो मैच के पाँचवे दिन लंच के समय तक पारी घोषित करके मैच में रोमांच पैदा कर सकते थे, लेकिन उन्हें डर था कि कहीं अंग्रेज बल्लेबाज 350 या उसके आसपास का स्कोर अर्जित करके सिरीज को बराबर नहीं कर दें, लिहाजा उन्होंने गंभीर के शतक का इंतजार किया, लेकिन दुर्भाग्य से वे तीन रन से पाँचवाँ सैकड़ा चूक गए।
धोनी को ऑस्ट्रेलिया या दक्षिण अफ्रीका के कप्तानों से कुछ सीख लेकर यह दिखाना होगा कि खेल वे खुद के लिए नहीं बल्कि दर्शकों के लिए खेल रहे हैं और इन्हीं दर्शकों की गाढ़ी कमाई से उनका बैंक बैलेंस बढ़ता है । ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान स्टीव वॉ, मार्क वॉ के बाद अब रिकी पोटिंग, अफ्रीका के कप्तान ग्रीम स्मिथ, इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन भी कई प्रसंगों पर मैच को रोचक बनाने के लिए साहस भरे फैसले लेते रहे हैं।
मैच के चौथे दिन ही तय हो गया था कि यह मैच ड्रॉ की तरफ सरक चुका है, ऐसे में इंग्लैंड के सामने ऐसा स्कोर रखा जा सकता था, जिससे खेल में कुछ रुचि पैदा होती।
आज जबकि जमाना ट्वेंटी-20 का है और टेस्ट मैचों के प्रति रुझान घटना जा रहा है, ऐसे में टीमों के कप्तानों को चाहिए कि वह दर्शक जुटाने के लिए खेल में रोमांच पैदा करें। धोनी ने इंग्लैंड को 40 ओवर में 400 से ज्यादा रन बनाने की चुनौती दी थी, जिसे हासिल करना असंभव था। हुआ भी यही कि 28 ओवर के बाद ही दोनों कप्तान मैच को ड्रॉ करवाने पर सहमत हो गए।
यानी धोनी ने पहले ही मन बना लिया था कि वे हार-जीत पर नहीं जाएँगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में धोनी के हौसलों पर जंग नहीं लगेगा और खेल के हित में वे बड़े फैसले समय रहते लेंगे ताकि टेस्ट क्रिकेट जिंदा रहे।
मोहाली टेस्ट में पहली बार 'मैन ऑफ द मैच' के पुरस्कार से नवाजे जाने वाले गौतम गंभीर ने पहली पारी में 179 और दूसरी पारी में 97 रनों की जो विश्वसनीय पारी खेली, वह प्रशंसनीय है। ऑस्ट्रेलिया के लिए सिरदर्द बने गंभीर का तोड़ अंग्रेज गेंदबाज भी नहीं ढूँढ पाए।
कयास यह भी लगाए जा रहे थे कि गंभीर को सिरीज का भी सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित किया जाएगा, लेकिन यह सम्मान जहीर को प्रदान किया गया। जहीर ने 2 टेस्ट मैचों में आठ विकेट लेने में कामयाबी हासिल की।
इंग्लैंड भले ही यह सिरीज हार गया हो, लेकिन पीटरसन की सेना ने मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद 2 टेस्ट मैच खेलना कबूल करके जिस खेल भावना का परिचय दिया, उसका सम्मान किया जाना चाहिए। आतंक पर क्रिकेट की इस जीत की मिसाल आने वाले कई सालों तक दी जाती रहेगी।
एक बात और कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड को मोहाली को किसी भी मैच की मेजबानी सौंपने के पहले यह भी सोचना होगा कि वहाँ मौसम का मिजाज कैसा रहेगा। एक भी दिन समय पर खेल शुरु नहीं हुआ और किसी भी दिन पूरे 90 ओवर नहीं फेंके गए। इस तरह के मैच औपचारिकता भर निभाने के लिए ही याद किए जाते रहेंगे।