मुगदल छोड़कर बल्ला थामा....

प्रवीण ने ऑस्ट्रेलिया में धूम मचाई

Webdunia
भारत के ऑस्ट्रेलियाई दौरे की नई खोज प्रवीण कुमार को उसके माता-पिता पहलवान बनाना चाहते थे लेकिन प्रवीण ने मुगदल थामने के बजाए क्रिकेट का बल्ला थाम लिया। क्रिकेट ने ही उनके भाग्य को बदल डाला।

प्रवीण ने ऐसे समय में बेहतरीन गेंदबाजी की जब टीम को उसकी सख्त दरकार थी। उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ 'करो या मरो' मुकाबले में चार विकेट लेकर भारत को फाइनल में पहुँचाया और मंगलवार को ब्रिस्बेन में दूसरे फाइनल में कमाल की गेंदबाजी करके भारतीय क्रिकेट में नया इतिहास रचने में अहम भूमिका निभाई।

भारतीय क्रिकेट में छोटे-छोटे शहरों से आने वाले नौजवानों की फेहरिस्त में प्रवीण नया नाम है। वह धोनी, पठान, मुनाफ, आरपी सिंह की कड़ी का ही एक हिस्सा हैं, जो अपने धमाल से भारतीय क्रिकेट में छा जाने के लिए बेताब हैं।

मेरठ में पहलवानों के एक परिवार में 2 अक्टूबर 1986 को जन्में प्रवीण पर उसी खेल में आगे बढ़ने का दबाव थ ा, जिससे वर्षो से उनके परिवार का नाता था, लेकिन परिवार के इस होनहार बेटे पर तो क्रिकेट का भूत सवार था। प्रवीण गलियों में क्रिकेट खेलते रहे और टीवी देखकर अपना खेल निखारते रहे।

बकौल प्रवीण कि मेरे माता पिता चाहते थे कि मैं कुश्ती खेलूँ लेकिन मैं केवल क्रिकेट खेलना चाहता था। मैंने टीवी देखकर क्रिकेट सीखी और गली में खेलता रहा। मेरे स्थानीय कोच ने भी मेरी मदद की।

प्रवीण का अब तक का क्रिकेट करियर किसी परी कथा से कम नहीं है। असल में प्रवीण के पास तब इंडियन क्रिकेट लीग का प्रस्ताव पड़ा था और अन्य युवा क्रिकेटरों की तरह वह भी इस लुभावनी पेशकश को स्वीकार करने की स्थिति में थे, लेकिन तभी भारतीय टीम में उनका चयन हो गया और इसके बाद जो कुछ हुआ वह इतिहास है।

प्रवीण को पाकिस्तान के खिलाफ जयपुर में अपना पहला एकदिवसीय मैच खेलने का मौका मिला लेकिन वह इसमें विकेट नहीं ले पाए। उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ ही पहला विकेट हासिल किया और फिर टीम का नियमित हिस्सा बन गए।

प्रवीण ब्रेट ली की तरह तेज गेंदबाज या एंड्रयू फ्लिंटॉफ की तरह ऑलराउंडर नहीं है लेकिन वह अपनी योग्यता का भरपूर उपयोग करते हैं। उनसे रणजी ट्रॉफी में उत्तरप्रदेश की तरफ से पारी की शुरुआत करने के लिए कहा गया और उन्होंने वह चुनौती स्वीकार की और तब उनकी टीम खिताब जीती।

उत्तरप्रदेश को रणजी ट्रॉफी के फाइनल में पहुँचाने में इस साल भी प्रवीण ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने फाइनल में दिल्ली के खिलाफ भी आठ विकेट लिए लेकिन वह अपनी टीम को मैच नहीं जिता पाए। इसी प्रदर्शन से उन्हें ऑस्ट्रेलियाई दौरे के लिए चुना गया और वह इस दौरे की खोज साबित हुए।

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