जब जब भारत का ऑस्ट्रेलिया दौरा होता था , मैदान पर पहुंचने से पहले धमकियों के दौर शुरु हो जाते थे। मैक्ग्राथ कहते थे कि मैं सचिन का विकट लूंगा तो गेलेस्पी कहते थे मैं द्रविड़ का विकेट लूंगा। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ, आपको पता है क्यों ?
साल 2018 में भारत का ऑस्ट्रेलिया दौरा शुरु हुआ बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी से। जब भारतीय दल ऑस्ट्रेलिया की सरजमीं पर उतरा तो इतिहास में पहली बार मेहमान टीम को फेवरेट के तौर पर आंका गया। मतलब कागज पर भारत का पलड़ा भारी था।
सिर्फ कागज पर ही नहीं मैदान पर भी टीम इंडिया भारी रही और पहली बार ऑस्ट्रेलिया की धरती पर 2-1 से जीत का परचम लहरा दिया। वह तो गनीमत थी कि आखिरी टेस्ट बारिश से धुल गया नहीं तो भारत 3-1 से जीत की तैयारी में था।
ऑस्ट्रेलियाई कोच जस्टिन लैंगर और बाकी ऑस्ट्रेलियाई दिग्गज ने इस सीरीज से पहले किसी भी खिलाड़ी को चुनौती देना उचित नहीं समझा। उल्टा लैंगर ने तो कोहली की तारीफ के पुल बांध दिए। यही बाकियों ने भी किया।
इससे हुआ यह कि विराट कोहली थोड़े आत्मसंतुष्ट नजर आए। हालांकि उन्होंने 74 रनों की पारी खेली लेकिन उसमें कई बार वह बाल बाल बचे।
ऐसा ही माइंड गेम पुजारा के लिए खेला गया। गौरतलब है कि पिछली सीरीज में पुजारा ने ऑस्ट्रेलिया में खूंटा गाड दिया था। उनका विकेट लेना कंगारू गेंदबाजों के लिए टेढ़ी खीर हो गई थी।
कोहली के बाद दूसरा निशाना पुजारा थे। पुजारा की भी ऑस्ट्रेलियाई दिग्गजों ने तारीफ की और उसका नतीजा पहले टेस्ट में दिख गया। दूसरी पारी में विकेट के पीछे जैसे पुजारा आउट हुए , लग गया था कि वह आत्मसंतुष्ट हो गए हैं।
अगला नाम था जसप्रीत बुमराह का , उनकी तारीफ करने का जिम्मा उठाया ऑस्ट्रेलिया को पहला विश्वकप जिताने वाला कप्तान एलन बॉडर ने । उन्होंने कहा कि बुमराह गेंदबाजी में भारत की रीढ़ है।हालांकि बुमराह उतने आत्म संतुष्ट नहीं हुए जितने कोहली और पुजारा हुए। (वेबदुनिया डेस्क)