सचिन से लेकर विराट तक, ऐसे हुई कप्तानों की दुखद विदाई

Webdunia
सोमवार, 17 जनवरी 2022 (14:11 IST)
विराट कोहली की टेस्ट कप्तानी छोड़ने के बाद एक बात फैंस के दिमाग में साफ हो गई है कि अंत हमेशा भला नहीं होता है। खासकर अगर कप्तानों की बात की जाए तो ऐसा बिल्कुल नहीं होता। विराट कोहली भारत के लिए सबसे सफल टेस्ट कप्तानों में से एक हैं लेकिन अपने मन से ही उन्होंने टेस्ट की कप्तानी को अलविदा कह दिया।

सूत्रों के मुताबिक यह सुनाई दे रहा था कि जैसे पूर्व कप्तानों की बेइज्जती हुई थी वैसे ही विराट कोहली बीसीसीआई के सामने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हुई टेस्ट सीरीज से 1-2 की हार के कारण पेश होने वाले थे। इससे पहले ही विराट ने अपना निर्णय सुना दिया।

जब वनडे क्रिकेट रंगीन लिबास में नहीं खेला जाता था तब भारतीय क्रिकेट टीम में कप्तानों के बीच म्यूजिकल चेयर खेली जाती थी। कभी बिशन सिंह बेदी तो कभी सुनील गावस्कर तो कभी वेंगसरकर किसी को भी कप्तानी सौंप दी जाती थी।

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भारत को वनडे विश्वकप जिताने वाले कपिल देव भी 90 के दशक तक आते आते अपनी कप्तानी खो चुके थे।

सिर्फ विराट कोहली ही नहीं पूर्व में कई भारतीय कप्तानों ने  लगभग ऐसे ही अपनी कप्तानी से हाथ धोना पड़ा। इसमें भारतीय क्रिकेट की त्रिमूर्ति मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर, टीम इंडिया के कोच राहुल द्रविड़, बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली तक शामिल है।

सचिन तेंदुलकर - सचिन तेंदुलकर तेंदुल्कर जितने महान खिलाड़ी थे उतने ही खराब कप्तान, यह लगभग हर क्रिकेट फैन को पता है।साल 1996 में विश्वकप हार के बाद सचिन तेंदुलकर को कप्तानी सौंपी गई। लेकिन बोर्ड का यह नतीजा बिल्कुल फ्लॉप रहा और मोहम्मद अजहरुद्दीन को फिर कप्तानी सौंप दी गई।
 
इसके बाद 1999 के विश्वकप के बाद जब भारतीय टीम हारकर आयी थी तो बोर्ड ने कप्तानी में बदलाव किया था। सचिन तेंदुलकर को कप्तानी सौंपी गई थी लेकिन कप्तानी उनके व्यवहार के विरुद्ध काम साबित हुआ। 
 
ना ही सचिन एक कप्तान की तरह आक्रमक थे ना ही मैदान पर बदलती परिस्थितियों के चलते अपना निर्णय बदल पाते थे। जितने समय टीम उनकी कप्तानी में रही टीम एक दम प्रीडिक्टिबल रही। एक बार उन पर मुंबई कि खिलाड़ी को तरहजीह देने का भी आरोप लगा। 
 
दूसरी बार अजहर के बाद सचिन कप्तान इसलिए बनाए गए थे क्योंकि तब कोई भी खिलाड़ी दावे के साथ अपनी जगह को पक्की नहीं मान सकता था। खिलाड़ियों के फॉर्म में लय नहीं थी। सचिन की कप्तानी में भारत ने 73 मैच खेले और 43 मैच हारे और सिर्फ 23 में ही जीत मिली।उनकी कप्तानी में भारत एक भी बार एशिया कप जैसा मल्टी नेशनल टूर्नामेंट नहीं जीत सका। 
 
टेस्ट मैचों में कप्तानी का अनुभव तो सचिन के लिए और भी खराब रहा। उन्होंने टीम इंडिया के लिए 25 टेस्ट मैचों में कप्तानी की और सिर्फ 4 मैचों में ही टीम इंडिया को जीत नसीब हो पायी।

पहली बार जब कप्तानी से उनको निकाला था तो इसकी खबर उन्हें मीडिया से मिली थी। इसके बाद वह काफी आहत हुए थे। दूसरी बार उन्होंने कुछ समय मजबूरी में यह काम ले तो लिया लेकिन इसके बाद कप्तानी से तौबा कर ली।

मोहम्मद अजहरुद्दीन -अजहरुद्दीन 90 के दशक में भारत के सबसे कप्तान रहे। कुल वनडे मैचों में उन्होंने भले ही पूर्व के कप्तानों से अधिक बार टीम को जीत दिलाई लेकिन 3 में से एक भी वनडे विश्वकप में उन्हें सफलता ना दिला पाना और फिर फिक्सिंग कांड में नाम आना उनकी कप्तानी जाने का सबसे अहम कारण बना।

नब्बे के दशक में भारतीय टीम इसलिए कमजोर दिख रही थी क्योंकि बाकी की टीमें हमसे तेज गति से आग बढ़ रही थी। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड ,दक्षिण अफ्रीका,वेस्टइंडी़ज के अलावा श्रीलंका, पाकिस्तान भी अपना नजरिया बदल रही थी।अजहरुद्दीन की कप्तानी में टीम इंडिया यह करने में नाकामयाब रही।

भारतीय टीम ने कुल 174 वनडे और 74 टेस्ट अजहर की कप्तानी में खेले लेकिन सिर्फ 90 वनडे और 14 टेस्ट मैचों में टीम को सफलता हाथ लगी।वनडे विश्वकप के 23 मैचों में से सिर्फ 10 मैचों में अजहर टीम को सफलता दिला पाए।

हालांकि इतने लंबे समय तक कप्तानी की बागडोर संभालने के बाद भी उन पर फिक्सिंग की कालिख लगी। इसके बाद बोर्ड ने उनको तुरंत प्रभाव से टीम से निकाल दिया। हालांकि साल 2008 में वह सभी आरोपों से मुक्त हो गए।

सौरव गांगुली:- भारतीय क्रिकेट को हम दो हिस्सों में बांट सकते हैं। एक सौरव गांगुली के कप्तान बनने के पहले का हिस्सा और दूसरा बाद का। पहले भी भारतीय टीम जीतती थी, लेकिन वो उस शेर की तरह थी जो शिकार में दांत और नाखून का इस्तेमाल नहीं करता था। सौरव के कप्तान बनने के बाद भारतीय टीम ऐसा शेर बन गई जो दांत और नाखून का आक्रामक तरीके से उपयोग कर शिकार को दबोचने लगा। विरोधियों के हलक से जीत छिनने लगा।

यही नहीं सौरव गांगुली को भारतीय टीम की कमान तब मिली थी जब भारतीय क्रिकेट फिक्सिंग के जाल में फंसा था। सौरव गांगली ने अपने खिलाड़ियों की फहरिस्त बनाई और उन्हें मौके दिए। नतीजा यह हुआ कि घर का शेर कही जाने वाली टीम विदेशों में भी कमाल करने लगी। सौरव गांगुली की आक्रमक कप्तानी और बल्लेबाजी से सभी खिलाड़ियों में एका दिखा।

हालांकि अपनी कप्तानी के समय सौरव गांगुली आईसीसी ट्रॉफी जीतने में नाकाम रहे जो कि दुर्भाग्यपूर्ण था। 2000 चैंपियन्स ट्रॉफी की उप विजेता भारत को 2002 में भी श्रीलंका से ट्रॉफी बारिश के कारण शेयर करनी पड़ी।
साल 2003 में भारत वनडे विश्वकप के फाइनल में पहुंचा लेकिन ऑस्ट्रेलिया से हार बैठा।

कोच चैपल के कारण गांगुली की हुी विदाई

बीसीसीआई को ‘रेड अलर्ट’ पर डालने वाले आखिरी भारतीय कप्तान खुद गांगुली थे जिनका तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल के साथ विवाद जगजाहिर था। गांगुली को 2005 में जिम्बाब्वे में टेस्ट श्रृंखला जीतने के बाद कप्तानी से हटा दिया गया था। उन्होंने कहा था कि उन्हें कप्तानी छोड़ने के लिये कहा गया था।

इसके बाद दिवंगत जगमोहन डालमिया को बोर्ड अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। उसके बाद से क्रिकेट की राजनीति बद से बदतर हो गई।

अक्टूबर 2005 में सौरव गांगुली श्रीलंका से होने वाली वनडे सीरीज के पहले 4 मैचों के लिए चोट के कारण अनुपलब्ध थे। उनकी जगह राहुल द्रविड़ को टीम इंडिया का कप्तान चुना गया। सीरीज में जब भारत ने 4-0 की बढ़त ले ली तो अगले 3 वनडे के लिए सौरव गांगुली की अनदेखी की गई।इसके बाद लगातार सीरीज होती गई और गांगुली समर्थकों को झटका लगता गया।

राहुल द्रविड़:- अपनी कप्तानी के कार्यकाल में राहुल द्रविड़ ने 'सुपरस्टार पॉवर' का स्याह चेहरा देखा था। उन्होंने भारत की पारी तब समाप्ति की घोषणा की थी, जब सचिन तेंदुलकर 194 रन पर खेल रहे थे। तब उनकी खूब आलोचना हुई थी। इसके अलावा अक्सर कप्तान के रूप में उनकी रणनीतियों को भी रक्षात्मक कहा जाता था। उनकी कप्तानी कार्यकाल में कुछ सीनियर खिलाड़ियों ने उनकी बात नहीं मानी, कुछ ने अपना बल्लेबाज़ी क्रम बदलने से मना कर दिया।

उनकी कप्तानी की सबसे बड़ी कालिख रही वनडे विश्वकप 2007 जिसमें भारत को बांग्लादेश जैसी टीम से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद टीम श्रीलंका से भी हार गई और वनडे विश्वकप के राउंड रॉबिन राउंड में भी जगह नहीं बना पायी। भारत 3 में से 2 मुकाबले हारकर वनडे विश्वकप से बाहर हो गई।

कुल मिलाकर आख़िर में उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। भारत जब टी-20 विश्वकप में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपना पहला मैच खेलने ही वाला था उसके 1-2 दिन पहले ही राहुल द्रविड़ ने वनडे की कप्तानी छोड़ दी। हालांकि इससे पहले वह टीम इंडिया को साउथ अफ़्रीका में पहली टेस्ट जीत और इंग्लैंड में सीरीज़ जिता चुके थे। फिर भी उनके कार्यकाल को 'अधूरा' माना जाता है।राहुल द्रविड़ ने 79 वनडे मैचों में कप्तानी की जिसमें टीम इंडिया को 42 में जीत मिली और 33 में हार।

महेंद्र सिंह धोनी-  कितने ताज्जुब की बात है कि जिस खिलाड़ी ने कभी किसी राज्य की कप्तानी नहीं की, वो सीधे 'टीम इंडिया' का कप्तान बना और भारत को टी20 का वर्ल्ड कप दिलाया। इसे आप क्रिकेट का जुनून ही कहेंगे कि धोनी ने न केवल टीम इंडिया को वनडे विश्वकप 2011 और फिर चैंपियन्स ट्रॉफी 2013 जितवाई बल्कि आईपीएल में अपनी टीम चेन्नई सुपर किंग्स को 3 बार चैम्पियन बनवाया। वे 12 आईपीएल मैचों से 9 बार फाइनल खेले।

माही ने भारतीय क्रिकेट को कई न भूलने वाले पल दिए। उनकी कप्तानी में ही टीम इंडिया टेस्ट रैंकिंग में नंबर एक भी बनी थी और 600 दिनों तक नंबर एक ही रही थी। जनवरी 2017 में उन्होंने विराट को वनडे और टी-20 की कप्तानी सौंप दी थी। महेंद्र सिंह धोनी हालांकि इसके बाद 2 साल तक बतौर खिलाड़ी क्रिकेट खेलते रहे। अन्य कप्तानों की तुलना में महेंद्र सिंह धोनी की विदाई तुलनात्मक सुखद रही।

विराट कोहली- पिछले 6 महीने में विराट कोहली ने क्रिकेट के हर फॉर्मेट में कप्तानी छोड़ी। अब वह जितनी भी क्रिकेट खेलते हैं बतौर खिलाड़ी ही टीम इंडिया में खेलेंगे।

टी-20 विश्वकप से पहले ही विराट कोहली ने कप्तानी छोड़ने का मन बना लिया था। इस टूर्नामेंट के बाद जब चयनकर्ता वनडे सीरीज के टीम सिलेक्शन के लिए बैठे तो कोहली की जगह रोहित को कप्तान चुन लिया। इसके बाद विवादों की एक झड़ी लग गई।

बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली की दो बातों को विराट कोहली ने एक प्रेस कॉंफ्रेस के जरिए नकारा। पहला - उनसे टी-20 कप्तानी ना छोड़ने की गुजारिश हुई थी और दूसरा उन्हें वनडे की कप्तानी छोड़ने के लिए 2 दिन का समय मिला था।

इस घटना के बाद संभवत बीसीसीआई और विराट के बीच काफी विवाद बढ़ा। दक्षिण अफ्रीका से 1-2 से टेस्ट सीरीज हारने के बाद विराट ने टेस्ट की कप्तानी से भी इस्तीफा दे दिया।

विराट को धोनी के समय की एक लाजवाब टीम की अगुवाई करने का मौका मिला था लेकिन वह टीम को कभी कोई आईसीसी ट्रॉफी नहीं जितवा पाए। हाालंकि वह भारत के सबसे सफल टेस्ट कप्तान रहे।

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