नई दिल्ली: महिला क्रिकेट की पहली सुपरस्टार, तकनीकी रूप से सबसे सटीक बल्लेबाज और एक पीढी को प्रेरित करने वाली क्रिकेटर, मिताली राज पर ये सारी उपमायें चरितार्थ होती हैं। सोलह बरस की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण करके पहले ही मैच में शतक जड़ने वाली मिताली एक समृद्ध विरासत छोड़कर क्रिकेट से रूखसत हुई हैं।26 जून 1999 को आयरलैंड के खिलाफ मिताली राज ने शतक जड़ा और इन नाबाद 114 रनों के बाद वह टीम की रीढ़ बन गई।
उनके कवर ड्राइव और बैक फुट पर स्ट्रोक्स को क्रिकेट जगह बरसों तक याद रखेगा । उनकी तकनीक इतनी खालिस थी कि उसमें गलती ढूंढना आसान नहीं होता था।मिताली ने 23 साल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला और इतने लंबे कैरियर के मामले में वह सचिन तेंदुलकर को टक्कर देती हैं।
भारत की सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज
भारत को 1976 में पहली टेस्ट जीत दिलाने वाली कप्तान शांता रंगास्वामी का मानना है कि मिताली भारत की सर्वश्रेष्ठ महिला बल्लेबाज रही हैं।मिताली ने जब खेलना शुरू किया , उससे काफी पहले रंगास्वामी अपना आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुकी थी लेकिन बतौर कमेंटेटर और चयनकर्ता मिताली के प्रदर्शन पर करीब से उनकी नजर रही।
रंगास्वामी ने कहा , बल्लेबाजों की बात करें तो सबसे सटीक तकनीक के मामले में दो ही नाम आते हैं सुनील गावस्कर और मिताली।उन्होंने कहा , सबसे यादगार बात तो यह है कि 20 साल से अधिक समय से खेलने के बावजूद वह शीर्ष पर रही। मेरी नजर में तो वह भारत की सर्वश्रेष्ठ महिला बल्लेबाज है।
पिता भारतीय वायुसेना में थे
मिताली के पिता भारतीय वायुसेना में थे और यही वजह है कि उनकी बल्लेबाजी में गजब का अनुशासन देखने को मिलता है।बचपन में मिताली को भरतनाट्यम का शौक था लेकिन वह उसे परवान नहीं चढा सकी। वह फुटवर्क क्रिकेट में उनके काफी काम आया।
घरेलू क्रिकेट में उन्होंने आंध्र प्रदेश के लिये कुछ समय खेला लेकिन बाद में एयर इंडिया और रेलवे से जुड़ गई।बीसीसीआई ने भारतीय महिला क्रिकेट को 2006 में जब अपनी छत्रछाया में लिया तो मिताली ने खेल की तकदीर को बदलते हुए देखा। अब महिला क्रिकेट में पेशेवरपन आ गया था।
ट्रेन की बजाय अब खिलाड़ी बिजनेस क्लास में सफर करने लगे थे। मिताली इस उतार चढाव वाले सफर की गवाह रही।एक के बाद एक रिकॉर्ड तोड़ने वाली मिताली ने अपने कैरियर में खराब दौर भी देखा। मुख्य कोच रमेश पवार से 2018 टी20 विश्व कप के बाद उनके मतभेद सार्वजनिक हुए। उन्हें सेमीफाइनल में टीम से बाहर कर दिया गया और उन्होंने आनन फानन में इस प्रारूप को अलविदा कह दिया।
लगातार सात अर्धशतक का रिकॉर्ड बनाने वाली मिताली ने आखिर तक निरंतरता बरकरार रखी। भारतीय खेमे में मतभेद की खबरों के बीच उन्होंने अपना संयम कभी नहीं खोया ।अपने सुनहरे सफर का अंत वह विश्व कप के साथ करना चाहती थी लेकिन यह ख्वाहिश अधूरी ही रह गई।