कोटला के कलंक ने फिर हरा किया घाव

Webdunia
- सीमान् त सुवी र

दुनिया बहुत छोटी है और झीनी भी। आप कितने ही जतन कर लें, कुछ घाव ऐसे होते हैं, जिन्हें वक्त की मोटी परत के नीचे दफनाया नहीं जा सकता और मौके-बे-मौके वे फिर से हरे हो जाते हैं। रविवार के दिन फिरोजशाह कोटला पर लगे कलंक ने दुनिया की क्रिकेट बिरादरी में इंदौर को फिर से मिसाल के रूप में पेश किया, जहाँ 12 बरस पहले 25 दिसंबर 1997 में इसी श्रीलंकाई टीम के सामने भारतीय टीम थी और नेहरू स्टेडियम की खराब पिच की वजह से 19 गेंदों के बाद ही मैच रद्द कर दिया गया था।

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नेहरू स्टेडियम के काले दाग ने मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन को मजबूर किया कि वह अपना खुद का स्टेडियम बनाए और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में संयुक्त सचिव संजय जगदाले के साथ-साथ स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के ईमानदारी से किए गए प्रयासों का ही परिणाम है कि सीके नायडू के शहर इंदौर को 30 करोड़ रुपए की लागत से बने उषा राजे जैसे अत्याधुनिक स्टेडियम की सौगात मिली। इस स्टेडियम की क्षमता 28 हजार हो गई है और यहाँ दुधिया रोशनी में भी मैचों को आयोजित कराने की कूव्वत है।

25 दिसंबर 1997 के दिन इसी इंदौर के नाम पर पूरी दुनिया में एक ऐसा कलंक लगा था, जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकेगा और जब भी, जहाँ भी पिच की वजह से मैच रद्द होंगे, तब इस शहर के नाम को एक दस्तावेज के रूप में पेश किया जाएगा। कितनी हैरत की बात है कि समंदरसिंह चौहान नामक जिस शख्स ने नेहरू स्टेडियम की पिच तैयार की थी, उसी ने उषा राजे मैदान की भी विकेट तैयार की, जहाँ 2006 के अलावा 2008 में इंग्लैंड का सामना भारत से हुआ और इन दोनों ही अंतरराष्ट्रीय वनडे मैचों में भारत विजयी रहा। पहले मैच में 11 गेंद शेष रहते 6 विकेट से और दूसरे मैच में 54 रन से जीत भारत की झोली में आई।

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लता मंगेशकर, जॉनी वॉकर, सलीम (फिल्म पटकथा लेखक) और राहुल द्रविड़ की जन्मस्थली के रूप में इंदौर की पहचान सारी दुनिया में है लेकिन जो लोग माँ अहिल्या की इस नगरी को नहीं जानते थे, वे इस रूप में भी शहर को पहचानने लगे कि यहाँ भारत-श्रीलंका का मैच सिर्फ इसलिए रद्द हुआ था, क्योंकि पिच खराब थी।

नेहरू स्टेडियम में पिच बनाने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्तर के अंपायर नरेन्द्र मेनन की थी। जब इसके विकेट का निर्माण किया जा रहा था, तब वे मैच की अंपायरिंग करने शहर से बाहर चले गए थे और समंदरसिंह चौहान को विकेट बनाने की जिम्मेदारी सौंप गए थे। समंदरसिंह के इंदौर के समीप खेत थे, जहाँ वे सब्जियाँ उगाया करते थे और जब मैच रद्द किए जाने का फैसला हुआ तो लोगों ने समंदर के बजाय नरेन्द्र मेनन के घर उपद्रव मचाया, क्योंकि पूरी दुनिया के सामने इंदौर की नाक नीची हो गई थी।

समय गुजरा और नरेन्द्र मेनन ने पिच तैयार करने की जिम्मेदारी से तौबा कर ली। दूसरी तरफ समंदर अपने काम में लगे रहे और संजय जगदाले (मप्र क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव) ने भी उन पर भरोसा जताया। यही कारण है कि समंदर और उनके 30 साथियों की टीम ने उषा राजे पर एक ऐसा आदर्श विकेट तैयार कर दिया, जिसकी प्रशंसा ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेट डीन जोंस और इंग्लैंड के पूर्व कप्तान डेविड गावर कर चुके हैं।

इंदौर में अब तक कुल 11 वनडे मैच खेले गए हैं, जिसमें से 9 की मेजबानी नेहरू स्टेडियम ने की थी। यहाँ 2 मैचों के परिणाम नहीं निकले। जिम्बॉव्वे और भारत के बीच वनडे मैच 'टाई' हो गया था जबकि 1997 में भारत-श्रीलंका मैच को रद्द किया कर दिया गया।

बहरहाल, दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में भारत-श्रीलंका मैच को रद्द करने का फैसला लेने में करीब 24 ओवर लग गए। गेंद जिस असमान रूप से उछाल ले रही थी, उस स्थिति में पूरे ओवर फेंके जाते तो संभव था कि आधा दर्जन खिलाड़ी हाथों में पट्टियाँ या प्लास्टर बाँधे रहते। तिलकरत्ने दिलशान की बाँह पर जो गेंद लगी थी, वह उन्हें लंबे समय तक का दर्द दे गई।

सवाल यह है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की मैदान और पिच समिति उस वक्त क्या करती है, जब ‍किसी जगह नई विकेट तैयार की गई हो? क्या बोर्ड इस समिति को बर्खास्त करके अपने दायित्व से मुक्त हो सकता है? नहीं, इसके लिए वे सभी लोग जिम्मेदार हैं, जो क्रिकेट मैच के आयोजन से लेकर समाप्ति तक जुड़े रहते हैं।

भविष्य में ऐसे किसी भी सेंटर पर मैच की अनुमति नहीं दी जाए, जहाँ नए विकेट तैयार किए हों। बोर्ड भी अपनी पिच कमेटी में ऐसे जानकारों को रखे, जिन्हें वाकई मैदानी तौर पर विकेट की संपूर्ण जानकारी हो।

भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश की मेजबानी में 2011 के विश्वकप के कुछ मैचों का आयोजन दिल्ली को भी करना है। ऐसे में यदि आईसीसी दिल्ली पर 2 साल का प्रतिबंध भी लगाने की हिम्मत दिखाती है तो फिर क्या होगा? कोटला का दाग सिर्फ अरुण जेटली एंड कंपनी पर नहीं लगा, बल्कि हर उस भारतीय के दिल पर लगा है, जो क्रिकेट को प्यार करता है।

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