सैयद किरमानी ने अस्सी के दशक में भारत के ऑलराउंडर विकेटकीपर की जरूरत को पूरा किया। निचले क्रम में बल्लेबाजी करने वाले किरमानी कई मौकों पर अपने बल्ले से बहुत उपयोगी साबित हुए। किरमानी ने अपने करियर में 88 टेस्ट की 124 पारियों में 160 कैच और 38 स्टम्पिंग किए। साथ ही उन्होंने 27.04 की औसत से 2759 रन भी बनाए, जिनमें दो शतक और 12 अर्धशतक शामिल रहे। जिस दौर में किरमानी खेले, उस समय किसी विकेट कीपर के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
किरण मोरे किरमानी के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आए। जुलाई 1986 में लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान से मोरे का टेस्ट करियर शुरू हुआ। हालांकि एक बल्लेबाज के तौर पर वे कभी चर्चित नहीं रहे, लेकिन विकेट के पीछे उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया। मोरे भारत के सबसे सफल विकेट कीपरों में शुमार रहे। मोरे ने 49 टेस्ट की 64 पारियों में 110 कैच और 20 स्टम्पिंग किए। साथ ही 25.70 की औसत से 1285 रन भी बनाए। उनका अधिकतम स्कोर 73 रन रहा और उन्होंने सात अर्धशतक लगाए।
महेंद्र सिंह धोन ी
भारत को बहुत दिनों से एक ऐसे खिलाड़ी की तलाश थी, जो ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करके विरोधी टीम के गेम प्लान को बिगाड़ दे। साथ ही टीम मैनेजमेंट एक ऐसा विकेट कीपर भी खोज रहा था जो लंबे समय तक टीम में अपना योगदान दे सके। महेंद्र सिंह धोनी ने जब टीम इंडिया में पदार्पण किया तो मानों टीम की टू इन वन (विस्फोटक बल्लेबाज और विकेट कीपर) जरूरत पूरी हो गई। पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली ने धोनी को ऊपरी क्रम में बल्लेबाजी करने भेजा और उन्होंने कप्तान के फैसले को सही साबित करते हुए गेंदबाजों में खौफ पैदा कर दिया। आगे चल कर यह टू इन वन थ्री इन वन (कप्तान भी) में बदल गया। धोनी दुनिया के उन चुनिंदा खिलाड़ियों में से हैं, जो किसी भी टीम में अपनी जगह बना सकते हैं।
धोनी भारत के सबसे सफल विकेट कीपर हैं। उन्होंने अब 61 टेस्ट की 95 पारियों में 173 कैच और 25 स्टम्पिंग किए हैं। इस दौरान उन्होंने 38.14 की औसत से चार शतक और 23 अर्धशतक के साथ 3242 रन भी बनाए हैं। धोनी निर्विवाद रूप से भारत के बेस्ट विकेट कीपर बल्लेबाज हैं।