राहुल द्रविड़ : एक योद्धा खिलाड़ी

देवाशीष निलोसे
रविवार, 6 अक्टूबर 2013 (22:06 IST)
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर राहुल द्रविड़ 6 अक्टूबर के दिन अपना अंतिम टी-20 मैच खेलकर क्रिकेट की सभी श्रेणियों से निवृत्त हो जाएंगे। टेस्ट एवं एक दिवसीय क्रिकेट से तो वे पहले ही रिटायर हो गए थे। वे एक महान खिलाड़ी थे, हैं और जब भी क्रिकेट का इतिहास खंगाला जाएगा, टटोला जाएगा उन्हें हमेशा महानतम की श्रेणी में ही पाया जाएगा। उनकी महानता का आकलन उनके प्रदर्शन से ही नहीं, अपितु उनके संस्कारित व्यवहार, आचचरण से भी किया जाएगा। क्रिकेट के संभ्रांत लोगों का खेल कहा जाता रहा है और राहुल जैसे खिलाड़ी उस सच्चाई को और सार्थक करते हैं।
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आज राहुल विदा होंगे लेकिन उनकी निर्विवाद परिपक्व एवं संवेदनशील छवि उनके असंख्य प्रेमियों के जेहन में हमेशा रची-बसी रहेगी,जिसे उन प्रेमियों के दिलों से कदापि कभी नहीं निकाला जा सकेगा। राहुल द्रविड़ नैतिक मूल्यों को लेकर कितने संवेदनशील एवं सजग थे,यह हम आईपीएल मैच ‍फिक्सिंग विवादों के दौरान देख चुके हैं। उनकी व्यथा ने हम सभी खेल प्रेमियों को हिलाकर रख दिया था, विचलित कर दिया था। जेहन में कई सवाल पैदा हो गए थे कि क्या संभ्रांत एवं शालीन कहे जाने वाले खेल को हम फिर से उसी स्वरूप में खेलता देख पाएंगे, जिस स्वरूप ने उस खेल को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया था?

राहुल द्रविड़ विश्व के उन चुनिंदा खिलाड़ियों में से रहे, जिन्होंने कभी भी 'शॉर्टटर्मगेन्स'के पीछे अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। सदैव सही समय पर सही निर्णय लिए। वे कितने परिपक्व एवं संतुलित हैं, यह उन्होंने राजस्थान रॉयल्स टीम का जिस सादगी से नेतृत्व करके उसे पुन: श्रेष्ठता के मुकाम पर पहुंचाया है, वह किसी के बस में नहीं था। यह काम तो सिर्फ राहुल जैसा साधक, संत ही कर सकता था। उन विवादों ने भारतीय क्रिकेट के साथ-साथ राजस्थान रॉयल्स को भी बदनामी के गर्त में डाल दिया था। दोनों को उस शर्मसार स्थिति से उबारना सिर्फ इसी संत/साधक के हाथों में था। इस अद्‍भुत एवं कठिन कार्य के लिए राजस्थान रॉयल्स ही नहीं, बल्कि भारतीय क्रिकेट भी हमेशा उनका अहसानमंद रहेगा।

निर्मल एवं सह्वय राहुल से मेरी मुलाकात अकसर नेशनल क्रिकेट एकेडमी (एनसीए) बेंगलुरु में होती रही है। इतना अनुशासित, संतुलित, व्यवहारिक शायद ही कोई और खिलाड़ी होगा। मैंने एनसीए अंडर-19 शिविरों के दौरान हमेशा राहुल को युवा खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करते हुए पाया। मैंने उन्हें युवा क्रिकेट पौध को खेल की बारिकियों से अवगत कराते पाया, वह भी बड़ी सहजता से, सरलता से...यह काम सिर्फ राहुल द्रविड़ ही कर सकते हैं।

राहुल अपने आप में एक संस्था हैं। सिद्धांतों पर कभी उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया। उन्हें हमेशा 'मैन ऑफ प्रिसिंपल्स'कहा गया है। उनकी दृढ़ता उनके कार्यो से झलकती है क्योंकि श्रीसंत, चंदीला और अंकित चौहान जैसे प्रमुख खिलाड़ियों ने राजस्थान रॉयल्स को ‍क्षति पहुंचाई थी। उस विवाद के दौर से टीम को एवं ‍िखलाड़ियों को प्रोत्साहित कर हिम्मत देना एवं उस विषम परिस्थितियों से निकाल पाना कतई आसान नहीं था। यह तो राहुल की ही हिम्मत थी। खेल जगत ताउम्र उनका शुक्रगुजार रहेगा।

फिरोजशाह कोटला पर रविवार के दिन उनकी मैदान में अंतिम पारी या तो खुशनुमा माहौल बनाएगी या यह भावनात्मक विदाई होगी, पर जो मुकाम उन्होंने हासिल किया है, वह भारतीय क्रिकेट में ‍अद्वितीय है। खिलाड़ी आएंगे और जाएंगे...राहुल के भी कीर्तिमान तोड़े जाएंगे पर राहुल से राहुल का होना कोई नहीं छीन पाएगा। वे बेजोड़ हैं, थे और जब तक क्रिकेट का अस्थित्व रहेगा, वे हमेशा रहेंगे।

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