जर्मनी में यानोश का नाम सभी जानते हैं। बच्चों के लिए कहानियाँ और किताबे लिखने वाले यानोश की कहानियों में बाघ जैसी धारियों वाली बतख और भालू अब भी यहाँ लोगों को पसंद हैं।
प्यारी कहानियाँ और सुंदर सपने रचने वाले यानोश का अपना बचपन एक दुस्वप्न। 'मेरे पिता एक शराबी थे। उनके पास कुत्ते को मारने के लिए एक चाबुक होता था। बस मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं यह बात वह मुझे चाबुक मार कर समझाते। वह मेरी माँ को भी पीटते और फिर माँ मुझे।'
बुरा सपना : ओह वी शून इस्ट पनामा यानी पनामा कितना सुंदर है, बच्चों की इस किताब से मशहूर होने वाले यानोश की परवरिश रुढ़िवादी कैथोलिक ईसाई तरीके से हुई। अपने लेखन में उन्होंने कैथोलिक चर्च की काफी आलोचना की है। 'मुझे जबरदस्ती चर्च में भेजते। वहाँ धमकियाँ शुरू होतीं। जब तुम हमारी बात में विश्वास नहीं करोगे। हम जो कह रहे हैं नहीं करोगे तो सबसे बुरा होगा, जो कि मौत के बाद होता है। एक बच्चे के तौर पर मैं सच में विश्वास करता कि मैं एक पाप के कारण पैदा हु्आ हूँ। इसके बाद असमंजस पैदा होता है। तेरह साल की उम्र में मेरी मानसिक हालत बहुत खराब हो गई थी।'
नाम से भी नफरत : बचपन से बेजार यानोश का असली नाम हॉर्स्ट एकर्ट है। 1931 में पोलैंड में पैदा हुए यानोश के लिए उनका अपना नाम भी एक बुरा सपना था। उनके पिताजी ने नाजी विचारधारा वाले होर्स्ट वेसेल के नाम पर उनका नाम रखा और पोलैंड में यह नाम बिलकुल पसंद नहीं किया जाता था। 25 वर्ग मीटर के छोटे से घर में यह परिवार रहता था। गरिबी और काम यानोश के बचपन का हिस्सा रहा। 1937 में यानोश का परिवार पश्चिम में आया।
उत्तरी जर्मनी में उन्होंने कुछ दिन कपड़े की मिल में काम किया। लेकिन वह इससे खुश नहीं थे क्योंकि वह चित्रकार बनना चाहते थे। 1953 में उन्होंने म्यूनिख के आर्ट इंस्टिट्यूशन में पढ़ाई शुरू की, लेकिन उनका स्वतंत्र दिमाग और विचार यहाँ एक रोड़ा बन कर खड़ा हो गया। 1960 में उनकी लिखी पहली किताब बाजार में आई। बच्चों की कहानी, वालेक, एक घोड़े की कहानी। लेकिन यानोश लोकप्रियता के शिखर पर 1978 में लिखी ओह वी शून इस्ट पनामा, पनामा कितना बढ़िया से पहुँचे, लेकिन यानोश को यह लोकप्रियता पसंद नहीं।
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कहानी से बदला : वह कहते हैं कि पनामा वाली किताब लिखना एक तरह से लोगों से बदला लेना था। 'मेरे लिए बदला लेना मतलब एक ऐसी कहानी लोगों को सुनाना जो वह पहले से जानते हों। तो मैंने भालू चुना। एक भालू जो यात्रा पर चल देता है। 300 साल से यह कहानी चल रही है। मैं चाहता था कि इसे पढ़कर अभिभूत हो जाएँ। और ऐसा ही हुआ।'
जर्मनी में अक्सर बहस होती कि बच्चों के लिए किताबें कैसी होनी चाहिए, उनमें कैसी जानकारी दी जानी चाहिए। शिक्षा के हिसाब से उनकी गुणवत्ता कैसी होनी चाहिए और उनकी सीधी सादी, सुंदर कहानी को आज भी शैक्षणिक मापदंडों पर शानदार माना जाता है।
ओह वी शून इस्ट पनामा- एक ऐसी कहानी है जिसमें भालू और शेर। जिगरी दोस्त पनामा को ढूँढने निकलते हैं और खूब घूम के घर लौट आते हैं। वह समझ ही नहीं पाते कि वह एक सर्कल में घूम के लौटे हैं।
उनकी किताबों के कारण जर्मनी का हर व्यक्ति उन्हें जानता है। इस लोकप्रियता से बचने के लिए 1980 में अटलांटिक के टेनेरिफा द्वीप पर रहने चले गए। वह कहते हैं कि लोग बार-बार उस भालू और बाघ की कहानी सुनना चाहते हैं। अब मैं इससे परेशान हो गया हूँ। एकदम ही बचकाना है। उन्हें 1979 में जर्मनी के बच्चों की किताबों के लिए दिया जाने वाला डॉयच युगेंडबुख पुरस्कार दिया गया। 1993 में उन्हें जर्मनी का सबसे बड़ा पुरस्कार बुंडेसफरडीन्स्टक्रॉइत्स दिया गया।
यानोश 200 किताबें लिख चुके हैं इसमें से सौ किताबें बच्चों की कहानियाँ हैं। उन्हें जर्मनी का 80 साल के यानोश अपने कैथोलिक पालन पोषण को सबसे बुरा अनुभव बताते हैं। बच्चों के लिए सपनों का संसार रचने वाले यानोश, जिनका अपना बचपन एक बुरा सपना रहा।