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तालिबान के शासन को अभी भी अवैध मानती हैं अफगान महिलाएं

हमें फॉलो करें तालिबान के शासन को अभी भी अवैध मानती हैं अफगान महिलाएं

DW

, सोमवार, 4 जुलाई 2022 (17:31 IST)
हजारों मौलवियों के तालिबान सरकार को समर्थन देने के बाद अफगानिस्तान की महिला एक्टिविस्टों ने कहा है कि तालिबान का शासन अभी भी अवैध है। तालिबान ने देश में महिलाओं के अधिकारों पर कई प्रतिबंध लगाए हैं।
 
पिछले हफ्ते 3 दिनों तक चली एक बैठक में मौलवियों ने तालिबान और उसके सर्वोच्च नेता हैबतुल्ला अखुंदजादा के प्रति निष्ठा की शपथ ली। इसके बाद देश की कई महिला एक्टिविस्टों ने तालिबान के शासन की आलोचना की और कहा कि मौलवी देश में सभी का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
 
मौलवियों की बैठक में लड़कियों के स्कूल जाने के अधिकार जैसे विषयों पर चर्चा ही नहीं हुई। लेकिन तालिबान ने उसके बाद से बैठक को शरिया कानून के तहत चलने वाले एक शुद्ध इस्लामिक राज्य के उनके प्रारूप में लोगों के विश्वास मत के रूप में पेश करने की कोशिश की है। बैठक में 3,500 पुरुष मौजूद थे लेकिन एक भी महिला नहीं थी। मौलवियों का कहना था कि बैठक में देश की महिलाओं के बेटे और पति उनका प्रतिनिधित्व करेंगे। लेकिन कई महिलाओं ने इस बैठक की आलोचना की है।
 
इस समय नॉर्वे में निर्वासन में रह रहीं अधिकार एक्टिविस्ट होडा खमोश कहती हैं कि देश की आधी आबादी की गैरमौजूदगी में हुई किसी बैठक में तालिबान के प्रति निष्ठा व्यक्त करने वाले किसी भी तरह के बयान स्वीकार्य नहीं हैं।
 
उन्होंने आगे कहा कि इस बैठक की न कोई वैधता है और न इसे लोगों की स्वीकृति है। अगस्त 2021 में देश में सत्ता एक बार फिर से हथिया लेने के बाद तालिबान ने शरिया कानून की कड़ाई से विवेचना करते हुए उसे लागू किया है जिसका असर विशेष रूप से महिलाओं पर पड़ा है।
 
माध्यमिक विद्यालय जाने वाली लड़कियों को शिक्षा से दूर कर दिया गया है। महिलाओं को सरकारी नौकरियों से प्रतिबंधित कर दिया गया है, अकेले सफर करने से मना कर दिया गया है और उनके लिए इस तरह के कपड़े पहनना अनिवार्य कर दिया गया है जिनसे चेहरों के अलावा और कुछ दिखाई न दे।
 
तालिबान ने गैरधार्मिक संगीत बजाने पर भी रोक लगा दी है, टीवी चैनलों को ऐसी फिल्में और सीरियल दिखाना मना कर दिया है जिनमें महिलाओं के शरीर ढंके हुए न हों। पुरुषों को पारंपरिक कपड़े पहनने और दाढ़ी बढ़ाने के लिए कहा गया है।
 
काबुल में महिलाओं के एक संगठन ने भी मौलवियों की बैठक की निंदा की और कहा कि उसमें उनका प्रतिनिधित्व नहीं हुआ। इस विषय पर एक समाचार वार्ता के आयोजन के बाद आयोजक ऐनूर उजबिक ने एएफपी को बताया कि उलेमा समाज का सिर्फ एक हिस्सा हैं, पूरा समाज नहीं हैं।
 
उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने जो फैसले लिए वो सिर्फ उनके हित में हैं और देश और जनता के हित में नहीं हैं। एजेंडा में महिलाओं के लिए कुछ नहीं था और न विज्ञप्ति में। महिलाओं के संगठन ने एक बयान में कहा कि तालिबान जैसे पुरुषों ने इससे पहले भी इतिहास में निरंकुश रूप से सत्ता कब्जाई है लेकिन अक्सर सत्ता उनके पास बस थोड़े ही समय के लिए रहती है और फिर छिन जाती है।
 
उजबिक ने कहा कि अफगान सिर्फ इतना कर सकते हैं कि अपनी आवाज उठा सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से लिबान पर दबाव बनाने की मांग कर सकते हैं।
 
सीके/एए (एएफपी)

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